लखनऊ। आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में लगभग 19 प्रतिशत आबादी मुसलामानों की है, लेकिन राजधानी लखनऊ के 43 थानों में एक भी मुसलमान थानेदार को तैनात नहीं किया गया है, लेकिन शासन का दावा 'सबके साथ, सबके विकास' का है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
राजधानी के थानों में तैनात शत-प्रतिशत हिंदू थानेदारों में से 11.5 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और इतने ही प्रतिशत अनुसूचित जाति-जनजाति (एससी/एसटी) के हैं। वहीं की राजधानी के 77 प्रतिशत थानों में अगड़ी जाति के लोग काबिज है।
यह तथ्य एक आरटीआई अर्जी पर लखनऊ के अपर पुलिस अधीक्षक (विधानसभा) और जनसूचना अधिकारी द्वारा दिए जवाब से सामने आए हैं।
जनसूचना अधिकारी ने बताया है कि लखनऊ के 43 थानों में से 18 में ब्राह्मण, 12 में क्षत्रिय, 2 में कायस्थ, 1 में वैश्य, 2 में कुर्मी, 1 में मोराई, 1 में काछी, 1 में ओबीसी, 1 में धोबी, 1 में जाटव, 1 में खटिक और 2 में अनुसूचित जाति के थानेदार तैनात हैं।
संजय कहते हैं कि प्रदेश में लगभग 19 प्रतिशत आबादी मुसलामानों की हैं पर लखनऊ के 43 थानों में एक भी मुसलमान थानेदार नहीं तैनात किया गया है। वहीं 38 प्रतिशत आबादी वाले ओबीसी का लखनऊ के थानों में प्रतिनिधित्व मात्र 11.5 प्रतिशत है। इसी प्रकार कुल आबादी का 21 प्रतिशत हिस्सा अनुसूचित जाति का होने पर भी इस राजधानी के थानेदारों की नुमाइंदगी मात्र 11.5 प्रतिशत पर ही सिमट कर रह गई है। वहीं कुल आबादी के 22 प्रतिशत पर सिमटे अगड़े राजधानी के 77 प्रतिशत थानों पर काबिज हैं।
संजय ने कहा कि सरकारों से उम्मीद तो यह की जाती है कि वे जाति-वर्ग-धर्म से ऊपर उठकर काम करेंगी, पर सच्चाई यह है कि सूबे के पुलिस थानों में बसपा की सरकारों में अनुसूचित जाति का दबदबा कायम रहता है तो सपा में यादवों का और भाजपा में ब्राह्मण-ठाकुरों का। उन्होंने कहा कि यह परंपरा सी कायम हो गई है जो लोकतंत्र के लिए घातक है।
संजय ने बताया कि वे अपनी संस्था 'तहरीर' की ओर से मुख्यमंत्री योगी को पत्र लिखकर मांग करेंगे कि सरकारी पदों पर बिना किसी भेद-भाव के समाज के सभी वर्गो को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए।
--आईएएनएस
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