लखनऊ। देशभर की नजर उत्तर प्रदेश के सपा-बसपा के गठबंधन पर टीकी हुई थी। लेकिन लोकसभा के परिणाम आने के बाद गठबंधन की अपनी जमीन खिसकती नजर आई । इस गठबंधन में सपा, बसपा और एनएलडी का गठजोठ था। इन तीनों पार्टियों में से सबसे ज्यादा फायदा मायावती को हुआ है। जिसकी पिछली लोकसभा में एक भी सीट नहीं थी अबकी बार दस सीटें मिली हैं। सपा अौर एनएलडी को झटका लगा है। इसके बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के नेतृत्व भी सवालिया निशान लगना प्रारंभ हो गया है। माना जा रहा है 2018 में हुए फूलपुर और गोरखपुर में उपचुनाव में गठबंधन की हुई जीत हुई थी। अखिलेश ने मोदी के रथ रोकने का तरीका गठबंधन को ही समझ बैठे। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
लोकसभा चुनाव से पहले सपा के पास 7 सीटें थी जो घटकर 5 ही रह गई। तीनों दलों के गठबंधन में सबसे ज्यादा नुकसान सपा को ही हुआ है। 2014 में सपा ने 5 सीटें जीती थीं जो सभी यादव परिवार के नाम रहीं। इस बार अपने गढ़ कन्नौज से हाथ धोना पड़ा, जहां से सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव उम्मीदवार थीं। इस बार प्रदेश की 80 में से 62 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है जबकि कांग्रेस को एक और अपना दल को 2 सीटें मिली हैं।
बसपा के लिए यह चुनाव थोड़ी राहत जरूर लेकर आया । बसपा को प्रदेश में 10 सीटें जरूर मिली हैं सबसे खराब हालत आरएलडी की रही क्योंकि पार्टी के अध्यक्ष अजीत सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी दोनों ही चुनाव हार गए।
2019 के नतीजों से साफ नजर आ रहा है कि आम चुनाव में सपा-बसपा का गठजोड़ कारगर साबित नहीं हुआ। यह गठजोड़ मोदी लहर का सामने कर पाने में विफल साबित रहा है
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