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लोककल्याण के लिए लीक से हटकर चली गोरक्षपीठ

Gorakshpeeth went out-of-the-box for public welfare - Lucknow News in Hindi

लखनऊ । गुरू गोरखनाथ नाथ की पीठ लोककल्याण के लिए लीक से हटकर चलने के लिए सदैव से जानी जाती है। यह देश की उन चुनिंदा पीठों में है जिसने अपनी स्थापना के बाद से ही लोक कल्याण और सामाजिक समरसता को सर्वोपरि रखा। न सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किए बल्कि स्वास्थ्य की दिशा अनवरत कार्य भी हो रहा है। लोक कल्याण एवं सामाजिक समरसता के आगे परंपरा आयी, पीठ ने उसे तोड़ने में तनिक भी हिचक नहीं दिखाई। सहभोज के जरिए व्यापक हिंदू समाज को जोड़ने के इस सिलसिले को योगी आदित्यनाथ ने पीठ के उत्तराधिकारी, पीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री के रूप में भी जारी रखा। यही नहीं एक बार तो योगी ने पीठ के उत्तराधिकारी के रूप में नवरात्र की वर्षों से स्थापित परंपरा को भी तोड़ दिया।

करीब तीन दशक से गोरखनाथ मंदिर को काफी नजदीक से कवर करने वाले पत्रकार गिरीश पांडेय ने बताया कि गोरक्षपीठ के लिए साल के दोनों (चैत्र एवं शारदीय) नवरात्र बेहद खास होते हैं। पहले दिन से ही वहां अनुष्ठान शुरू हो जाता है। सारी व्यवस्था मठ के पहली मंजिल पर ही होती है। परंपरा रही है कि पहले दिन कलश स्थापना के बाद नवरात्रि तक पीठ के पीठाधीश्वर और उनके उत्तराधिकारी मठ से नीचे नहीं उतरते। पूजा के बाद रूटीन के काम और खास मुलाकातें ऊपर ही होती रही हैं। सितंबर 2014 में फर्ज के आगे वर्षों से स्थापित यह परंपरा भी टूट गई।

तब भी नवरात्रि का समय था। गोरखपुर कैंट स्टेशन के पास नन्दानगर रेलवे क्रासिंग पर लखनऊ-बरौनी और मंडुआडीह-लखनऊ एक्सप्रेस की टक्कर हुई थी। रात हो रही थी। गुलाबी ठंड भी पड़ने लगी थी। हादसे की जगह से रेलवे और बस स्टेशन करीब 5-6 किमी की दूरी पर हैं। दो ट्रेनों के हजारों यात्री थे। रात का समय साधन उतने थे नहीं। यात्रियों को सामान और परिवार के साथ स्टेशन तक पहुंचना मुश्किल था। खास कर जिनके साथ छोटे बच्चे और महिलाएं थी। चर्चा होने लगी कि छोटे महाराज (पूर्वांचल में लोग प्रेम से उस समय लोग योगी जी को इसी नाम से पुकारते थे) आ जाते तो इस समस्या का हल निकल आता। हादसे की सूचना थी ही। लोगों के जरिए समस्या से भी वाकिफ हुए। फिर क्या था? वर्षो की परंपरा टूटी। वह दुर्घटना स्थल पर आए। साथ मे उनके खुद के संसाधन और समर्थक भी। उनके आने पर प्रशासन भी सक्रिय हुआ। देर रात तक सबको सुरक्षित स्टेशन पहुंचा दिया गया।

गिरीश पांडेय बताते हैं कि इस पीठ की परम्परा में ही महिला सुरक्षा का भाव सदा से रहा है। चाहे मठ की परम्परा हो या शासन की जिम्मेदारी, दोनों ही भूमिकाओं में वे महिला सम्मान को भूलते नहीं हैं। सरकार बनने के बाद से ही वह इस मुद्दे को लेकर काफी सक्रिय रहते हैं।

उन्होंने कहा कि 22 सितंबर 2022 की तारीख देश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल से इस दिन उत्तर प्रदेश विधानमंडल के मानसून सत्र का एक दिन सिर्फ महिलाओं के लिए समर्पित रहा। महिला विधायक ही सदन के पीठ की अध्यक्ष थीं। नेता सत्ता पक्ष और नेता प्रतिपक्ष के औपचारिक संबोधन के बाद सिर्फ महिलाओं ने ही सदन में अपनी बात रखी। यहां तक कि योगी आदित्यनाथ ने अपने संबोधन की शुरूआत अथर्ववेद के 'यस्य नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवता:' (जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं) से शुरू की।

पहले दिन मठ की पहली मंजिल पर कलश स्थापना के साथ ही हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की खास पूजा आकर्षण में रहती है। नवरात्रि के अंतिम दिन होने वाले कन्या पूजन खुद पीठाधीश्वर के रूप में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कन्यायों का पांव पखारते हैं। भोजन कराते हैं और दक्षिणा देकर विदा करते हैं। यह भी महिलाओं के प्रति सम्मान का एक बहुत बड़ा संदेश है। मातृशक्ति के महत्व का यह है व्यावहारिक पक्ष गोरखनाथ में मातृशक्ति का व्यावहारिक पक्ष भी दिखता है।

पांडेय ने बताया कि मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश के मुखिया के रूप में भी वह स्थापित मिथ को तोड़ने के लिए नोएडा गये। मान्यता थी कि बतौर मुख्यमंत्री जो भी नोएडा गया वह फिर से उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री नहीं बना। योगी न केवल पांच साल तक मुख्यमंत्री रहे बल्कि छह महीने पहले सत्ता में लगातार दूसरी बार शानदार तरीके से वापसी का भी रिकॉर्ड भी रच दिया।

गिरीश ने बताया कि मुख्यमंत्री बनने के बाद भी पीठ की परंपरा के अनुसार योगी आदित्यनाथ ने मातृशक्ति की सुरक्षा, सम्मान एवं स्वालंबलन के लिए अनेक कार्यों को गति दिया। पहले कार्यकाल से ही दायित्व के अनुसार एक बड़े फलक पर इस भूमिका को पूरी संजीदगी से निभा रहे हैं।

--आईएएनएस

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Web Title-Gorakshpeeth went out-of-the-box for public welfare
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