भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनसे जुड़ाव स्थापित किया। उन्हें तबतक बार-बार
बताया कि मोदी सरकार ने आपके लिए ये काम किया है, जबतक कि उनसे वोट नहीं
ले लिया।
लेकिन बात इतने से भी नहीं बनने वाली थी। क्योंकि बेरोजगारी के कारण युवा
वर्ग बुरी तरह परेशान और नाराज था। युवाओं को अपने पाले में करने के लिए
भाजपा के पास कोई औजार नहीं था। बेरोजगारी 45 साल के सबसे उच्च स्तर पर
पहुंच चुकी थी। नोटबंदी और जीएसटी ने कोढ़ में खाज का काम किया था। और
सामने सपा-बसपा-रालोद का अपराजेय कहा जाने वाला गठबंधन था।
इसी
बीच बिल्ली के भाग से छीका टूटा, और पुलवामा में बीएसएफ के काफिले पर
पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने हमला कर दिया, 40
जवान मारे गए। उसके बाद भारतीय वायुसेना ने बालाकोट में आतंकी शिविर पर एयर
स्ट्राइक की। भाजपा और इसके नेताओं ने भाषणों में खुलकर इसका श्रेय लिया
और अपनी शौर्यगाथा का बखान किया- 'हमने पाकिस्तान को घर में घुस कर मारा।'
यह
कुछ इस तरह था, जैसे भाजपा ऐसी किसी घटना का इंतजार कर रही थी। फिर क्या
देश में राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा की लहर चल पड़ी। देश की आवाम
खासतौर से युवा वर्ग राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर अपनी बेरोजगारी भूलकर
मोदी का मुरीद हो गया। जाति की ही नहीं, सारी गांठें खुल गईं। उसके बाद जो
हुआ, चुनाव परिणाम के रूप में सामने है। भाजपा अपनी सहयोगी अपना दल के साथ
मिलकर उप्र में 62 सीटें जीतने में कामयाब हो गई। सपा-बसपा गठबंधन को मात्र
15 सीटें मिलीं। कांग्रेस एक सीट पर सिमट गई। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल
गांधी भी अपनी पारंपरिक सीट अमेठी हार गए।
(आईएएनएस)
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