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संसद के इतिहास के बहाने आपातकाल की यादों को कुरेदने की कवायद !

An attempt to erase the memories of Emergency in the name of history of Parliament! - Lucknow News in Hindi

लखनऊ। समाजवादी पार्टी अगले सप्ताह होने वाले संसद के विशेष सत्र से पहले अंतर्विरोधों में फंस गई है।
हालाँकि पार्टी विशेष सत्र बुलाने को लेकर निश्चित रूप से भाजपा के खिलाफ है, लेकिन वह जानती है कि सिर्फ तीन सदस्यों के साथ वह किसी भी तरह से कोई खास फर्क नहीं डाल सकती।

सपा सांसद प्रोफेसर राम गोपाल यादव ने कहा, “जिस तरह से यह सत्र बुलाया गया है वह सभी स्थापित लोकतांत्रिक मानदंडों के खिलाफ है। सरकार को सत्र बुलाने से पहले सभी दलों से विचार-विमर्श करना चाहिए था। जो एजेंडा अब सार्वजनिक किया गया है वह भी अस्पष्ट है।”

सपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा सकती क्योंकि उसके पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है।

उन्‍होंने कहा, “हम उत्तर प्रदेश में बुलडोजर राजनीति के दुरुपयोग, विपक्षी नेताओं को प्रताड़ित करने और निर्दोष लोगों को निशाना बनाने वाली मुठभेड़ नीति की ओर देश का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, लेकिन हमें समय की कमी का सामना करना पड़ेगा। जिस तरह से सत्र बुलाया गया है और भाजपा जिस तरह की राजनीति कर रही है, उस पर हम अपना विरोध दर्ज कराएंगे।''

विशेष सत्र के एजेंडे में कहा गया है कि 18 सितंबर से शुरू होने वाले पांच दिवसीय सत्र के पहले दिन संसद में संविधान सभा से लेकर 75 साल की यात्रा पर चर्चा होगी।

कई लोगों का मानना है कि यहीं पर भाजपा ने एक मुश्किल खड़ी कर दी है।

एक राजनीतिक विश्लेषक के मुताबिक भाजपा ने बहुत ही चतुराई से विपक्षी 'इंडिया' गठबंधन में विभाजन का रास्ता तैयार कर लिया है।

विश्लेषक ने कहा, “जब संसद की यात्रा पर चर्चा की जाएगी, तो भाजपा आपातकाल पर ध्यान केंद्रित करेगी और समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियां इसके खिलाफ बोलने के लिए मजबूर हो जाएंगी। 'इंडिया' गुट के भीतर विभाजन अपने आप उभरेंगे और भाजपा यही चाहती है। वह आम लोगों को भी आपातकाल के दौरान हुए अत्याचारों की याद दिलाना चाहती है।”

एक सपा नेता ने सहमति जताते हुए कहा, ''मुझे नहीं पता कि पार्टी आपातकाल के खिलाफ किस हद तक बोलेगी, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारे नेता उस दौर के सबसे बड़े पीड़ित रहे हैं और जब आपातकाल की चर्चा होती है, तो 'इंडिया' गठबंधन का कोई भी सदस्य इसकी सराहना करने वाला नहीं है।”

संयोग से, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पहले से ही उत्तर प्रदेश में परस्पर विरोधी स्वर में बोल रही हैं जो उत्‍तर प्रदेश में विपक्षी गठबंधन के भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय राय ने उत्तराखंड के बागेश्वर उपचुनाव में कांग्रेस की हार के लिए समाजवादी पार्टी को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा, "अगर सपा ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा होता तो कांग्रेस जीत जाती।"

राय ने यह भी घोषणा की कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इससे स्‍वाभाविक रूप से सीट बंटवारे के सभी विकल्प बंद हो जाएंगे।

संसद सत्र दोनों विपक्षी दलों के बीच सौहार्द्र की कमी को प्रतिबिंबित कर सकता है।

भाजपा जाति जनगणना मुद्दे से भी ध्यान भटकाना चाहेगी - ऐसा कुछ जिसके साथ वह बहुत सहज नहीं है - और इसके लिए वह ऐसे मुद्दे लाएगी जो विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस को कटघरे में खड़ा कर सकते हैं।

एक भाजपा नेता ने विशेष सत्र के मूड का स्पष्ट संकेत देते हुए कहा, “हम एक राजनीतिक दल हैं और हम निश्चित रूप से अपने प्रतिद्वंद्वियों को एक जगह खड़ा कर देंगे – यही तो राजनीति है। हम लोगों को बताएंगे कि कैसे कुछ पार्टियों ने दशकों तक देश को लूटा है और मोदी ने केवल नौ वर्षों में लोगों के लिए कितना कुछ किया है।”(आईएएनएस)

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