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झांसी मेडिकल कॉलेज : जिंदगियों की जंग और मौत का मातम

Jhansi Medical College: Battle of lives and mourning of death - Jhansi News in Hindi

झांसी। महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज की वह रात, जब उम्मीदें राख बन गईं और मासूम सांसें धुएं में खो गईं, हमेशा के लिए दिलों को चीरने वाली दास्तां बन गई है। नवजात शिशु गहन चिकित्सा कक्ष (एनआईसीयू) में लगी आग ने 10 मासूमों की जान ले ली। उनके रोने की गूंज अब भी दीवारों में कैद है, और उनके परिजनों की चीखें आसमान को चीर रही हैं। शुक्रवार की रात 10:30 बजे अस्पताल की एनआईसीयू में आग लगी। वहां भर्ती 54 नवजात, जो अपनी छोटी-छोटी सांसों के सहारे जिंदगी से लड़ रहे थे, आग और धुएं में घिर गए। चीख-पुकार, दौड़भाग, और अफरातफरी के बीच स्टाफ ने 20 बच्चों को बचा लिया, लेकिन 10 मासूम जिंदगी इस जंग में हार गईं।
एक चश्मदीद कृपाल सिंह राजपूत की आंखों में आंसू थे, जब उन्होंने बताया, **"हमने 20 बच्चों को बचाने की कोशिश की। लेकिन जब अंदर देखा, तो कुछ बच्चे ऑक्सीजन मास्क से बंधे हुए थे। उन्हें उठाते वक्त उनकी नन्ही उंगलियां हाथों में सिहर रही थीं।"**
अस्पताल के बाहर माताओं की भीड़ लगी थी। एक मां अपने आंसुओं के बीच चिल्ला रही थी, "मेरा बच्चा कहां है? मुझे मेरा लाल चाहिए।" अस्पताल के कर्मचारी बेबस नज़र आ रहे थे। किसी के पास जवाब नहीं था।
ऋषभ यादव, जो उस वक्त अस्पताल के पास मौजूद थे, ने बताया, **"लोग अपने बच्चों को गोद में उठाए भाग रहे थे। कई मां-बाप को तो यह भी पता नहीं था कि उनके बच्चे ज़िंदा हैं या नहीं। प्रशासन की जानकारी देने में देरी ने दर्द और बढ़ा दिया।"**
आंसुओं में डूबा शहर
अगले दिन उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक घटनास्थल पर पहुंचे। मुआवजे की घोषणा हुई—मृतकों के परिवारों को 5 लाख और घायलों को 50 हज़ार। लेकिन क्या ये रकम उन खोई हुई मासूम जिंदगियों को वापस ला सकती है?
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने सरकार पर निशाना साधते हुए लिखा, "यह सरकार की लापरवाही है। उन बच्चों के परिवारों को 1 करोड़ रुपये की मदद मिलनी चाहिए।"
लापरवाही या नियति?
मुख्य चिकित्सा अधीक्षक सचिन महोर ने दावा किया कि आग ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के गर्म होने से लगी। उन्होंने कहा, **"एनआईसीयू में ऑक्सीजन अधिक होने के कारण आग तेजी से फैली।"** लेकिन क्या यह लापरवाही नहीं थी कि ऐसी संवेदनशील जगह पर सुरक्षा के इंतजाम नाकाफी थे?
मौत के साए में जिंदगी
यह कहानी सिर्फ 10 बच्चों की मौत की नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की है जो पहले से ही टूट चुकी है। यह उन मांओं की कहानी है, जिनकी गोद सूनी हो गई। यह उन बच्चों की कहानी है, जिन्होंने अपनी पहली सांसें अस्पताल की मशीनों पर लीं और आखिरी सांसें आग की लपटों में खो दीं।
झांसी की वह रात अब सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि सवाल है—कितनी और मासूम जिंदगियां इस लापरवाही की बलि चढ़ेंगी?

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Web Title-Jhansi Medical College: Battle of lives and mourning of death
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