नोएडा। स्थानीय सरस्वती शिशु मंदिर में आयोजित प्रेरणा विमर्श-2024 के समापन समारोह में देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पंड्या ने मुख्य अतिथि के रूप में अपनी प्रेरणादायक उपस्थिति दी। पंच परिवर्तन स्व, समरसता, कुटुंब प्रबोधन, नागरिक कर्तव्य और पर्यावरण के सिद्धांतों पर आधारित यह विमर्श समाज में व्यापक और सार्थक बदलाव लाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
डॉ. चिन्मय पंड्या ने अपने ओजस्वी विचारों में भारतीय संस्कृति, मानवता और अध्यात्म के गहरे संबंधों को बताते हुए कहा कि "इंद्रप्रस्थ की भूमि से राष्ट्रीयता और मानवता को सभी तक पहुंचाना है। इस भूमि से निकले विचार संपूर्ण मानवता को दिशा देने की क्षमता रखते हैं। क्रांति घटने के लिए यह अनिवार्य है कि भीतर क्या घट रहा है। बाहर तो विमर्श होता रहेगा, लेकिन सच्ची प्रेरणा भीतर से ही प्राप्त होगी।" ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
उन्होंने भारत की ऋषि परंपरा की महत्ता बताते हुए कहा, "ये ऋषियों और तपस्वियों की भूमि है, जहाँ त्याग का जीवन और ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ की भावना हमारे चिंतन का हिस्सा रही है।"
डॉ. पंड्या ने यह भी कहा कि वसुधैव कुटुंबकम् की भावना को अपनाकर हमें समाज, पर्यावरण, और विश्व के कल्याण के लिए काम करना चाहिए। जब व्यक्ति बदलेगा, तो समाज बदलेगा और जब समाज बदलेगा, तब विश्व में भी सकारात्मक बदलाव आएगा।
पर्यावरण को पोषित करना और हमारे प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।" उन्होंने मातृवत् परदारेषु, परद्रव्येषु लोष्ठवत् जैसे श्लोकों के माध्यम से जीवन में त्याग, कर्तव्य और मानवता की सेवा के महत्व पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर अन्य विशिष्ट अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति रही, जिनमें मुख्य वक्ता सुनील अंबेडकर (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय संगठक), प्रीति दद्दू (अध्यक्ष, प्रेरणा शोध संस्थान न्यास), अतुल त्यागी (अध्यक्ष, प्रेरणा विमर्श-2024) और को. के. एन. यादव (अध्यक्ष, समापन समारोह) शामिल थे।
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