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गुरु-शिष्य परंपरा का अनुपम उदाहरण है गोरक्षपीठ, आखिर कैसे, यहां पढ़ें

Gorakshapeeth is a unique example of Guru-disciple tradition. - Gorakhpur News in Hindi

गोरखपुर । गोरखपुर स्थित नाथपंथ का मुख्यालय, गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियां गुरु-शिष्य परंपरा का बेमिसाल उदाहरण है। सिर्फ यह परंपरा ही नहीं इनका सामाजिक सरोकार भी। खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए गए काम। करीब नौ दशक पहले (1932) में स्थापित महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद आज विशाल वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। इसकी चार दर्जन से अधिक शिक्षण संस्थाएं पूवार्ंचल में शिक्षक पुनर्जागरण का प्रतीक बन चुकी हैं। इनमें शिशु से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक लगभग हर विधा का शिक्षण कार्य होता है। महायोगी गुरु गोरक्षनाथ एकीकृत विश्वविद्यालय के शुरू होने के बाद तो गोरखपुर न केवल उत्तर भारत बल्कि नेपाल की तराई के शिक्षण क्षेत्र का हब बन जाएगा।

मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने इसे सैनिक स्कूल, वेटेरनरी महाविद्यालय और आयुष विश्वविद्यालय के रूप में और विस्तार दिया। कमोबेश यही स्थिति स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी है। पिछले कई वषों से गुरुगोरक्षनाथ चिकित्सालय पूवार्ंचल के लोगों के लिए आधुनिक और सस्ते चिकिस्ता का सबसे बड़ा केंद्र है। नसिर्ंग कलेज में प्रशिक्षित नर्से देश दुनिया में अपनी सेवाएं दे रही हैं।

मेडिकल कॉलेज की बेहतरी, इंसेफेलाइटिस के इलाज और एम्स के लिए बतौर सांसद योगी ने सड़क और संसद तक जो संघर्ष किया उससे पूरा देश वाकिफ है। मुख्यमंत्री बनने के बाद इस संबंध में जो काम हुए वह भी सबको पता है।

दरअसल इन दोनों क्षेत्रों में पीठ के तीनों पीढ़ियों की रुचि थी। योगी के दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षण संस्थान की स्थापना की थी। यही नहीं गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए महाराणा प्रताप महाविद्यालय का एक भवन भी दे दिया था। उनके समय में ही मंदिर परिसर में उनके नाम से एक आयुर्वेदिक केंद्र की भी स्थापना की थी। अपने गुरु द्वारा शुरू किए गये इन सारे प्रकल्पों को अपने समय में उनके शिष्य ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने हर संभव विस्तार दिया। अब अपने गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के सपनों मौजूदा पीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रंग भर रहे हैं।

लंबे समय तक पीठ को कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पांडेय बताते हैं कि अपने समय मे गुरु का आदेश योगी के लिए वीटो पॉवर सरीखा था। अलबत्ता उम्र दराज होने और याददाश्त कम होने पर वह किसी काम को करने के बाद साधिकार यह कहते थे कि एक बार छोटे को भी दिखा लेना। संयोग से मैं कुछ भावुक क्षणों का भी गवाह हूं। जेल से रिहा होने के बाद जब योगीजी अपने गुरु को प्रणाम करने गए तो दोनों की आंखे सजल थीं। अवेद्यनाथ के बीमार होने पर जिस तरह योगी ने उनकी देखरेख की वह भी अनुकरणीय है। उनके निधन के बाद बातचीत के दौरान तो वह खुद पर काबू नहीं रख सके।"

--आईएएनएस

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Web Title-Gorakshapeeth is a unique example of Guru-disciple tradition.
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