अयोध्या | हिंदू धर्म व जनमानस के
गहरे तक रचे-बसे शहर अयोध्या की बीते कुछ वर्षो में हिंदू-मुस्लिम के बीच
बैरभाव और धार्मिक व राजनीतिक संघर्ष की शरण स्थली के रूप में पहचान बनने
लगी और इसकी गूंज देश और दुनिया में सुनाई देने लगी।
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लेकिन, जिस बात को शायद कम ही लोग जानते हैं वह यह कि अयोध्या
परंपरागत रूप से धार्मिक व सांप्रदायिक सौहार्द की नगरी रही है। यह आम बात
है कि कोई मुसलमान दर्जी भगवान राम की मूर्तियों के लिए कपड़े सिले और
हिंदू पुजारी किसी पुरानी मस्जिद के जीर्णोद्धार में मदद करे।
यहां
हिंदू कट्टरपंथियों द्वारा 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद के विध्वंस को 6
दिसंबर को 25 साल पूरे हो रहे हैं लेकिन अयोध्यावासी इसके बारे में बात
करते हुए आज भी दुखी हो जाते हैं। साथ ही कहते हैं कि उनकी सदियों पुरानी
सांस्कृतिक सहयोग की विरासत और एक दूसरे के धार्मिक कार्यो में खुलकर
हिस्सा लेने की प्रवृत्ति और अयोध्या की धर्मनिरपेक्षता के रंग
मंदिर-मस्जिद के राजनीतिक व कानूनी विवाद के बावजूद बरकरार हैं।
सैयद
मोहम्मद इब्राहिम दरगाह के मोहम्मद चांद काजियाना कहते हैं कि अयोध्यावासी
हिंदू और मुसलमान दोनों का कहना है कि 1992 में वहां दंगा भड़काने वाले
लोग बाहरी थे, स्थानीय लोग तो अपने धर्म व पंथ का ख्याल किए बगैर एक दूसरे
की रक्षा में जुटे थे। शहर की कुल 60,000 आबादी में मुस्लिम छह फीसदी हैं
लेकिन उन्होंने कभी हिन्दुओं से किसी भी प्रकार का भेदभाव अनुभव नहीं किया।
काजियाना ने आईएएनएस संवाददाता से बातचीत में बताया कि कार सेवकों
ने जब 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को ढहाया था तो वहां के स्थानीय
हिंदूओं ने दरगाह की रक्षा की थी।
उन्होंने बताया कि 900 साल
पुरानी इस दरगाह में हिंदू श्रद्धालु भी आते हैं। हिंदू समुदाय के कई लोग
ऐसे हैं जो यहां रोजाना आते हैं। यह हमारे सदियों पुराने भाईचारे का प्रतीक
है। जब इस पर हमला हुआ तो हमारे हिंदू भाई इसे चारों ओर से घेरकर खड़े हो
गए और उन्होंने इसकी रक्षा की थी।
फैजाबाद जिले, जिसके अंतर्गत
अयोध्या आता है, में करीब 30 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है। काजियाना ने
बताया कि जिले के निवासियों में एक अघोषित समझौता है कि वे राजनीतिज्ञों और
बाहरी लोगों की ओर से बैरभाव फैलाने वाले भाषण से आंदोलित नहीं होंगे।
उन्होंने
कहा कि यहां सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल के तौर पर देखा जा सकता है कि
मुसलमान देवी देवताओं के वस्त्रों की सिलाई करते हैं और रामलीला में भाग
लेते हैं। इसी प्रकार हिंदू मस्जिदों के जीर्णोद्धार में हाथ बंटाते हैं और
जरूरत पड़ने पर उनकी मदद करते हैं।
काजियाना की बातों का समर्थन
करते हुए बर्फी महाराज, जो खुद को हिंदू सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं, ने
कहा कि बाबरी मस्जिद को विश्वहिंदू परिषद के लोगों ने गिराया और उसमें
स्थानीय निवासियों की कोई भूमिका नहीं थी।
उन्होंने कहा, "हम लोग न
तो नफरत पैदा करने वाले भाषणों से प्रभावित थे और न ही विध्वंस अभियान में
शामिल थे। वीएचपी की ओर मस्जिद को ढहाने के लिए यहां बाहरी लोगों को लाया
गया था। राम जो धर्मनिरपेक्षता की शिक्षा के लिए चर्चित हैं, उनकी
जन्मस्थली के लोग कैसे ऐसा पापकर्म कर सकते हैं?"
धार्मिक सद्भाव की
मिसाल पेश करते हुए उन्होंने बताया कि अयोध्या में हनुमानगढ़ी के पास एक
मस्जिद का जीर्णोद्धार हिंदू महंत ने करवाया था और अस्थायी मंदिर में
स्थापित राम की मूर्ति के कपड़ों की सिलाई मुसलमान दर्जी करते थे।
सादिक
अली उर्फ बाबू खान ने बताया कि उन्होंने अब तक हिंदू देवताओं के सात से आठ
सेट कपड़ों की सिलाई की है। बाबरी मस्जिद-राममंदिर मामले की बातचीत में
भागीदार सादिक ने कहा कि मस्जिद तोड़ा जाना दुर्भाग्यपूर्ण था लेकिन उन्हें
विवादित भूमि पर राम मंदिर के निर्माण को लेकर कोई आपत्ति नहीं है।
उन्होंने
कहा, "हमें राम में विश्वास है और हनुमानगढ़ी में नमाज अदा कर चुके हैं।
अगर हिंदू अपने अराध्य भगवान राम का बड़ा मंदिर चाहते हैं तो हमें कोई
दिक्कत नहीं है। हमें पास में मस्जिद के लिए सिर्फ भूमि का एक टुकड़ा
चाहिए।"
मोहम्मद सलीम खड़ाऊ बनाते हैं जिसका उपयोग परंपरागत रूप से
साधु-संत करते हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी दोनों समुदायों के लोगों
के बीच यहां तनाव नहीं देखा है। वे सभी एक दूसरे पर अपनी जरूरतों के लिए
निर्भर हैं।
स्थानीय लोगों से बातचीत में यह बार-बार उभर कर सामने
आया कि लोग चुनावी लाभ के लिए माहौल को बिगाड़ने का आरोप नेताओं पर लगाते
हैं और उनकी निंदा करते हैं।
ठेकेदार शैलेंद्र पांडे ने कहा कि
अयोध्या के लोगों से आज जिसे मंदिर-मस्जिद मसला कहा जा रहा है, उस पर शायद
ही कभी बात की गई। उनका कहना था कि नेताओं और बाहरी लोगों ने शहर की
नकारात्मक तस्वीर पेश की है और राम के नाम व मंदिर का इस्तेमाल किया है।
नौगाजा दरगाह के अध्यक्ष मोहम्मद नदीम ने कहा कि नेता अब मंदिर निर्माण में अड़ंगा डाल रहे हैं।
आईएएनएस
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