इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश में नोएडा के बहुचर्चित आरुषि-हेमराज हत्याकांड के मामले में 9 साल 4 महीने और 26 दिन बाद बड़ा फैसला आया और इस मामले में तलवार दंपति को बरी कर दिया। ऐसे में सीबीआई जांच पर सवाल खडे हो गए है। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर आरुषि और हेमराज की हत्या किसने की। आरुषि-हेमराज हत्याकांड की जांच 9 साल बाद फिर उसी जगह आकर अटक गई है। 9 साल पहले 15 व 16 मई 2008 की रात को जब आरुषि की हत्या हुई थी तब सवाल यह उठा था कि हत्यारा कौन है? मामले की जांच शुरू हुई और जांच एजेंसी की बदलती थिअरी और उस पर उठते सवालों के बीच यह केस आगे बढ़ता रहा। शुरू से लेकर आखिर तक यह केस मिस्ट्री बनी रही और अब भी यह सवाल कायम है कि आखिर कातिल कौन है? आपको बता दें कि डॉ तलवार की नाबालिग पुत्री आरुषि की हत्या वर्ष 2008 में 15 मई की रात नोएडा के सेक्टर 25 स्थित घर में ही कर दी गई थी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
विवेचना के दौरान अगले ही दिन घर की छत पर उनके घरेलू नौकर हेमराज का शव भी पाया गया था। इस हत्याकांड में नोएडा पुलिस ने 23 मई को डॉ. राजेश तलवार को बेटी आरुषि और नौकर हेमराज की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। 1 जून को इस मामले की जांच सीबीआई को स्थानांतरित हो गई। सीबीआई की जांच के आधार पर गाजियाबाद सीबीआई कोर्ट ने 26 नवंबर, 2013 को हत्या और सबूत मिटाने का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। तब से तलवार दंपति जेल में बंद हैं। लेकिन, अब हाईकोर्ट ने दोनों को इस मामले में बरी कर दिया और आज भी सवाल यही बना हुआ है कि आखिर आरुषि और हेमराज की हत्या किसने की।
तलवार दंपति ने नहीं की बेटी आरुषि की हत्या:हाईकोर्ट
आरुषि-हेमराज हत्याकांड के मामले में हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा कि तलवार दंपति ने अपनी बेटी आरुषि की हत्या नहीं की है। अदालत ने साफ तौर पर कहा कि माता-पिता को सिर्फ इसलिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि वह घटना की रात घर में मौजूद थे। उन्हें इस मामले से बरी किया जाता है। न्यायमूर्ति बी.के. नारायण और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्र की खंडपीठ ने जांच एजेंसी की जांच में कई खामियां पाई और राजेश तलवार और नुपूर तलवार को को बरी कर दिया।
सीबीआई जांच पर उठे सवाल
तलवार दंपती का दावा था कि सीबीआई की कहानी यह है कि आरुषि और हेमराज आपत्तिजनक अवस्था में थे और जब तलवार दंपती ने इसे देखा तो एकाएक गुस्से में पहले गोल्फ स्टिक से दोनों के सिर पर वार किया और फिर ब्लेड से गला काट दिया। इसके बाद हेमराज की बॉडी छत पर घसीटकर ले गए। तलवार का कहना था कि अगर ऐसा ही हुआ कि कत्ल नीचे कमरे में हुआ तो कमरे में हेमराज के खून के धब्बे मिलने चाहिए थे और सीबीआई को वह धब्बे क्यों बरामद नहीं हुए।
सीबीआई ने आरुषि के बेड से लेकर तमाम जगह सैंपल उठाए लेकिन हेमराज के खून के निशान क्यों नहीं दिखे। सीबीआई का दावा था कि दोनों आपत्तिजनक अवस्था में थे तो ऐसे में मौके पर सीबीआई को हेमराज के शरीर का कोई सैंपल क्यों नहीं मिला। आरुषि का सैंपल भी नेगेटिव पाया गया था। सीबीआई के गोल्फ स्टिक की थिअरी पर भी तलवार दंपती ने सवाल उठाया था और कहा था कि पहले सीबीआई ने कहा कि स्टिक नंबर 5 से वार हुआ था, लेकिन बाद में कहा कि स्टिक नंबर 4 से वार किया गया था। तलवार दंपती का कहना था कि सीबीआई की चार्जशीट में इस बात का जिक्र नहीं है कि कृष्णा के तकिए से हेमराज के खून के निशान कैसे मिले, जबकि शुरुआती जांच में ये बातें आई थीं।
सीबीआई ने इस मामले में नया तर्क गढ़ा कि जब जांच के लिए तकिए को भेजा गया था तो तकिए की अदला-बदली हो गई थी। कृष्णा के तकिए पर हेमराज का खून मिलना एक अलग ही ऐंगल बताती है और यह पुख्ता सबूत था, लेकिन सीबीआई ने इसे नजरअंदाज कर दिया। साइंटिफिक टेस्ट में नौकरों के खिलाफ पॉजिटिव रिपोर्ट थी, लेकिन सीबीआई ने कहा कि सबूत नहीं है। सीबीआई के पास इस बात के पुख्ता सबूत नहीं है कि हेमराज और आरुषि आपत्तिजनक अवस्था में थे। दोनों का कत्ल कमरे में हुआ और फिर हेमराज के शव को घसीटकर छत पर ले जाया गया। तलवार का दावा था कि केस परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित था और साक्ष्यों की कडिय़ां टूट रही हैं।
फैसले के बाद तलवार दंपति खुश
अदालत का फैसला सामने आने के बाद डॉसना जेल के अधिकारियों ने कहा, हमें मालूम चला है कि तलवार दंपति को बरी कर दिया गया है। फैसले के दिन सुबह वह थोड़ा तनाव में दिख रहे थे, लेकिन फैसला आने के बाद वे काफी खुश हैं। जेलर से यह पूछे जाने पर कि दोनों को कब तक रिहा किया जाएगा, तो उन्होंने कहा कि जैसे ही न्यायालय के फैसले की कॉपी उन्हें मिल जाएगी उन्हें कानूनी प्रक्रिया पूरी कर छोड़ दिया जाएगा। गौरतलब है कि इस मामले में आरोपी दंपति डॉ़ राजेश तलवार और नुपुर तलवार ने सीबीआई अदालत गाजियाबाद की ओर से आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील दाखिल की थी।
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