जब पैदा हुआ संवैधानिक संकट टाला
उत्तर प्रदेश में इस वक्त योगी सरकार पूर्ण बहुमत में है और संवैधानिक रूप से शासन कर रही है। लेकिन बात 1998 की है। उस वक्त बेहद ही सख्त कहे जाने वाले कल्याण सिंह की सरकार सूबे में थी। तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने 23 फरवरी 1998 को यूपी के कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया और लोकतांत्रिक कांग्रेस दल के नेता जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी।
फिर क्या था यूपी समेत पूरे देश में भूचाल आ गया। लोगों को लगा कहीं फिर इमरजेंसी के हालात न हो जाये। क्योंकि अब तो संवैधानिक संकट पैदा हो गया था। आश्चर्य जनक तरीके से ही सही यूपी में दो-दो मुख्यमंत्री हो गये।
उस वक्त डा. नरेंद्र कुमार सिंह गौर ने राज्यपाल के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। सुनवाई होने लगी तो न्यायमूर्ति वीरेंद्र दीक्षित व न्यायमूर्ति डीके सेठ की खंडपीठ ने कल्याण सिंह की बर्खास्तगी पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर राज्यपाल चाहें तो कल्याण सिंह को बहुमत साबित करने का आदेश दे सकते हैं। फिर क्या था यूपी में आया संवैधानिक संकट टल गया। लेकिन उस दौरान आलम यह था कि कोर्ट का फैसला सुनने के लिए हाईकोर्ट के चारों तरफ सड़के पब्लिक और नेताओं से खचाखच भरी थी यह वह दौर था जब हिंदुस्तान के सबसे बड़े सियासी संकट का हाल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया था ।
ये दिलचस्प आंकड़ा
क्या आप जानते हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के ऐतिहासिक केस में किस जज ने फैसला सुनाया था, नहीं ! तो हम बताते हैं आपको उन ऐतिहासिक जज और उनके केस फैसले के बारे में
1 - चौरीचौरा लूट कांड केस
इस केस की सुनवाई सर मियर्स व जस्टिस पिगॉट ने करते हुये क्रांतिकारियों को सजा सुनाई थी।
2 - क्रांतिकारियों द्वारा किया गया कानपुर बम कांड केस`
इस केस की सुनवाई न्यायमूर्ति इकबाल अहमद एवं जस्टिस आलसॉप ने की थी।
3 - प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी केस
इस केस की सुनवाई जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने करते हुये प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का निर्वाचन रद्द कर दिया था।
4 - इमरजेंसी में मीसा कानून में गिरफ्तारी
इस केस की सुनवाई न्यायमूर्ति केबी अस्थाना ने करते हुये नेताओ की गिरफ्तारी रद्द कर दी थी।
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