अमरीष मनीष शुक्ला,इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट 151 साल का हो गया है। लेकिन इन डेढ सौ सालों में एशिया के सबसे बड़े हाईकोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने ऐतिहासिक और साहसिक फैसलों से पूरे दुनिया में न्यायपालिका के लिये नजीर पेश की। जिसे गर्व के साथ हर हिंदुस्तानी को पढना व जानना चाहिये। इलाहाबाद हाईकोर्ट की साख का ही असर है कि यहां के निर्णय को अमेरिका के न्यायालयों में भी महत्वपूर्ण निर्णयों की श्रेणी में मानकर बड़े सम्मान के साथ पढ़े जाता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की निर्भीक क्षमता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां से प्रधानमंत्री तक के विरुद्ध भी निर्णय दिया जा चुका है। यहां तक की अयोध्या में राम लला मंदिर के लिये भी फैसला सुना चुका है।
आजादी के मतवाले क्रांतिकारियों से लेकर, अण्डरवर्ल्ड डाॅन, नेता से लेकर अफसर, घोटालों से लेकर अपराध व आम आदमी के मुकदमों में यहां के निर्णय न्यायपालिका के लिये उदाहरण बनते रहे हैं। क्रांतिकारियों का कानपुर बम कांड, चौरीचौरा केस, आगरा कॉन्सपिरेंसी , पीएम इंदिरा गांधी, जगदंबिका पाल केस इतिहास में दर्ज वह स्वर्णिम फैसले हैं जो न्यायपालिका की मौजूदगी में भारत की इस अदालत का इतिहास सुनाते रहेंगे।
आने वाले वक्त में इस हाईकोर्ट की पूरी प्रक्रिया यानी मुकदमों से लेकर दस्तावेज डिजिटल हो जायेंगे। तब इसका रूतबा कहीं और बुलंद हो जायेगा।
दुनिया के सबसे शार्प बैरिस्टर यहां करते थे प्रैक्टिस
इलाहाबाद हाईकोर्ट में दुनिया के सबसे टाप और शार्प बैरिस्टर प्रैक्टिस करते थे। जिनमे पं. मोतीलाल नेहरू, पं.मदन मोहन मालवीय, सर तेज बहादुर सप्रू, बाबू पुरुषोत्तम दास टंडन, पं. जवाहर लाल नेहरू आज भी इस पेशे में आने वाले लोगों के लिये आदर्श हैं और इनकी चर्चा विदेशों में जमकर होती थी। साथ ही वहां के वकील इनसे परामर्श लेकर बड़े बड़े केश की पैरवी किया करते थे। इस कड़ी में न्यायमूर्ति रहे गिरिधर मालवीय को कौन भूल सकता है। पं. कन्हैयालाल मिश्र, बाबू जगदीश स्वरूप, सतीश चंद्र खरे, श्यामनाथ कक्कड़, शांतिभूषण, पं.प्रकाश चंद्र चतुर्वेदी, शेखर सरन, एसएन मुल्ला ने यही से पूरे देश में ख्याति आर्जित की। शांतिभूषण व श्यामनाथ कक्कड़ तो केंद्रीय विधि मंत्री भी रहे। बाबू जगदीश स्वरूप फौजदारी मामलों के प्रसिद्ध वकील रहे तो आनंद देव गिरि सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल रहे। जबकि यहां यहां के न्यायाधीश जस्टिस आरएस पाठक, जस्टिस केएन सिंह, जस्टिस वीएन खरे देश के प्रधान न्यायाधीश भी बने।
जब प्रधानमंत्री इंदिरा का निर्वाचन रद्द होने पर दुनिया हुई स्तब्ध
बात उस समय की है जब इंदिरा गांधी देश की जनता के दिलों पर राज कर रही थी। 1971 में संसदीय चुनाव का फिर से बिगुल बजा। इंदिरा रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में मैदान में उतरी। उस समय प्रधानमंत्री के विरुद्ध देश भर में चर्चित दिग्गज राजनेता राजनारायण चुनाव लड़ने मैदान में आ गये।चुनाव सम्पन्न हुआ और काउंटिंग में इंदिरा गांधी 18 लाख तीन हजार 309 वोट पाकर रिकॉर्ड मतो से जीत गयी। लेकिन तब राजनारायण ने इंदिरा की जीत को हाईकोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने आरोप लगाया की, इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया है उनका चुनाव निरस्त कर दिया जाए। उनकी याचिका संख्या (5/1971) हाईकोर्ट ने स्वीकार कर ली। इस मामले में शांति भूषण राज नारायण के वकील थे । हाइकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुना और 12 जून 1975 को कोर्टरूम नंबर 24 में जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने एतिहासिक फैसले को सुनाते हुए इंदिरा गाँधी का चुनाव रद्द कर दिया था । साथ ही इंदिरा गांधी के छह वर्ष के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाते हुये अयोग्य भी ठहरा दिया। इलाहबाद हाइकोर्ट ने हाईकोर्ट के दिग्गज वकील पंडित मोती लाल नेहरू की पोती और आजाद भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के खिलाफ ऐसा फैसले सुनाया था कि पूरी दुनिया हिल गयी थी।
देश में जब इमरजेंसी लगी
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 27 जून 1975 को देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी । इस घोषणा के बाद गैर कांग्रेसी प्रतिद्वंद्वी राजनेताओं के लिये मुश्किल खड़ी हो गई । उन्हे मीसा कानून के तहत गिरफ्तार किया जाने लगा। एक के बाद एक नेताओ को जेलों में ठूंसा जाने लगा। तब भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई । कोर्ट ने 6885/1975 नंबर पर उनकी याचिका स्वीकार कर ली। उसी समय वरिष्ठ अधिवक्ता वीरेंद्र कुमार सिंह चौधरी भी सामने आये और याचिका दायर की। रिकार्ड में उनकी याचिका 7428/1975 आज भी दर्ज है। इमरजेंसी में मीसा कानून के तहत नेताओ की गिरफ्तारी को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी गई । इन दोनो याचिकाओ पर तत्कालीन मुख्य न्यायमूर्ति केबी अस्थाना की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सुनवाई शुरू की अपने ऐतिहासिक फैसले में नेताओं की गिरफ्तारी निरस्त कर दी।
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