इलाहाबाद। इलाहाबाद में प्रशासनिक लापरवाही का शर्मनाक वाकया सामने
आया है। जहां भूख से तड़प-तड़पकर रामरती नाम की महिला ने दम तोड़ दिया। घटना
इलाहाबाद के खीरी देवरी गांव की है। सूचना पर प्रशासनिक महकमे में भूचाल मचा है।
सबको डर है कि कहीं उन पर सीएम योगी की गाज न गिरे। आनन-फानन में मृतका के घर
गेहूं चावल भी पहुंचा दिए गए। लेकिन क्या फायदा अब तो रामरती दुनिया में रही नहीं।
हां ये अनाज शायद उनके परिजनों की जान बचा ले। लेकिन यह अनाज ही उन्हे जख्म पर नमक
जैसा लग रहा है।
सूबे में योगी सरकार अपने ताबड़तोड़ फैसले से प्रशासनिक महकमे में हड़कंप मचाये हुये
है। लेकिन क्या फायदा जब उनके आदेशों का अनुपालन न हो। सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा
था कि सूबे में कोई भूख से मौत हुई तो सीधे डीएम नपेंगे। पर इस घटना का जवाबदेह
कौन है? क्योंकि अफसरों का कहना है कि बीमारी से महिला की मौत हुई है। सवाल यह है
साहब, अगर मौत बीमारी से हुई थी तो पोस्टमार्टम क्यों नहीं कराया गया और तो और घर
पर अनाज पहुंचाने की क्या जरूरत थी? फिलहाल अधिकारी जांच की बात कह रहे हैं। अब इस
जांच में क्या आएगा यह तो वक्त ही बतायेगा। लेकिन रामरती की मौत ने गरीबी का वह सच
उजागर किया है जिसे जानकर भी सरकारी तंत्र अंजान बनता है।
घर में नहीं था अनाज का एक भी दाना
रामरती के घर की जो तस्वीर सामने आयी है। उसे देखकर हकीकत और सरकारी दावे खुद
ही व्यथा कहते हैं। रामरती के घर में अनाज का एक दाना भी नहीं था। बेबसी और लाचारी
में दबे कुचले परिवार की मदद करने के लिए अभी तक प्रशासन क्यों सामने नहीं आया? यह
बहुत बड़ा सवाल है। जिम्मेदारों ने तो बड़ी ही बेशर्मी से यह कह दिया कि मौत बीमारी
से हुई है। लेकिन अब परिवार की मदद के लिये स्थानीय प्रशासन मुख्यमंत्री को पत्र
लिखेगा। आखिर क्यों? क्या मौत से पहले प्रशासन नहीं जागता।
इलाके के तहसीलदार साहब कहते हैं कि महिला एक साल से कैंसर से जूझ
रही है। अरे वाह तहसीलदार साहब! क्या बेबाकी से बोल गये आप... बीमार महिला के पास
जब खाने को कुछ नहीं था तो इलाज कहां से कराते और आपको जानकारी थी तो मदद के लिये
आगे क्यों नहीं आये? क्या तब मुख्यमंत्री को पत्र नहीं लिखा जा सकता था ? सरकारी महकमे की कार्रवाई देखिये जनाब... कहीं भूख से मौत का सच सामने न आ
जाये इसलिए पोस्टमार्टम तक नहीं कराया गया।
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