इलाहाबाद। भारत और विश्व इतिहास में 17 मार्च 1866
का दिन स्वर्ण अक्षरो में दर्ज है और हो भी क्यों नहीं... क्योंकि इसी दिन अपने बेबाक और ऐतिहासिक फैसलों के लिए प्रसिद्ध इलाहाबाद
हाईकोर्ट अस्तित्व में आया था। अंग्रेजी हुकूमत के दरमियान वजूद में आये व देश के
सबसे पुराने न्यायालयों में शुमार इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बीते वर्ष मार्च में
अपनी स्थापना की 150वीं वर्षगांठ भव्य रूप से मनायी थी। जिसका आखिरी जश्न आगामी 2 अप्रैल को होगा।
इसकी तैयारियां पूर्ण हो चुकी हैं।
लेकिन बहुत ही कम लोग इलाहाबाद उच्च न्यायालय के गौरवशाली इतिहास को
जानते होंगे। संगम नगरी की चमक को चार चांद लगाता और न्याय
की नगरी कहलाने वाला यह इलाहाबाद यूं ही नहीं दुनिया की नजर में रहता। एक लंबा सफर
तय कर बदलाव और न्याय की मिशाल बनकर इस कोर्ट ने खुद को
स्थापित किया है। यूं तो इलाहाबाद हाईकोर्ट की स्थापना 1866 में
ही हो गई थी। लेकिन शहर के बीचों बीच बनी इलाहाबाद हाईकोर्ट की मौजूदा ऐतिहासिक
इमारत सौ साल पहले अस्तित्व में आई। जिसका शताब्दी वर्ष भी मनाया गया। इस इमारत से
असाधारण कानूनी सेवायें किसी शानदार विरासत की तरह संजोयी गई हैं। जिस पर आम
जनमानस से लेकर कानूनी कर्तव्यों का पालन करने वाले गर्व करते हैं। इलाहाबाद
हाईकोर्ट को यह गौरव भी प्राप्त है कि यहां सबसे ज्यादा मुस्लिम न्यायाधीशों ने
अपने कानूनी कर्तव्यों का पालन किया है।
17 मार्च 1866 का दिन
बात 1861 की है तब अंग्रेजी हुकूमत भारत
पर शासन कर रही थी और ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ इसकी सर्वेसर्वा थी। उन दिनों
सदर अदालतों को समाप्त कर बम्बई, कलकत्ता और मद्रास की तीनों
प्रेसीडेंसियों के लिये एक-एक न्यायालय के गठन की रणनीति बनी। लेकिन भारत के उत्तर
भाग में ऐसा कुछ नहीं हो सका था। ब्रिटिश शासन की कानूनी न्याय व्यवस्था के लिये
यह रणनीति लागू करना आवश्यक था। जिसके तहत भारत के
उत्तरी-पश्चिमी प्रदेशों के लिये एक उच्च न्यायालय के गठन का प्लान तैयार हुआ। उस
समय महारानी एलिजाबेथ द्वारा जारी लेटर्स पेटेंट के जरिये हाईकोर्ट की नींव रखने
की पहल हुई और इंडियन हाई कोर्ट एक्ट, 1861 के तहत 17
मार्च,1866 को अगरा में मौजूदा इलाहाबाद
हाईकोर्ट अस्तित्व में आ गया।
सिर्फ 6 न्यायाधीश और गिनती के बैरिस्टर
आज इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या 160 स्वीकृत है। लेकिन अस्तित्व में आने पर यहां न्यायाधीशों की संख्या मात्र 6
रखी गई थी। उस वक्त उत्तरी-पश्चिमी प्रान्तों के लिए स्थापित इस
हाईकोर्ट के पहले मुख्य न्यायाधीश बने सर वाल्टर मॉर्गन और उनके साथ पांच और
न्यायाधीशों के यहां नियुक्ति मिली। हालांकि वर्तमान समय में इलाहाबाद में
न्यायधीशों के लगभग आधे पद खाली पड़े हैं। आज हाईकोर्ट में भले ही वकीलों की बाढ हो, 17
हजार से भी ज्यादा वकील यहां हैं। लेकिन उस वक्त वकील ( बैरिस्टर)
दर्जन भर के आंकड़े में थे। हालांकि तब मुकदमे बहुत कम थे और सबसे ज्यादा विद्वान
बैरिस्टर को ही माना जाता था।
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