अमरीष मनीष शुक्ला , इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मजदूरों के एक मामले में केन्द्र की मोदी
सरकार को नोटिस जारी है। सरकार को इस मामले में सरकार को अब अपना पक्ष 23
मई को रखना है। सरकार, कोर्ट के सवालों के जवाब में हलफनामा भी दाखिल
करेगी। दरअसल भारतीय खाद्य निगम के नियमित मजदूरों का वेतनमान घटा कर
संविदा पर मजदूर रखे गये थे। जिसे हाईकोर्ट में चैलेंज किया गया है। मामले
की सुनवाई जस्टिस अरुण टण्डन और जस्टिस रेखा दीक्षित की खंडपीठ ने शुरू की
तो सरकार की खामियां उजागर हुई। कोर्ट ने मजदूरों के हितों के देखते हुये
इसे गंभीरता से लिया । केन्द्र सरकार कोरल नोटिस जारी करते हुये पूछा कि
`सरकार यह बताये कि ऐसी कौन सी इमरजेंसी आ गयी थी। जो नियमित मजदूरों का
वेतनमान घटा कर नये संविदा कर्मी रखे गये। कोर्ट ने हलफनामे के साथ कारण
बताने व मूल पत्रावली भी पेश करने के लिये आदेशित किया है।
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22 साल का है दायरा
भारतीय खाद्य निगम मजदूर संघ द्वारा निगम के नियमित मजदूरों का वेतनमान घटा
कर नये संविदाकर्मी रखने की चुनौती का दायरा काफी बड़ा है। यह विवाद 22
साल से निगम के साथ ही चल रहा है। 1989 से 2011 के बीच विवाद उत्पन्न हुआ
था। लेकिन इस पर कोई निर्णय नहीं हो सका था। अब हाईकोर्ट में याचिका दाखिल
होने के न्यायालय ने सरकार से जवाब तलब किया है। फिलहाल इस मामले में कोर्ट
अगर मजदूरों के हित में फैसला सुना सकती है। क्योकि नियमावली में भी यह
कहा गया है कि आपातकालीन स्थिति में 2 साल तक संविदा को रखा जा सकता है।
लेकिन यहां 22 साल तक नियमावली के विपरीत कार्यवाई की दलील दी गई है।
अगर कोर्ट नियमित मजदूरों के सापेक्ष फैसला देगी तो इन मजदूरों कोर्ट सरकार
को बड़ी रकम देनी पड़ेगी। फिलहाल केन्द्र सरकार के जवाब केन्द्र बाद अगला
निर्णय 23 मई को आयेगा।
मामले संघ का कहना है कि संविदा कर्मचारियों की नियुक्ति की आवश्यकता नहीं
है। उसके बावजूद केन्द्र सरकार ने धारा 31 का इस्तेमाल कर कांट्रैक्टर को
मजदूर रखने का लाइसेंस दिया।
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