नई दिल्ली। त्रिपुरा में शून्य से सत्ता के शिखर पर पहुंचने वाली भारतीय
जनता पार्टी (भाजपा) यहां मुख्यमंत्री का ताज किसे सौंपेगी यह अभी तय नहीं
है। हालांकि, मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बिप्लव
देव का नाम सबसे आगे चल रहा है, लेकिन त्रिपुरा की राजनीति को समझने वालों
का मानना है कि भाजपा यहां भी कोई चौंकाने वाला फैसला ले सकती है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
त्रिपुरा
केंद्रीय विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर
गौतम चकमा का कहना है कि मुख्यमंत्री पद की लालसा कई लोग अपने मन में दबाए
हुए हैं।
उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव से पहले यह भी चर्चा थी
कि भाजपा यहां किसी आदिवासी (जनजाति) नेता को मुख्यमंत्री की कमान सौंप
सकती है क्योंकि स्थानीय दल इंडीजिनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी)
के साथ गठबंधन से जनतातियों का झुकाव भाजपा की ओर देखा जा रहा था। जाहिर सी
बात है कि जनजातियों का भाजपा-आईपीएफटी गठबंधन को भारी समर्थन मिला और
जहां इस गठबंधन के दोनों दलों में किसी का पिछले विधानसभा चुनाव में खाता
भी नहीं खुला था, वहां इस चुनाव में 43 सीटों पर इनका कब्जा हो गया है।
चकमा
ने कहा, ‘‘ जनजाति समुदाय से जिश्नु देवबर्मन और रामपदा जमातिया
मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हो सकते हैं। भाजपा की इस जीत में
जनजातियों का काफी योगदान है, जिसका पुरस्कार दिया जा सकता है।’’
चकमा
ने इसके पीछे एक और तर्क दिया। त्रिपुरा में जनजाति बहुल क्षेत्र को
मिलाकर अलग राज्य की मांग की जा रही है, जिसपर भाजपा ने अपने सहयोगी से
वादा भी किया है, लेकिन इस मांग को पूरा करना भाजपा के लिए आसान भी नहीं
है। ऐसे में उनके हाथों कमान सौंपकर पृथक राज्य की मांग दबाने की कोशिश की
जा सकती है। सरकार चाहेगी कि अलग राज्य के बजाय त्रिपुरा ट्राईबल एरिया
ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल को मजबूत करने के अपने वादे को जरूर पूरा करे।
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