हैदराबाद। तेलंगाना में मुस्लिम वोट सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और विपक्षी कांग्रेसनीत पीपुल्स फ्रंट के बीच बंट सकता है क्योंकि सत्ता के दोनों मुख्य दावेदारों ने अल्पसंख्यक समुदाय को लुभाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
राज्य की राजधानी हैदराबाद और कुछ अन्य जिलों में मुस्लिम वोटर अच्छी संख्या में हैं। वे इस स्थिति में हैं कि सात दिसंबर को विधानसभा चुनावों में 119 विधानसभा क्षेत्रों में से करीब आधी सीटों पर वोटों के गणित को बिगाड़ सकते हैं।
राज्य की 3.51 करोड़ की आबादी में 12 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम समाज की भूमिका टीआरएस और पीपुल्स फ्रंट के बीच सीधी लड़ाई में महत्वपूर्ण होती दिखाई दे रही है। फ्रंट में तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा), माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और तेलंगाना जन समिति (टीजेएस) व उसकी अन्य सहयोगी शामिल हैं।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कुछ सीटों पर तीसरी बड़ी दावेदार है।
हैदराबाद में 10 सीटों पर मुस्लिम मतदाता 35 से 60 फीसदी और राज्य की करीब अन्य 50 सीटों पर 10 से 40 फीसदी के बीच मौजूद है।
मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) ने सिवाए आठ सीटों के सभी सीटों पर टीआरएस को समर्थन दिया हुआ है। इन आठ पर उसके उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इससे सत्तारूढ़ पार्टी को अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ थोड़ी राहत जरूर मिल सकती है।
जमात-ए-इस्लामी ने भी टीआरएस को समर्थन देने की घोषणा की है जबकि जमीअत उलेमा-ए-हिन्द ने कांग्रेस को समर्थन दिया है। विभिन्न मुस्लिम धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों के समूह युनाइटेड मुस्लिम फोरम भी टीआरएस को समर्थन के मुद्दे पर बंटा हुआ दिखाई दे रहा है। फोरम को एमआईएम के करीबी के तौर पर देखा जाता है।
टीआरएस का समर्थन करने वाले संगठन दलील दे रहे हैं कि टीआरएस के साढ़े चार साल के शासन में कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ और उसने मुस्लिमों के विकास और कल्याण के लिए कई कदम उठाए हैं। जैसे 250 रिहायशी स्कूलों को खोलना, छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और ‘शादी मुबारक’ योजनाएं जिसके तहत गरीब लड़कियों की शादी के लिए एक लाख रुपये की वित्तीय सहायता दी जाती है।
हालांकि, मुस्लिम समाज का एक वर्ग टीआरएस से नाखुश भी है। उसकी दलील है कि पार्टी ने मुस्लिमों के लिए आरक्षण को चार फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी करने के अपने वादे को पूरा नहीं किया। मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराया है क्योंकि केंद्र ने राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर कुछ नहीं किया है।
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