जयपुर/उदयपुर। कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषि विश्वविद्यालयों के प्रयासों से खेती में क्रान्ति आई है, इसमे कोई सन्देह नहीं है। उन्नत बीजों व अद्यतन तकनीक से किसानों को खेती की भरपूर उपज मिल रही है, परन्तु कृषि विश्वविद्यालयों व वैज्ञानिकों को पैदावार बढ़ाने तक ही अपने को सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि बढ़ी हुई पैदावार का तब तक कोई लाभ नहीं है, जब तक उस पैदावार का लाभकारी मूल्य किसानों को ना मिले। उद्योगों की ही भांति कृषि को भी बाजार के अर्थशास्त्र से जोड़ने का काम करना होगा। इसके लिए कृषि अर्थशास्त्र की स्मार्ट विधा को विश्वविद्यालयों को विकसित करना होगा। यह बात राज्यपाल एवं कुलाधिपति कल्याण सिंह ने शुक्रवार को उदयपुर के महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के ग्याहरवें दीक्षांत समारोह में कही।
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राज्यपाल सिंह ने कहा कि आज देश के विभिन्न भागों से आए दिन यह समाचार मिलते रहते हैं कि अमुक फसल के औने-पौने दाम मिल रहे हैं। आलू कोल्ड स्टोरेज में सड़ रहे हैं, गन्ने को खेतों में जलाया जा रहा है, टमाटर घर पर रखने की बजाय सड़कों पर फेंक देना ज्यादा लाभ का सौदा बन रहा है आदि-आदि। ये स्थितियां क्यों बन रही हैं? इसका क्या समाधान है? इन पर भी कृषि विश्वविद्यालयों को अपनी भूमिका का विस्तार करना होगा।
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