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उदयपुर। जहां पिछले एक महीने से आदमखोर लेपर्ड का आतंक छाया हुआ था, वहीं शुक्रवार सुबह पुलिस और वन विभाग की टीम ने कथित रूप से 10 लोगों का शिकार करने वाले लेपर्ड को ढेर कर दिया। मदार इलाके में हुई इस घटना ने ग्रामीणों के बीच छाए खौफ का अंत कर दिया, लेकिन सवाल अभी भी हवा में लटके हैं—क्या यह वही आदमखोर था?
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वन विभाग के डीएफओ अजय चित्तौड़ा ने अपनी सावधानीभरी प्रतिक्रिया में कहा कि इस बात की अभी पुष्टि नहीं की जा सकती कि यह वही आदमखोर लेपर्ड है, जिसने लोगों को मारा। "जांच के बाद ही तय हो सकेगा," उन्होंने दो टूक कहा।
लेपर्ड के अटैक : पांच दिन में तीन हमले
बीते हफ्ते मदार और आस-पास के इलाकों में लेपर्ड की मौजूदगी से लोग पहले से ही सहमे हुए थे। पिछले पांच दिनों में तीन बार ये खूंखार शिकारी हमला कर चुका था। बुधवार को, दो महिलाओं पर खेत में काम करते वक्त हमला किया गया, जिसमें से मांगीबाई नामक महिला ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया, जबकि दूसरी महिला केसीबाई अब भी अस्पताल में है। इससे एक दिन पहले, मंगलवार रात को पास के पालड़ी गांव में लेपर्ड ने एक बछड़े को अपना शिकार बनाया था। वहीं, रविवार को बड़ी गांव में भी एक बछड़ा लेपर्ड का शिकार बन चुका था।
ग्रामीणों का गुस्सा : लाठियां और कुल्हाड़ियां लेकर पहुंचे
जैसे ही सुबह खबर फैली कि लेपर्ड को गोली मारी गई है, ग्रामीण अपने हाथों में लाठियां और कुल्हाड़ियां लेकर मदार बड़ा तालाब की ओर चल पड़े। बांदरवाड़ा, राठौड़ों का गुड़ा, कायलों का गुड़ा और गोडान कला के गांववाले अपनी चिंता और गुस्से के साथ वहां इकट्ठे हुए। ग्रामीणों ने वन विभाग से सवाल किया—क्या यह वही आदमखोर था? अगर नहीं, तो और कितने लेपर्ड आस-पास हैं, और उनके खिलाफ क्या कदम उठाए जाएंगे?
मदार पंचायत के वार्ड पंच मनीष चौबीसा ने भी इस बढ़ते खौफ की पुष्टि की। "गांव में दहशत का आलम है। यहां का बस स्टैंड और कई दुकानें बंद हैं। हर ओर डर और तनाव है।"
ग्रामीणों की रणनीति : खुद करेंगे शिकारी का शिकार
गुरुवार की रात को मदार और आस-पास के गांवों के लोगों ने एक बैठक की थी। बातचीत का लहजा अब साफ था—जब वन विभाग असमर्थ हो रहा है, तो अब ग्रामीण अपने तरीके से समस्या का समाधान करेंगे। लाठियों और हथियारों से लैस होकर वे खुद जंगल को घेरने की तैयारी में थे, जब तक कि सुबह वन विभाग की टीम ने उन्हें मात देते हुए लेपर्ड को शूट कर दिया।
दहशत का अंत या शुरुआत?
हालांकि लेपर्ड मारा जा चुका है, लेकिन अभी भी ग्रामीणों में दहशत कम नहीं हुई है। "क्या यही वही आदमखोर था?" इस सवाल के जवाब का सबको बेसब्री से इंतजार है। वन विभाग की रिपोर्ट का खुलासा ही ग्रामीणों की बेचैनी को शांत कर सकेगा, तब तक इस खूनी शिकारी की कहानी अपने अंत तक नहीं पहुंचेगी।
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