उदयपुर। उदयपुर के जाने माने रंगकर्मी विलास जानवे के निर्देशन में नई दिल्ली के इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र में 5 से 7 अक्टूबर तक तीन दिवसीय ‘राष्ट्रीय बहुरुपिया उत्सव’ का आयोजन होगा। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
जानवे ने बताया कि इस उत्सव में राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, तेलंगाना, कर्नाटक, तामिलनाडू, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के 70 बहुरूपी कलाकार अपनी विलक्षण प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे।
उन्होंने बताया कि किसी जमाने में जनता के दिलों के करीब रही और प्राचीन काल से चली आ रही बहुरूपी कला आज मृत प्राय हो रही है। भारत की इस संघर्षरत कला को सम्बल देने और लोगों में इस कला के प्रति सम्मान जगा कर बहुरूपी कला को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से नई दिल्ली में तीन दिवसीय ‘राष्ट्रीय बहुरुपिया उत्सव’का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें आमजन इन बहरूपियों की कला देख सकेंगे कि कैसे वे अपना काम करते हैं।
रंगकर्मी विलास जानवे ने बताया कि “बहुरूपी कला एक ऎसी कला है जो लोगों को मन से जोडती है. उनके भीतर दबी हुई भावनाओं और अपेक्षाओं को उजागर करने का अवसर देती है इस अनूठी कला के इस मर्म को ये उत्सव उजागर करेगा।
जानवे के अनुसार उत्सव के दौरान इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के पूरे परिसर में बहुरूपी कला पर पहली बार फोटोग्राफ, पेन्टिग्स, म्यूरल, मूर्ति कला और इंस्टालेशन कला की प्रदर्शनी लगेगी। इस प्रदर्शनी को दिल्ली के युवा और प्रतिभावान डिज़ाईनर और फिल्मकार रुपेश सहाय क्यूरेट कर रहे हैं तथा इसकी परिकल्पना में भी उनका सहभाग है ।
जानवे ने बताया कि कृष्ण भगवान की बहुरूपी कलाकार के रूप से हम सभी परिचित हैं। इसे इतिहास के सन्दर्भ में देखें तो राजा महाराजा और बादशाह के दरबारों में बहुरूप धारण करने वाले विशेषज्ञ कलाकारों और ऎय्यारों का ज़िक्र आता है जो स्वयं नाना प्रकार के स्वांग रच कर एक ओर अपने शासक का मनोरंजन करते तो दूसरी तरफ उनके लिए जासूसी का भी काम करते। वे अपने शासकों को वेश बदल कर प्रजा का सच्चा हाल जानने को प्रेरित करते तो कभी वेश बदल कर दुश्मन को चकमा देकर उसके चंगुल से आज़ाद भी कराते। राज्याश्रय प्राप्त करने वाली इस कला को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता रहा है। कालांतर में इस कला को जागीरदारों, निजामों और गाँव-कस्बों के सम्पन्न घरों ने प्रश्रय दिया और उसके बाद बहुरूपी कलाकार गाँवों, कस्बों और शहरों में बीस पच्चीस दिन का डेरा लगा कर जन साधारण का मनोरंजन करने लगे। बहुरुपिया एक ऎसा हुनरमंद कलाकार होता है जिसके लिए रंगमंच की अनिवार्यता नहीं होती, एक ही कलाकार लेखक, कवि, संवाद रचयिता, अभिनेता, गायक, वादक, नर्तक, रूप और वेश सज्जाकार होता है जो गाँव-गाँव, नगर नगर घूम कर लोगों का मौलिक मनोरंजन करता है और जीवन यापन के लिए बक्शीश और आश्वासन पाता है।
उन्होंने बताया कि बहुरुपिया आमजन का मनोरंजन करते हुए जनजागरण का भी काम करता है। जब मनोरंजन के अन्य साधन नहीं थे तब बहुरूपियों को शादी ब्याह और उत्सवों में बुलाया जाता था। बहुरूपिये भी पौराणिक, ऎतिहासिक, सामाजिक और फ़िल्मी किरदार बन कर अपनी कला का लोहा मनवाते व इनाम पाते और अपने परिवार का गुज़ारा करते थे, नित नया वेश बना कर बहुरुपिया समाज के हर वर्ग का मनोरंजन करता है, उत्तर और पूर्व भारत में वह एकल या युगल वेश धरता है जबकि दक्षिण भारत में बहुरुपिया समूह में अपनी कला प्रदर्शित करते हैं। इन दिनों इस नायाब कला जुड़े हुए लोग अपने अस्तिव के लिए जूझ रहे हैं। मनोरंजन के दूसरे साधनों ने इस विलक्षण कला को हाशिये में ला खड़ा किया है।
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