स्थान : शिल्पग्राम, उदयपुर/ निर्देशक : रूचि भार्गव/लेखक : महेश दत्तानी/ प्रस्तुति : कलंदर सोसायटी
महेश दत्तानी के लिखे “थर्टी डेज इन सितंबर” का मंचन शिल्पग्राम के दर्पण सभागार में किया गया, जो दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ने में कामयाब रहा। नाटक का विषय जितना संवेदनशील है, उसका प्रदर्शन उतना ही सजीव और प्रभावशाली था। परिवार के भीतर विश्वासघात, बाल यौन शोषण, और भावनात्मक दर्द की कहानी ने दर्शकों को भावनाओं के बवंडर में उलझा दिया। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
नाटक के केंद्र में माला (चिरमी आचार्य) का किरदार था, जिसने अपने बचपन के घावों के साथ जीने की त्रासदी को बखूबी निभाया। उसके दर्द और मानसिक संघर्ष को मंच पर जीवंत होते देखना जितना हृदयस्पर्शी था, उतना ही दर्शकों को भीतर तक झकझोरने वाला। चिरमी ने अपने अभिनय में भावनात्मक गहराई और नाटकीयता का बेहतरीन संयोजन दिखाया। माला की चुप्पी और आत्मसंघर्ष उस समाज का चित्रण करती है जो आधुनिकता का मुखौटा पहनता है, लेकिन भीतर से भावनात्मक उदासीनता से भरा होता है।
शांता (निकी चतुर्वेदी), माला की माँ, का किरदार भी कहानी में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनके अंतर्द्वंद्व और प्रार्थनाओं ने कहानी को एक नया मोड़ दिया, जिससे दर्शकों को यह एहसास हुआ कि पीड़ित के दर्द के साथ-साथ परिवार भी किस तरह टूटता है।
विनय और दीपक जैसे किरदार, जिन्हें शशि किरण और कार्तिकेय मिश्रा ने निभाया, माला को सहारा देने के साथ ही कहानी में गहराई और द्वंद्व भी लाते हैं। दीपक के साथ माला का भविष्य सुखद प्रतीत होता है, जिससे नाटक एक सकारात्मक नोट पर समाप्त होता है, लेकिन यह अंत भी दर्शकों को सवालों से घेरता है - क्या वास्तव में हर पीड़ित का जीवन इस तरह सहजता से आगे बढ़ सकता है?
निर्देशन और प्रस्तुति का जादू रूचि भार्गव का निर्देशन नाटक के हर दृश्य में स्पष्ट था। उन्होंने कलाकारों से भावनाओं का बेहतरीन इस्तेमाल करवाया, जिससे दर्शक एक पल के लिए भी अपनी जगह से नहीं हिले। लाइटिंग और संगीत का कुशल उपयोग, भावनाओं की गहराई को उभारने में मददगार साबित हुआ। भार्गव ने जिस तरह से नाटक के जटिल और संवेदनशील मुद्दों को पर्दे पर उतारा, वह थिएटर प्रेमियों के लिए एक अद्भुत अनुभव था।
अभिनय का अद्भुत प्रदर्शन माला का किरदार निभाने वाली चिरमी आचार्य ने अपनी हर भाव-भंगिमा और संवाद में पीड़ा और संघर्ष को जिंदा कर दिया। शशि किरण और कार्तिकेय मिश्रा के अभिनय ने भी अपनी छाप छोड़ी। इनके अभिनय में संवेदनशीलता और शक्ति का मिश्रण दर्शनीय था। अन्य कलाकारों, जैसे मोहित कृष्णा और वैदेही सक्सेना ने भी अपनी छोटी भूमिकाओं में जान डाल दी।
कहानी का प्रभाव
महेश दत्तानी की कलम ने “थर्टी डेज इन सितंबर” के माध्यम से एक सशक्त और भावुक संदेश दिया है। बाल यौन शोषण जैसे संवेदनशील मुद्दे को थियेटर के माध्यम से समाज के सामने लाना, न केवल बहादुरी भरा है, बल्कि जरूरी भी। यह नाटक सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज के उन पहलुओं की तरफ इशारा करता है, जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं।
अंतिम विचार
“थर्टी डेज इन सितंबर” नाटक, न केवल दर्शकों को एक संवेदनशील मुद्दे से रूबरू कराता है, बल्कि उन्हें सोचने पर मजबूर करता है कि परिवार और समाज में प्यार और विश्वासघात के बीच संतुलन कैसे कायम रखा जा सकता है। कलाकारों का अभिनय, भार्गव का निर्देशन, और दत्तानी की लेखनी - इन तीनों ने मिलकर इस नाटक को एक ऐसी कृति बना दिया जिसे भुलाया नहीं जा सकता।
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