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आदिवासी अंचल में देवी चिड़िया ने की मानसून की भविष्यवाणी

Devi Chidiya predicted monsoon in tribal region - Udaipur News in Hindi

उदयपुर। आदिवासी अंचल में मकर संक्रांति पर्व पर अन्य समस्त परंपराओं के साथ एक ऐसी पंरपरा का भी आयोजन होता है जिसमें ग्रामीण एक चिड़िया को पकड़कर अपने भविष्य को जानते हैं। मंगलवार और बुधवार को दोनों दिन बड़ी संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों में पक्षी संरक्षण का संदेश देती इस परंपरा का आयोजन हुआ और सुकाल की भविष्यवाणी जानकर प्रसन्नता जताई।

पक्षी विशेषज्ञ व शोधार्थी विनय दवे ने बताया कि वागड़-मेवाड़ के आदिवासी क्षेत्रों में बहुतायत से प्रचलित इस परंपरा के तहत गांव के युवा व किशोर टोली बनाकर इंडियन रॉबिन, देवी चिड़िया या डूचकी को घेरकर उड़ाते है और जब यह पक्षी थक कर बैठ जाता है तो उसे पकड़कर एक छोटी मटकी में डालकर कपड़े से उसका मुंह ढक देते हैं। किशोरों की यह टोली इस डूंचकी को लेकर गांव के गली मोहल्लों में घर द्वार पर जाकर परंपरागत रूप से गाते है- ‘‘डूचकी मारू, खिचड़ो आलो‘‘।

अपशुकन व अनहोनी के डर से गृहस्वामी घर से बाहर आकर डूचकी को तिल व तेल चढ़ाते है और किशोरों को खिचड़ा (गुड़, गेहूं, मक्का, चना, तिल) देेता है। इस प्रकार किशोरो की टोली नाचते-गाते हल्ला मचाते हुए घर-घर से खिचड़ा एकत्रित करते है। संध्या समय पर सभी ग्रामीण गांव के बाहर एकत्रित होते है और खिचड़ा पकाकर डूचकी को भोग लगाते है और प्रसाद ग्रहण करते है। फिर डूचकी को स्नान करा आजाद कर दिया जाता है। यदि डूचकी हरे पेड़ पर बैठती है तो आगामी वर्ष सुकाल होगा और यदि सूखे पेड़ या नदी पर बैठे तो अकाल होगा।
प्रदेश के ख्यातनाम पक्षी वैज्ञानिक डॉ. सतीश शर्मा ने बताया कि यह सांस्कृतिक प्रथा इस बात का प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति में सदियों से पक्षियों को देवीस्वरूप मान उनका संरक्षण किया जाता है। वास्तव में यह प्राचीन सांस्कृतिक प्रथा पक्षियों को देवी स्वरूप मान उनके संरक्षण को प्रेरित करती है। उन्होंने बताया कि आधुनिकीकरण व गांवों से पलायन के चलते इस प्रथा के स्वरूप में बदलाव आ रहा है और प्रचलन कम होता जा रहा है। उन्होंने ग्रामीणों से अपील की है कि परंपरागत रूप से डूंचकी को घी व तेल से स्नान नहीं कराए अपितु जल से स्नान कराए। क्योंकि घी-तेल साफ नहीं होता जिससे उनके पंख चिपक जाते है और इससे पक्षी को परेशानी होती है।

पक्षी विशेषज्ञ दवे बताते हैं कि देवी चिडि़या, काल चिडी, डूचकी, कृष्ण शकुनी, सुकंगी श्यामा और इंडियन रॉबिन नाम से पहचाने जाने वाली यह चिडि़या गौरेया के आकार की होती है और इस चिड़िया की पीठ का रंग मटमैला भूरा, छाती व पेट का रंग काला होता है। छोटी पूंछ के नीचे जंग लगे लोहे के रंग के परों का गुच्छा होता है। आबादी क्षेत्रों के आसपास झाडि़यों व पथरिले स्थानों कीट पंतगों खासतौर पर दीमक खाती हुई दिखाई देती है। चिडि़या का घमण्डी नर अपना छाती फूलाकर पंखों को फैलाकर अपने सफेद परों को चमकाता हुआ डराने का प्रयास करता दिखाई देता है।

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Web Title-Devi Chidiya predicted monsoon in tribal region
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