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प्रकृति और प्रगति का संवाद : उदयपुर अंतरराष्ट्रीय प्रकृति सम्मेलन में प्रो. पी.आर. व्यास के दृष्टिकोण ने गढ़ी नई दिशा

A Dialogue Between Nature and Progress: Professor P.R. Vyas Vision forges a New Direction at the Udaipur International Nature Conference - Udaipur News in Hindi

उदयपुर। प्रकृति शोध संस्थान द्वारा आयोजित प्रथम दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय प्रकृति सम्मेलन अधिकारी प्रशिक्षण केंद्र, अम्बामाता में अगले वर्ष उज्जैन में पुनः मिलने के संकल्प के साथ भव्य रूप से संपन्न हुआ। यह आयोजन न केवल अकादमिक दृष्टि से समृद्ध रहा, बल्कि वैश्विक और स्थानीय चुनौतियों के बीच “सतत विकास” और “मानव–प्रकृति समरसता” के नए सूत्र भी प्रस्तुत कर गया। मीडिया समन्वयक प्रो. विमल शर्मा ने बताया कि समापन सत्र की अध्यक्षता मुंबई की प्रो. एस.एस. चौहान ने की, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. एल.एन. हर्ष और विशिष्ट अतिथि प्रो. रविंद्र जयभाई उपस्थित रहे।इस सत्र में सबसे पहले प्रो. पी.आर. व्यास ने स्वागत उद्बोधन दिया, जिसमें उन्होंने सम्मेलन के उद्देश्य और वर्तमान परिप्रेक्ष्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि “प्रकृति संरक्षण कोई पृथक विषय नहीं, बल्कि विकास की आधारशिला है।” सम्मेलन के दौरान आयोजित “सतत शहरी नियोजन” विषयक पैनल परिचर्चा में प्रो. व्यास की प्रस्तुति विशेष आकर्षण का केंद्र रही। उन्होंने शहरी विकास के संदर्भ में कहा कि “जनसंख्या दबाव, आंतरिक प्रवास और सिविक सेंस की कमी हमारे नगरों के असंतुलन की मुख्य जड़ें हैं। योजना का निर्माण जितना महत्वपूर्ण है, उसका धरातल पर क्रियान्वयन उससे भी अधिक चुनौतीपूर्ण।”
उनकी प्रस्तुति का मुख्य बिंदु रहा – “अर्बन मेटाबॉलिक एंड सस्टेनेबिलिटी मॉडल”, जिसे उन्होंने भारतीय नगरों के लिए एक व्यवहार्य रूपरेखा के रूप में प्रस्तुत किया। प्रो. व्यास ने नगरों को “जीवंत इकाई” के रूप में देखने की आवश्यकता बताई — जो ऊर्जा, संसाधन और मानव आचरण से पोषित होते हैं।उन्होंने कहा कि यदि हम शहरों के चय–उपचय (Metabolism) को समझ लें, तो संसाधन उपयोग और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन संभव है।
प्रो. व्यास ने सम्मेलन के प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे अपने-अपने कार्यक्षेत्र की “जेंडर ऐटलस” तैयार करने के प्रस्ताव भेजें, ताकि इन तथ्यों को सरकार तक पहुँचाकर नीति निर्माण की प्रक्रिया को गति दी जा सके।उन्होंने अनुसंधान कार्यों के लिए अल्प बजट प्रस्तावों को भी प्रोत्साहित किया — जिससे युवा शोधकर्ताओं को वास्तविक समस्याओं पर फील्ड–लेवल अध्ययन करने का अवसर मिल सके।उनके इस विचार को उपस्थित शिक्षाविदों और नीति विशेषज्ञों ने “व्यावहारिक और दूरदर्शी पहल” के रूप में सराहा।
मुख्य अतिथि प्रो. एल.एन. हर्ष ने अपने संबोधन में कहा कि “विकास के साथ समस्याओं का आना स्वाभाविक है, परंतु उनका समाधान केवल निरंतर शोध और नीति–स्तरीय समन्वय से ही संभव है।”प्रो. रविंद्र जयभाई ने सम्मेलन की वैश्विक उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए आयोजकों को साधुवाद दिया और कहा कि “भारत आज पर्यावरण–संवाद का नेतृत्व करने की स्थिति में है।”
प्रो. एस.एस. चौहान ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा — “यदि हर व्यक्ति प्रकृति के प्रति अपना दायित्व समझ ले और दूसरों की सुख–सुविधा को प्राथमिकता देना शुरू कर दे, तो आधी समस्याएँ स्वतः समाप्त हो जाएँ।”उनके विचारों ने सम्मेलन के “वासुधैव कुटुम्बकम्” वाले संदेश को और सशक्त किया।
समापन समारोह में कई विद्वानों को प्रकृति प्रहरी सम्मान और प्रकृति प्रेमी सम्मान से सम्मानित किया गया।सम्मानित व्यक्तियों में प्रो. एल.एन. हर्ष (जोधपुर), प्रो. एम.एस. नेगी (श्रीनगर), प्रो. विमल शर्मा (उदयपुर), प्रो. अनुराधा शर्मा (जम्मू), प्रो. एम.एम. शेख (चूरू), प्रो. रविंद्र जयभाई (पुणे) और प्रो. सुतपा सेनगुप्ता (शिलॉन्ग) शामिल रहे।यह सम्मान समारोह केवल औपचारिक नहीं था, बल्कि यह पर्यावरणीय चेतना के सामाजिक आंदोलन का प्रतीक बन गया।
समापन सत्र से पूर्व तीन समानांतर तकनीकी सत्रों में शोध पत्रों का वाचन हुआ।निर्णायक मंडल द्वारा अंजलि नाइक, प्रिया चुंडावत, सविता और अंशिका दुबे को अपनी-अपनी श्रेणियों में प्रथम आने पर प्रमाणपत्र प्रदान किए गए।इन युवा शोधकर्ताओं के कार्यों ने यह संकेत दिया कि भारत का नया शोध–परिदृश्य अब स्थानीय मुद्दों से वैश्विक दृष्टिकोण की ओर बढ़ रहा है।
सम्मेलन के दौरान डॉ. मोहन निमोले को 2026 में द्वितीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन हेतु ध्वज सुपुर्द किया गया। यह आयोजन माधव कॉलेज, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में होगा — जहाँ इस संवाद की अगली कड़ी और अधिक व्यापक रूप में देखने को मिलेगी।
अंत में सचिव हीरालाल व्यास ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का विधिवत समापन हुआ।सम्मेलन के दौरान वातावरण में केवल चर्चा और विमर्श नहीं था, बल्कि एक साझा संकल्प की अनुभूति थी — कि प्रकृति के संरक्षण और शहरी विकास के बीच अब कोई दूरी नहीं रहेगी।
निष्कर्ष : “प्रो. व्यास का दृष्टिकोण – नीति और प्रकृति के बीच संतुलन का सूत्र”
इस सम्मेलन का मूल संदेश था – “प्रकृति और प्रगति विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।” प्रो. पी.आर. व्यास का योगदान इस दिशा में निर्णायक रहा। उन्होंने अकादमिक विमर्श को केवल सैद्धांतिक न रखकर, उसे नीति–निर्माण, सामाजिक चेतना और व्यावहारिक मॉडल से जोड़ने का प्रयास किया। उनकी दृष्टि ने यह विश्वास जगाया कि यदि शोध और नीति साथ चलें, तो “सतत विकास” केवल नारा नहीं, बल्कि व्यवहारिक वास्तविकता बन सकता है।

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