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भगवान ने द्रव्य, भाव और नो कर्म रूप जन्म जरा ओर मरण रूपी नगर को नष्ट किया : आचार्य वर्धमान सागर

Lord Jinendra destroyed the city of birth, old age, and death, represented by matter, emotions, and nine karmas: Acharya Vardhman Sagar - Tonk News in Hindi

टोंक। आचार्य वर्धमान सागर के सानिध्य में सहस्त्रनाम मंडल विधान की पूजन से प्रारंभ होकर समापन 1 नवंबर को हवन के साथ होगा। आचार्य ने प्रवचन में बताया कि पूजन में भगवान के विभिन्न नाम से गुणानुवाद किया गया है। चिंतामणये, अभीष्टदाय, अजीताय, जिनेंद्दाय परमानंदाय, नाभिनंदाय, शिष्टाय, स्वामिने, विशिष्टताय, सत्यवाचे, चतुर्मुखाय, दूरदर्शनाय, सदातप्ताय, जिनेंद्र भगवान के अनेक नाम और गुणों अनुसार वह भक्त के समस्त राग भाव को हरने वाले हैं। जैनेंद्र भगवान के त्रिलोक के ऐश्वर्य को दर्शाते हैं। भव रूपी अग्नि तप भव्य जीव का नाश करते हैं। उनके चरणों को नमन करने से सब पाप का नाश होता है। उनकी ध्वनि अमृत के समान कर्मों के कालिमा को हरती है। विषय कषाय भगवान चरणों में आने से नष्ट हो जाते हैं, साथ ही अनंत जन्म के सभी कर्मों का नाश होता हैं। अनेक देव दुंदुभी बजा कर भगवान की अर्चना करते हैं अनेक देव भक्ति से पुष्प दृष्टि करते हैं पूजा पांच पूजन में प्रथमानुयोग में वर्णित अनेक महापुरुषों के ऊपर आए संकट और उनका निवारण कैसे हुआ इसका वर्णन किया गया है। सीता को जब श्रीराम ने अग्नि प्रवेश कराया,प्रभु का नाम लेने से अग्नि नीर बन गई। वारिषेण पर घात हेतु शस्त्र चलने पर प्रभु को याद करने पर वह शस्त्र गले का हार बन गया। इस जयमाला मे मनोवती सीता, पूज्य पाद मुनिराज, मानतूंगाचार्य आदि महापुरुषों पर आए उपसर्ग का निवारण जिनेंद्र प्रभु किस प्रकार करते हैं यह बताया है। राजेश पंचोलिया गजराज लोकेश, संजय संघी अनुसार आचार्य ने आगे बताया कि पूजा 8 में अष्ट प्रातिहार्य का वर्णन है, पूजा 9 में भगवान के समवशरण के वैभव का वर्णन है। पूजन 10 में भगवान का एक नाम त्रिपुरारी की विवेचना में आचार्य ने बताया कि भगवान ने द्रव्य, भाव, और नौ कर्म रूप तीन पुर जन्म, जरा, मरण रूपी पुर नगर को नष्ट किया है। मंडल विधान की पूजन विधान में सौंधर्म इंद्र कजोड़मल पारस मल बगड़ी ने धार्मिक क्रिया की। कुबेर इंद्र नंदलाल, संजय संघी, ईशान इंद्र रामपाल विष्णु कुमार लाम्बा, सनत इंद्र प्रदीप कुमार संदीप देवली वाले, प्रेमचन्द्र दतवास महेन्द्र, यज्ञ नायक पारसमल विमल चंद सहित अनेक इंद्र प्रति इंद्र ने की।
आचार्य वर्धमान सागर ने बताया कि इस विधान में भगवान के 1008 नामों का स्मरण गुणानुवाद किया गया हैं। अध्र्य समर्पित किए। आचार्य के चरण प्रक्षालन का सौभाग्य को प्राप्त हुआ मंडल विधान का चढ़ाए जाने वाले अध्र्य का मंत्रोच्चार आचार्य एवं मुनि हितेंद्र सागर ने किया। भागचंद फुलेता, कमल सर्राफ, धर्मचंद दाखिया अनुसार आचार्य वर्धमान सागर का संघ सहित 3 नवंबर को आदिनाथ जिनालय नसिया में प्रवेश होगा। आचार्य एवं अन्य साधुओं की पुरानी पीछी आजीवन नियम व्रत लेने वाले सौभागशाली श्रावक-श्राविकाओं को प्राप्त होगी।

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Web Title-Lord Jinendra destroyed the city of birth, old age, and death, represented by matter, emotions, and nine karmas: Acharya Vardhman Sagar
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