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आत्मा को भी कर्मों के बंधन से स्वतंत्र कराना जरूरी : आचार्य वर्धमान सागर

It is necessary to free the soul from the bondage of karma: Acharya Vardhman Sagar - Tonk News in Hindi

टोंक। 15 अगस्त को देश स्वतंत्र हुआ है। इससे यह संदेश और प्रेरणा मिलती है कि हमारी आत्मा भी अनेक भवों में कर्मों के अधीन होकर विश्व , संसार में घूम रही हैउसे भी स्वतंत्र कराना है। श्रीमद् जैन धर्म सभी ने प्राप्त किया है श्रीमद् जैन धर्म सुख और शांति का पिटारा है। अभी आप संवेग भावना की विवेचना 16 कारण भावना अंतर्गत मुनि श्री ने की। 16 कारण भावना में सम्यक दर्शन को दर्शन ,शील विनय आदि भावना का पालन कर व्रतों की दोष भय रहित पाप रहित करना होगा हिंसा,झूठ,चोरी, कुशील ओर परिग्रह 5 पापों का त्याग महाव्रती ओर अणुव्रती दोनों करते हैं। क्योंकि पाप ही संसार परिभ्रमण का कारण है यह वैराग्य भी होने देता । यह मंगल देशना राजकीय अतिथि वात्सल्य वारिधी पंचम पट्टाधीश 108आचार्य श्री वर्धमान सागर महाराज ने 16 कारण भावना अंतर्गत धर्मसभा में प्रकट की। राजेश पंचोलिया के अनुसार आचार्य श्री ने आगे आत्मा की विवेचना कर बताया कि पापों के कारण आत्मा को भी कष्ट होता है आप शरीर को ही अपनी आत्मा मानते हैं आत्मा का स्वभाव भूल रहे हैं पेंसिल के एक डॉट बराबर भी जीव में आत्मा होती है सभी महाव्रती अणुव्रती भी अहिंसा का पालन करते हैं।सभी को पांच पापों से भयभीत होना चाहिए ।16 कारण भावना ,12 भावना आदि के चिंतन से आप पापों से बच सकते हैं ।अनित्य, अशरण भावना संसार की नश्वरता को बताती है। आपका लक्ष्य आत्म हित के बजाय संसार वृद्धि और भौतिक उपलब्धि से है। सम्यक दर्शन, ज्ञान, चारित्र,धर्म समागम ओर वैराग्य से संवेग भावना उत्पन्न होती हैं । रत्नत्रय बहुमूल्य रत्न है। आचार्य श्री ने करुणा पूर्वक उपदेश में बताया कि आप असली रतन को भूलकर उपेक्षा कर ग्रहदोष पीड़ा दूर करने के लिए हाथों में उंगलियों में नकली रत्न पहनते हैं। धर्म और तप त्याग से आपकी आत्मा भी परमात्मा बन सकती हैं संसार से दुखो से घबरा कर धर्म का चिंतन और स्वरूप समझ कर दीक्षा ली जाती हैं। महत्वपूर्व सूत्र में बताया कि निर्दोष रीति से विधि विनय पूर्वक स्वाध्याय करने वाले को उपवास का फल मिलता है । आपके भाव ओर परिणाम अनुसार गति मिलती है। आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व मुनि श्री चिंतन सागर ने अपने चिंतन में बताया कि संसार के दुखों से नित्य हमेशा डरना भयभीत होना ही संवेग भावना है संसार दुखों का सागर है।रमेश काला अनुसार15 अगस्त को शिक्षाविदों का सम्मेलन आचार्य संघ सानिध्य में रखा गया हैं जिसमें शिक्षकों द्वारा चयनित विषयों पर विचार रखे जाएंगे। विद्यार्थियों को धार्मिक संस्कार देने का निर्देशन भी आचार्य श्री द्वारा दिया जाएगा। समाज प्रवक्ता पवन कंटान व विकास जागीरदार अनुसार आज स्थानीय श्रद्धालुओ ने श्री जी और आचार्य श्री शांति सागर जी सहित पूर्वाचार्यों के चित्रों समक्ष दीप प्रवज्जलन कर आचार्य श्री के चरण प्रक्षालन कर जिनवाणी भेंट कर आचार्य श्री की अष्ट द्रव्यों से संगीत सहित पूजन की गई। 15 अगस्त को आचार्य श्री की पूजन करने का सौभाग्य जिनधर्म प्रभावना समिति के सदस्यों को प्राप्त होगा ।इस मौके पर समाज के अध्यक्ष पदमचंद आंडरा, चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष भागचंद फूलेता, कार्यकारी अध्यक्ष धर्मचंद दाखिया, मंत्री राजेश सर्राफ, धर्मेंद्र पासरोटियां, राजेश बोरदा, कमल सर्राफ, अंकुर पाटनी, नीटू छामुनिया, ओम ककोड़, मुकेश बरवास आदि मोजूद थे । समाज के मीडिया प्रकोष्ठ मंत्री रमेश कला में बताया कि 15 अगस्त को प्रातः काल तिरंगा झंडा नशियां जी में फहराया जाएगा एवं देशभक्ति मय पूजन किया जाएगा ।
विशेष - 15 अगस्त को दोपहर 3 से 5 बजे तक आचार्य शांति समागम संगोष्ठी आयोजित की जाएगी जिसमे समस्त अध्यापक उपस्थित होंगे ।

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