श्रीगंगानगर (सतवीर सिंह)। स्वास्थ्य केंद्रों पर अनावश्यक और खराब उपकरण संबंधी आने वाली शिकायतों का अब त्वरित समाधान होने लगा है। ऑनलाइन शिकायत दर्ज करवाने के बाद महज दो से चार दिन में ही उपकरण दुरुस्त हो रहे हैं। इससे अब आमजन को राजकीय चिकित्सालयों में बेहतर जांच व स्वास्थ्य सुविधा मुहैया होगी। यह संभव हो पाया है विभाग के ‘ई-उपकरण’ सॉफ्टवेयर से। फरवरी 2017 के बाद आईवीआरएस के जरिये यह सॉफ्टवेयर सुचारू कार्य कर रहा है। इसके बाद जिला अस्पताल से लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक के सभी उपकरणों का सही इस्तेमाल होने लगा है। यही नहीं उपकरणों की खंड से लेकर राज्यस्तर तक मॉनीटरिंग भी हो रही है।
सॉफ्टवेयर शुरू करने का श्रेय राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के एमडी नवीन जैन को जाता है। वे बताते हैं कि ‘ई-उपकरण’ शुरू होने के बाद स्टोरों में लंबे अर्से से बंद पड़े उपकरण उपयोग में आने लगे हैं। जिन उपकरणों को खराब समझ कबाड़ बना दिया जाता था, वे अब हाथों-हाथ दुरुस्त होने लगे हैं।
एनएचएम के एमडी नवीन जैन का दावा है कि देश में पहली बार किए जा रहे इस तरह के प्रयोग व प्रयासों को सफल बनाने के लिए वे स्वयं ई-उपकरण की मॉनीटरिंग कर रहे हैं। उन्हीं के निर्देशन में राज्य से स्थानीय स्तर पर ई-उपकरण को लेकर कार्मिक ऑनलाइन एंट्री और उनकी दुरुस्तीकरण में जुटे हैं। एमडी नवीन जैन स्वयं दिन-प्रतिदिन सॉफ्टवेयर का फीडबैक लेते हैं। संभाग स्तर पर संयुक्त निदेशक और जिलास्तर पर सीएमएचओ व पीएमओ की जिम्मेदारी तय की गई है। वहीं जिले से पीएचसी स्तर के लिए डीपीएम, बीसीएमओ, संस्थान प्रभारी, स्टोर कीपर व सूचना सहायकों की जिम्मेदारी तय की गई है।
जिले में सीएमएचओ डॉ. नरेश बंसल, डीएनओ डॉ. कमल गुप्ता व डीपीएम विपुल गोयल इसकी मॉनीटरिंग कर रहे हैं। ‘ई-उपकरण’ सॉफ्टवेयर के जरिए जिला चिकित्सालय, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के मेडिकल उपकरण ऑनलाइन हो गए हैं। सॉफ्टवेयर में सभी मेडिकल उपकरणों की सूची अपडेट है, जिसमें संबंधित संस्थान पर कितने उपकरण हैं, कौन-कौन से उपकरण हैं, कौनसे उपकरण कार्य में लिए जा रहे हैं, किस उपकरण का कब-कब इस्तेमाल किया गया, किस उपकरण का इस्तेमाल नहीं हो रहा है आदि जानकारी शामिल है। यदि कोई उपकरण खराब है तो उसको भी ऑनलाइन सूचिबद्ध किया जाता है और यह भी लिखा जााता है कि क्या वह ठीक होने लायक है या नहीं। यदि उपकरण ठीक होने लायक है तो संबंधित चिकित्सा प्रभारी इसकी शिकायत ऑनलाइन या टोल फ्री नंबर के माध्यम से दर्ज करवा देते हैं। इसके बाद संबंधित एजेंसी के इंजीनियर आगामी चार दिन में उसे ठीक करते हैं।
एमडी नवीन जैन ने किसी संस्थान द्वारा इस तरह की शिकायत दर्ज नहीं करने पर संबंधित संस्थान प्रभारी के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं। यानी हर किसी की जवाबदेही तय है कि उपकरण खराब तो नहीं, कहीं उपकरण का उपयोग हो भी रहा है या नहीं। खास बात ये भी है कि ई-उपकरण के जरिये मशीन किस संस्थान पर, किस लोकेशन में रखी गई है यह भी पता लगाया जा सकता है। इसी तरह उपकरणों की गारंटी अवधि भी ई-उपकरण से पता चल जाती है।
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