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श्रीगंगानगर। शहर में एक ऐसा दृश्य देखने को मिला, जो किसानों के दर्द, सरकार की नाकामी, और पानी के संकट की गहरी कहानी कहता है। शनिवार की सुबह, जैसे ही 45 आरडी पर गंगनहर का पानी घटकर 1,800 क्यूसेक रह जाने की सूचना फैली, किसानों का गुस्सा आसमान छू गया। हाथों में तख्तियां और आंखों में नाराजगी लिए, ये किसान प्रभारी मंत्री सुमित गोदारा से मुलाकात के लिए सड़कों पर उतर आए।
किसान संघर्ष समिति और किसान आर्मी ने इस संकट को लेकर कई गंभीर आरोप लगाए। संयोजक मनिंद्र मान ने कहा, "गंगनहर और भाखड़ा में पानी की इस किल्लत ने हमारी खेती को बर्बाद होने के कगार पर ला खड़ा किया है। राजस्थान सरकार पंजाब से पूरा पानी लेने में नाकाम रही है। इसकी सजा हम किसानों को भुगतनी पड़ रही है।" ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
किसानों की नारेबाजी और आरोपों के बीच माहौल तनावपूर्ण बना रहा। गणेशगढ़ के सरपंच अवतार सिंह, पूर्व सरपंच राजवीर सिंह और कई अन्य किसानों ने स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता पर सवाल खड़े किए। किसानों का कहना है कि 45 आरडी से खखां हैड तक पानी का जो घाटा दिखाया जा रहा है, वह वास्तविकता से परे है। उनका दावा है कि यह घाटा 100 क्यूसेक से अधिक नहीं होना चाहिए, लेकिन 500 से अधिक घाटा दर्ज किया जा रहा है।
किसानों ने पोंग डैम में पानी का स्तर 1,410 फीट तक बढ़ाने की मांग की। अमरसिंह बिश्नोई ने साफ शब्दों में कहा, "अगर डैम का स्तर बढ़ाया गया तो इससे राजस्थान के किसानों को फायदा होगा और फसलोत्पादन बेहतर होगा।"
भाखड़ा और गंगनहर के किसानों ने चेतावनी दी कि यदि पानी की समस्या का समाधान नहीं हुआ, तो व्यापक आंदोलन छेड़ा जाएगा। किसान नेता सुखवीर फौजी ने सरकार को कड़े शब्दों में संदेश दिया कि "हमारे धैर्य की परीक्षा न लें। अगर जरूरत पड़ी तो भाखड़ा और गंगनहर दोनों जगह एक साथ मोर्चा खोल दिया जाएगा।"
प्रभारी मंत्री सुमित गोदारा ने किसानों को शांत करने की कोशिश की और जयपुर आने का न्यौता दिया। उन्होंने कहा, "आपकी सभी मांगें जायज हैं। मैं खुद किसान हूं और आपकी समस्याओं को समझता हूं। जयपुर में सिंचाई मंत्री और संबंधित अधिकारियों से बिंदुवार चर्चा की जाएगी।"
हालांकि किसानों को मंत्री की बातों से कुछ उम्मीदें जगीं, लेकिन यह सवाल अब भी बाकी है—क्या वाकई सरकार इस जल संकट का समाधान कर पाएगी, या किसानों को फिर सड़कों पर उतरकर अपनी आवाज उठानी पड़ेगी?
यह संघर्ष केवल पानी का नहीं, बल्कि किसानों के अस्तित्व और उनके हक की लड़ाई है।
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