जयपुर/कोटा। बेहद दुर्भाग्य की बात है कि विश्व के सबसे बड़े कृषि प्रधान देश में किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं और यदि कोई पीडि़त किसान अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की कोशिश कर रहा है तो उसे गोली मार कर हमेशा के लिए मौन कर दिया जाता है। सबका साथ-सबका विकास जैसा दावा करने वाली भाजपा सरकार ने किसानों एवं कृषि के विकास के लिए कोई प्रावधान नहीं किए। इस कारण आज देश-प्रदेश में किसानों के हालात इतने बिगड़ गए हैं कि उन्हें आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ रहा है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
यह बात कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट ने कोटा जिले के इटावा स्थित मंडी में आयोजित विशाल किसान धरना-प्रदर्शन को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि भाजपा ने सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे के लिए किसानों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है। अगर भाजपा शासित अन्य राज्यों में किसानों का ऋण माफ किया जा सकता है तो राजस्थान के किसानों का क्यों नहीं? भाजपा सरकार ने चुनाव प्रचार के दौरान किसानों से बड़े-बड़े वादे किए थे, लेकिन उन्हें पूरा करने में विफल रही है। भाजपा सरकार का कार्यकाल निराशाजनक रहा है और विशेषकर किसानों की अनदेखी की गई है, जिससे इतिहास में पहली बार राजस्थान में 61 किसानों ने आत्मघाती कदम उठाए। आज देश में आंकड़ों के मुताबिक हर 41 मिनट में एक किसान आत्महत्या कर रहा है। किसानों की इस दुर्दशा की जिम्मेदार भाजपा सरकार की किसान विरोधी नीतियां हैं। भाजपा सरकार ने बड़े-बड़े उद्योगपतियों का ऋण माफ कर दिया, लेकिन किसानों को कर्ज मुक्त करना उचित नहीं समझा। उन्होंने कहा कि किसानों की फसलों का उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं बढ़ाया गया, जिससे किसानों को खेती में भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है और न ही किसानों के लिए बोनस की घोषणा की गई है।
पायलट ने कहा कि जिस तरह का रवैया भाजपा सरकार का किसानों के प्रति रहा है, उससे स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा सरकार को किसानों से कोई सरोकार नहीं है। यह दुखद है कि एक किसान को लहसुन की फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाने के कारण जान से हाथ धोना पड़ा। इससे पूर्व प्रदेश में जितने भी किसानों की मृत्यु हुई है, उनके परिजनों को सांत्वना देने भाजपा सरकार का कोई भी मंत्री, नेता या कार्यकर्ता नहीं पहुंचा। पीडि़त किसानों को ढांढ़स बंधाना तो दूर भाजपा सरकार के नेताओं के गैर जिम्मेदारना बयानों ने किसानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है।
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