कोटा। दो अक्टूबर का दिन हम सब के दिलों में बचपन से ही उस सम्मान के लिए बसा हुआ है। जिस महापुरुष ने हमें आजादी से सांस लेने के लिए अग्रेजों के दांत अंहिसा की मार्ग पर चलते हुए खट्टे कर दिए। उस महान आत्मा का सम्मान आज पूरी दुनिया करती आ रही है, लेकिन हमारे ही मुल्क में अब साबरमती के संत के सम्मान में कमी देखने को मिल रही है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अंतिम इच्छा थी कि वे इस दुनिया से अलविदा हो जाएं तो उनकी अस्थियों को देश की नदियों में प्रवाहित किया जाए। गांधीजी की अस्थियों को देश की प्रमुख नदियों में प्रवाहित किया गया। उनके स्वर्गवास के तेरह दिन बाद कोटा में भी उस महान पुरुष की अस्थियां चंबल नदी के इस घाट पर प्रवाहित की गईं। गांधी के सम्मान में उस जमाने में हजारों लोग राष्ट्रपिता को अंतिम विदाई देने आए, लेकिन चंबल किनारे लगा यह शिलालेख अब सिर्फ इतिहास बन कर रहा है।
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