कोटा। मेरे हाथों की लकीरों के इजाफे हैं गवाह, मैंने पत्थर की तरह खुद को तराशा है बहुत.... यूं तो हाथों की लकीरें किस्मत बयां करती है लेकिन संघर्ष यदि जुनूनी हो तो लकीरें भी बदल जाती हैं और किस्मत भी। कुछ ऐसा ही यहां हुआ है। कक्षा 3 में पढ़ रही 8 साल की अबोध बालिका के नासमझी में ही सात फेरे हो गए। बालिका वधु बन गई। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
घर के कामकाज में भी लगी लेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी। गौना नहीं होने तक पीहर में पढ़ी, फिर ससुराल वालों ने पढ़ाया। ससुराल में पति और उनके बड़े भाई (जीजा) ने तमाम सामाजिक बाध्यताओं को दरकिनार करते हुए बहू की पढ़ाई करवाई। पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए दोनों ने खेती करने के साथ-साथ टेम्पो चलाया। बहू ने डॉक्टर बनने की ठानी, दो साल कोटा में एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट से कोचिंग करके दिन-रात पढ़ाई की और अब ये बालिका वधु डॉक्टर बनेगी। जी हां, ये बालिका वधु है जयपुर के चौमू क्षेत्र के छोटे से गांव करेरी निवासी रूपा यादव जिसने नीट-2017 में 603 अंक प्राप्त किए हैं और अब काउंसलिंग की प्रक्रिया से गुजर रही हैं। प्राप्तांकों के आधार पर प्रदेश के सरकारी कॉलेज में प्रवेश मिलना अपेक्षित है।
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