नादौती (करौली)। धोला दाता में चारे पानी के अभाव में गायें दम तोड़ रही है वहीं अनेक पशु बीमार होकर मौत के आगोश में समाने की तैयार हैं। प्रशासनिक स्तर पर कहा जा रहा है कि यहां कोई गाय नहीं मर रही है और व्यवस्थाएं दुरूस्त हैं, जबकि स्थिति इसके ठीक विपरित दिखाई दे रही है। धोला दाता के बोराड़ा तालाब में गायों का मरना और बीमार पडऩे का सिलसिला जारी है। चारे-पानी की तलाश में इधर-उधर भटकते मवेशी भूख-प्यास से व्याकुल हो रहे हैं। हालांकि इलाके में कुछ एक तालाब हैं जिनमें थोड़ा-बहुत पानी है, बस यही गोवंश के लिए एक सहारा बना हुआ है। इसके अलावा अन्य कोई व्यवस्था नजर नहीं आती। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
प्रशासन सुस्त, लोग आ रहे आगे
चारे पानी के अभाव में गोवंश की हो रही दयनीय हालत पर एक ओर प्रशासन जहां सुस्त बैठा है, वहीं समाजसेवी व अन्य लोग गोवंश को बचाने के लिए आगे आ रहे हैं। समाजसेवी महेश चपराना और गो सेवा दल सहित कुछ लोग गोवंश के लिए चारे का प्रबंध कर रहे हैं। लेकिन यह व्यवस्थाएं ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। लोगों के लिए सब जगह व्यवस्था कर पाना मुश्किल है। इसके चलते हालात उतने अच्छे नहीं है। यहां भूख प्यास से प्रतिदिन 4-5 गोवंश मर रहा है।
दानादाताओं की ओर से कराए गए बोरिंग भी बंद
बारिश होने तक गायों को पर्याप्त चारा पानी की व्यवस्था हो तभी जाकर गोवंश को बचाने का मिशन कामयाब हो सकेगा। इसे सरकार व प्रशासन की ओर से गंभीरता से नहीं लिया गया तो गोवंश का जीवन संकट में होगा। महेश चपराना ने बताया कि पिछले वर्ष धौलादाता के पास दानदाताओं की ओर से एक हजार फीट गहरे चार नलकूप बना कर ग्राम पंचायत को दान कर दिए गए। नलकूपों में पर्याप्त पानी उपलब्ध होने के बावजूद उन्हें अब तक शुरू नहीं कियागया है। इसके चलते दानदाताओं की ओर से गायों के नाम पर खर्च की गई लाखों रुपए की राशि का कोई उपयोग नहीं हो पाया है।
ट्रैक्टर ट्रॉली से चारा और टैंकर से पहुंचा रहे पानी
समाजसेवियों की ओर से पहाड़ पर ट्रैक्टर ट्रॉलियों में भरकर चारा पहुंचाया जा रहा है। वहीं टैंकर के माध्यम से प्रमुख स्थानों मवेशियों के लिए पानी की व्यवस्था की जा रही है। ग्रामीणों ने बताया कि चारे की ट्रॉली व पानी का टैंकर पहाड़ पर पहुंचता है तो गायों के झुंड वहां दौड़ आते हैं।
उपजिला कलेक्टर ने किया था दौरा
उपजिला कलेक्टर महेन्द्र सिंह यादव सहित विभिन्न विभागों के अधिकारियों ने पहाड़ पर पहुंच कर स्थिति का जायजा लिया था। स्थिति जानने के बाद भी प्रशासन की ओर से गोवंश को बचाने की दिशा में कोई पहल नहीं की गई। इसको लेकर आमजन और स्वयंसेवियों में प्रशासन व सरकार के प्रति रोष व्याप्त है।
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