जोधपुर। भीषण गर्मी में आम आदमी के लिए पानी की चिंता और चिंतन हो रहा है, लेकिन कोई उन पंछियों की बात नहीं करता जिन्हें पीने का पानी नहीं मिलता। जोधपुर में पुण्य और पाप से भी आगे उन परिंदों के लिए परिंडे लगाए जा रहे हैं जो पानी के लिए भटकते है।
मारवाड़ में है पानी की प्याऊ चलने का रिवाज
अमूमन पानी बचत नहीं की जाती और गर्मी के आते ही मजबूरन पानी की कटौती शुरू कर दी जाती है। ये बात अलग है कि इंसानों की प्यास बुझाने के लिए मारवाड़ में प्याऊ लगाने की परम्परा है। मान्यता है यहां प्याऊ लगाने से आपको मरणोपरांत ईश्वर के घर से दूसरा जन्म अच्छे घर में मिलता है। यानी अपने इस जन्म में लोगों की प्यास बुझाई तो इसका फल आपको अगले जन्म में भी मिलता है। जोधपुर निवासी श्रवण कुमार उपाध्याय कहते हैं कि पानी और प्यास को धर्म से जोडऩे के पीछे वैज्ञानिक और सामाजिक अर्थ भी है। सामाजिक स्तर की बात करें तो मारवाड़ में ऐसी परम्परा रखने का अर्थ यह हुआ कि गर्मी में राहगीर को बिना पानी के पैदल नहीं चलना पड़ता।
उपाध्याय बताते है कि यातायात की सुविधा तो अब हुई है, इससे पहले मारवाड़ में ऐसी ही गर्मी में लम्बी यात्रा दिन में भी करनी पड़ती थी। सोचिए जब इंसानों के लिए ऐसी व्यवस्थाएं स्थापित की गई तो फिर भला पंछियों को पीछे कैसे रखा जाता। ये सामाजिक व्यवस्था का ही रूप है जिसमे परिंदों के लिए परिंडे लगाने की व्यवस्था स्थापित की गई।
गांवों में हो रहा है परम्परा का निर्वहन
पश्चिमी राजस्थान में आज भी इस परम्परा का पालन किया जा रहा है। गर्मी के आते ही शहर और गांवों में पंछियों के लिए परिंडे लगाए जा रहे हैं। मिट्टी के छोटे-छोटे पात्रों में पानी भरकर उन्हें पेड़ों की डालियों पर बांधा जा रहा है, ताकि पक्षी किसी सूरत में प्यासे नहीं रहे।
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