जोधपुर। मारवाड़ी संस्कृति की अनूठी पहचान माने जाने वाला धींगा गवर मेले में शुक्रवार रात को खूब रंग जमा। महिलाएं विभिन्न तरह के स्वांग रचाकर घरों से निकली। इसमें कोई राजा-रानी बनी थी तो कोई पुलिस, कोई भिखारी तो कोई वकील। महिलाओं ने कई दिनों से इसकी तैयारियां कर रखी थी।
धींगा गवर मेले में काफी संख्या में महिलाओं की भीड़ दिखी। कई तरह के स्वांग रचाए महिलाएं जैसे ही बाहर निकली तो पुरुष मारे डर के घरों में ही बैठे रहे। परम्परा के अनुसार स्वांग रचाकर जब महिलाएं घरों से बाहर निकलती हैं तो उनके हाथ में बैंत होती है। उन्हें रास्ते में जो भी पुरुष दिख जाता है वे उसे बैंत से मारती हैं। ऐसा माना जाता है कि इन महिलाओं के बैत की पिटाई खाने वाले कुंवारों की जल्द ही शादी हो जाती है। ये महिलाएं रात्रि के समय स्वांग रचकर घरों से बाहर निकलती हैं।
जानकारी के अनुसार यह पर्व केवल मारवाड़ा में ही मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि धींगा गवर ईसरजी के नाते आई थी। इस पर्व के तहत शादीशुदा व विधवा महिलाएं सोलह दिन तक गवर की पूजा करती हैं। सोलहवें दिन गवर माता के ससुराल विदा होने के अवसर पर यह मेला भरता है। इस मौके पर एक रस्म भोळावणी होती है, जिसे पुरुषों के लिए देखना वर्जित माना जाता है।
ऐसे में महिलाएं तरह-तरह के स्वांग रचकर घरों से बाहर आती हैं। इसमें महिलाएं विष्णु लक्ष्मी, राजा-रानी, पुलिस, डॉक्टर, वकील, जाट-जाटनी भिखारी, सेठ-साहूकार आदि का स्वांग रचाकर वहां नृत्य करती हैं, जहां सोलह दिन तक नियमित पूजा के लिए धींगा गवर की स्थापना की जाती है।
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