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मीरा का स्वर सविनय अवज्ञा का स्वर है : डॉ. अर्जुनदेव चारण

Meeras voice is the voice of civil disobedience: Dr. Arjundev Charan - Jodhpur News in Hindi

-राजस्थानी काव्यकृति ’मीरां हजारा’ का लोकार्पण

जोधपुर।
मीरा को प्रेम, स्वाभिमान एवं नारी स्वतंत्रता का प्रतीक बताते हुए ख्यातनाम कवि - आलोचक प्रोफेसर (डॉ.) अर्जुनदेव चारण ने कहा कि जिस तरह महात्मा गांधी ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद देश में अंग्रेजो के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आंदोलन किया ठीक उसी तरह आज से वर्षो पहले पन्द्रहवीं शताब्दी में समाज में व्याप्त रूढियों के विरूद्ध मर्यादा में रहकर मीरा ने सविनय अवज्ञा का स्वर मुखरित किया जिसे सम्पूर्ण लोक ने अपना समर्थन दिया था ।

डॉ.अर्जुनदेव चारण ने यह विचार संवळी साहित्य संस्थान द्वारा आयोजित श्रवणसिंह राजावत रचित राजस्थानी काव्यकृति मीरां हजारा के लोकार्पण समारोह में व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि मीरा की प्रेम परम्परा कवयित्री सेफो, अडॉल, परवीन साकिर से होती हुई छह सौ वर्ष बाद आज के लोक से जुड़ती है ।

संवळी साहित्य संस्थान के सदस्य डॉ. कप्तान बोरावड़ ने बताया कि इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में प्रतिष्ठित आलोचक डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित ने कहा कि मध्यकालीन राजस्थान में मीरा का व्यक्तित्व विराट होने बाद भी तब से लेकर आज तक एक अबूझ पहेली की तरह उलझा हुआ है । उन्होंने कहा कि मीरां हजारा के रचनाकार ने इतिहास के बजाय लोक में रची बसी मीरा का राजस्थानी काव्य परम्परानुसार सुन्दर यशोगान किया है। समारोह में विशिष्ट अथिति प्रतिष्ठित इतिहासकार डॉ. महेन्द्रसिंह तंवर ने मीराबाई के जोधपुर से ऐतिहासिक संबंधों को उजागर करते हुए कहा कि मीरा के रचे हुए पद लोक में इस कदर रच बस गये कि मीरा हमारे लोक की अभिव्यक्ति का प्रतीक बन चुकी है ।

उन्होंने महाराजा मानसिंह के दरबार में घटी एक घटना उल्लेख करते हुए बताया कि अनेक दूसरे संतों ने मीराबाई के नाम पर पदों की रचना कर उन्हें मीराबाई के नाम से ही गाया है। इस अवसर पर समारोह के विशिष्ट अतिथि राजस्थानी युवा समिति के राष्ट्रीय सलाहकार राजवीरसिंह ने ऐतिहासिक तथ्यों को जोड़कर आज के समय में मीरा की प्रासंगिकता पर बात की ।

मीरां हजारा पुस्तक की उपयोगिता बताते हुए उन्होंने मिहिर, मेहर तथा मीरा की विवेचना करते हुए उसका संबंध सूर्य से होना बताया। राजस्थानी के युवा रचनाकार डॉ. रामरतन लटियाल ने लोकार्पित पुस्तक पर पत्र-वाचन करते हुए इसे लोक की अनमोल धरोहर बताते हुए कहा कि लेखक श्रवणसिंह राजावत ने मीरा के प्रति समर्पित भाव से अपने विचार प्रकट किए है ।

समारोह के प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित किया गया। संयोजक डॉ. कप्तान बोरावड़ ने स्वागत उद्बोधन तथा डॉ. सवाईसिंह महिया ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन डॉ. इन्द्रदान चारण ने किया। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार मोहनसिंह रतनू, सुशील कुमार, पद्मजा शर्मा, अनिल पूनिया, उपायुक्त जेडीए, मृदुला शेखावत,उपायुक्त जेडीए , दयालसिंह राजपुरोहित तहसीलदार , सूरजपालसिंह तहसीलदार, चैनसिंह तहसीलदार, माधव राठौड, एडवोकेट नाथूसिंह राठौड, बजरंगसिंह, उषारानी पूंगलिया, रतनसिंह चांपावत दिनेश बूब, राजेन्द्र बारहठ. भंवरलाल सुथार, निर्मला राठौड, जितेन्द्रसिंह साठिका, अमित गहलोत, भींवसिंह राठौड, महिपाल चारण,श्री रणजीतसिंह चौहान, अशोक कुमार, खेमकरण चारण, कैलाश दान, तेजाराम, श्री अरूण कुमार, हिमांशु शर्मा सहित शहर के प्रतिष्ठित विद्वान रचनाकार, मातृभाषा प्रेमी तथा शोध छात्र मौजूद रहे।

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Web Title-Meeras voice is the voice of civil disobedience: Dr. Arjundev Charan
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