जोधपुर। उसे पता ही नहीं था कि उसकी शादी कब हो गई। शादी की खुशियों को देख, समझ और अनुभव भी नहीं कर पाई थी। इसी दंश को झेल रही थी जोधपुर की ममता विश्नोई। उसकी बाल्यावस्था में शादी कर दी गई थी। 8 साल की उम्र में बाल विवाह के बंधन में बंधने के बाद करीब 13 साल तक उसका दंश झेलने वाली 21 वर्षीय ममता विश्नोई को जोधपुर के पारिवारिक न्यायालय संख्या-1 ने आखिरकार बाल विवाह से मुक्त करा दिया। जोधपुर के पारिवारिक न्यायालय संख्या-1 ने ममता के बाल विवाह को निरस्त करने का फैसला सुनाया। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
पीड़ित ममता ने इस बारे में सारथी ट्रस्ट की मैनेजिंग ट्रस्टी एवं पुनर्वास मनोवैज्ञानिक डॉ. कृति भारती के माध्यम से आवाज उठाई थी। ममता का बाल विवाह 8 साल की उम्र में बाड़मेर जिले के निवासी युवक से हुआ था। बाल विवाह के बारे में उसे कुछ वर्ष पूर्व ही पता चला था। यह पता चलने पर वह मानसिक तनाव में आ गई थी।
अभिशाप है बाल विवाह
बाल विवाह ऐसा अभिशाप है, जिसमें विवाह के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार न होने के कारण लड़के और लड़की पर शारीरिक और मानसिक पड़ता है। दोनों के लिए ही पति, पिता, पत्नी और माता के रूप में जिम्मेदारी निभाना मुश्किल हो जाता है। इस कारण नाबालिग पत्नी बीमारियों से घिर जाती है और मानसिक तनाव में आ जाती है। वहीं नाबालिग पति पर भी कम उम्र में ही बहुत जिम्मेदारियां आ जाती हैं, जिनके लिए वह पहले से तैयार भी नहीं होता है। बाल विवाह के कारण बच्चों का बचपन खो जाता है और एड्स तथा अन्य रोगों से पीड़ित होने का खतरा बढ़ जाता है।
दंड का है प्रावधान
बाल विवाह के दुष्परिणामों को देखते हुए ही भारतीय संविधान में विवाह के लिए लड़कों की आयु 21 वर्ष और लड़की की 18 वर्ष निर्धारित करके विभिन्न कानूनों और अधिनियम के माध्यमों से बाल विवाह को रोकने और उल्लंघन करने पर दंड का प्रावधान किया गया है, परंतु ये प्रावधान तब धराशायी होकर रह जाते हैं जब इन मासूमों के सिर पर सेहरा और मांग में सिंदूर सजा दिया जाता है।
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