-राजस्थानी कवि सम्मेलन आयोजित ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
जोधपुर। राजस्थान साहित्य उत्सव के अन्तर्गत सोमवार को कन्हैयालाल सेठिया सभागार में राजस्थानी कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें राजस्थानी भाषा के जाने-माने कवि मौजूद थे। मायड़ भाषा के शब्दों के मोतियों में पिरोई हुई कविताओं की माला ने श्रोताओं का दिल जीत लिया और रह-रहकर दाद मिलती रही।
कवि सम्मेलन में राजस्थानी वरिष्ठ कवि शिवराज छंगाणी, ताऊ शेखावाटी, डॉ. आईदानसिंह भाटी, मुकुट मणिराज समेत कई कविगण मौजूद थे। सम्मेलन में राजस्थानी भाषा के दिवंगत कवियों की रचनाओं को भी प्रस्तुत कर उन्के योगदान को याद किया गया। सम्मेलन का संचालन कवि कैलाश मंडेला ने किया।
सम्मेलन की शुरुआत कवि प्रहलाद सिंह झोरड़ा ने चुटीले अंदाज में की। उनकी रचना काव्य, ईं मंच न मां वाणि को वरदान है, एक मैं ही बावलो, ये सारा विद्वान है। इसके बाद उन्होंने झीणा-झीणा धोरियां रे बीच म्हारो गांव है... रचना के जरिए गांव की मिट्टी की खुशबू का अहसास करवाया।
कवयित्री मनीषा आर्य ने मैं मरुधर री रेत रेणका, मैं धोरा री राणी हूं, मैं शक्ति री महाआरती, मैं भक्ति री वाणी हूं.. के जरिए राजस्थान की धरती का यशगान किया।
डॉ. शारदा कृष्ण ने जिण भाषा न इतिहास रच्यो, उण री पीड़ा कुण जाणै है... सुनाकर राजस्थानी भाषा की पीड़ा को सबके सामने रखा।
अब्दुल समद राही ने आओ रे साथिडा हिलमिल दुखड़ा री बात सुणावां रे.. के जरिए मानवता का संदेश दिया।
शंकर सिंह राजपुरोहित ने मरुधर री हूं मैं मरूवाणी, अनगिनत मिनखा री आशा हूं, मैं राजस्थानी भाषा हूं.. सुनाया कर तालियां बटोरी।
विमला महरिया ने जिण घर जन्मी लाड़ली, वो घर सुरग समान.. रचना से बेटियों की महत्ता पर प्रकाश डाला।
अपने संचालन के दौरान कैलाश मंडेला ने आंसू न मुस्कान बणावै है बेटी, जीवण न वरदान बणावै है बेटी.. के जरिए जीवन में बेटियों की मौजूदगी की महत्ता बताई।
सम्मेलन में कमल रंगा, सत्यदेव संवितेंद्र, महेंद्र सिंह सिसोदिया, डॉ. कृष्णा आचार्य भी मंच पर मौजूद थे।
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