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सीनियर रेजिडेंट कोर्स में चयनित चिकित्सकों को रिलीव नहीं करने पर हाईकोर्ट का सख्त रुख, प्रमुख शासन सचिव समेत शीर्ष अधिकारियों को अवमानना नोटिस

High Court takes tough stand on failure to release doctors selected for the Senior Resident Course, issues contempt notice to top officials including the Principal Secretary - Jodhpur News in Hindi

जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने सीनियर रेजिडेंट कोर्स में चयनित सरकारी चिकित्सकों को रिलीव नहीं करने पर राज्य सरकार के शीर्ष अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाते हुए अवमानना नोटिस जारी किया है। अदालत ने प्रमुख शासन सचिव (चिकित्सा) गायत्री ए. राठौड़, चिकित्सा शिक्षा सचिव अम्बरीश कुमार और निदेशक डॉ. रविप्रकाश शर्मा सहित अन्य संबंधित अधिकारियों को जवाब तलब किया है। यह कार्रवाई उस समय हुई जब कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद 36 सरकारी चिकित्सकों को पांच माह बीत जाने के बाद भी सीनियर रेजिडेंट कोर्स के लिए रिलीव नहीं किया गया। झुंझुनू निवासी डॉ. विक्रम सिंह शेखावत सहित 36 राजकीय चिकित्सकों की ओर से अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की थी।
याचिका में कहा गया कि सभी याचिकाकर्ता एमबीबीएस व पीजी कोर्स पूर्ण कर चुके हैं और वर्तमान में विभिन्न सरकारी अस्पतालों में वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी (Senior Medical Officer) के रूप में कार्यरत हैं।
वर्ष 2021 की नीट-पीजी प्रवेश परीक्षा में चयनित होकर इन चिकित्सकों ने तीन वर्षीय पीजी कोर्स पूरा किया। नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) रेगुलेशन्स 2022 के अनुसार सहायक प्रोफेसर पद के लिए अब एक वर्ष का सीनियर रेजिडेंट कोर्स अनिवार्य है।
राज्य सरकार ने इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए 1 अप्रैल 2025 को एक नीति जारी की थी, जिसके तहत 2021 की नीट-पीजी मेरिट सूची के आधार पर विभिन्न सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सीनियर रेजिडेंट सीटों पर प्रवेश की प्रक्रिया शुरू की गई।
इसके तहत याचिकाकर्ताओं का 5 मई 2025 को आवंटन आदेश भी जारी हो गया। बावजूद इसके विभाग ने उन्हें रिलीव नहीं किया।
अधिवक्ता खिलेरी ने अदालत को बताया कि पहले “ऑपरेशन सिंदूर” के नाम पर चिकित्सकों को सीनियर रेजिडेंट कोर्स जॉइन करने से रोक दिया गया। अब फिर बिना किसी विधिक कारण के “चिकित्सकों की कमी” का हवाला देकर रिलीव नहीं किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि यह व्यवहार न केवल एनएमसी के नियमों के खिलाफ है, बल्कि हाईकोर्ट के आदेशों की भी अवमानना है।
पूर्व में दायर रिट याचिका पर 20 अगस्त 2025 को हाईकोर्ट ने चिकित्सा विभाग को निर्देश दिया था कि
“राज्य सरकार के परिपत्र दिनांक 5 जुलाई 2022 के अनुसार, याचिकाकर्ताओं को 15 दिनों के भीतर सीनियर रेजिडेंटशिप के लिए रिलीव कर आवश्यक आदेश जारी किए जाएं।”
इसके बावजूद पांच माह बीतने पर भी विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे यह अवमानना का मामला बन गया।
जस्टिस सुश्री रेखा बोराणा की एकलपीठ ने प्रारंभिक सुनवाई के दौरान कहा कि —
“जब एक बार न्यायालय ने स्पष्ट आदेश दे दिया है, तब प्रशासन का यह कर्तव्य बनता है कि वह समय पर अनुपालन सुनिश्चित करे। आदेशों की अनदेखी न्यायालय की अवमानना है।”
इसके बाद न्यायालय ने प्रमुख शासन सचिव गायत्री राठौड़, चिकित्सा शिक्षा सचिव अम्बरीश कुमार, निदेशक डॉ. रविप्रकाश शर्मा तथा अन्य संबंधित अधिकारियों को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि एनएमसी रेगुलेशन के अनुसार सीनियर रेजिडेंट कोर्स सहायक प्रोफेसर बनने के लिए आवश्यक है।
विभाग की ओर से “स्टाफ की कमी” का तर्क अवैध और मनमाना है, क्योंकि हाल ही में लगभग 1700 नए चिकित्सा अधिकारियों की नियुक्ति की जा चुकी है।
कई जिलों में रिलीव आदेश जारी होने के बावजूद चयनित चिकित्सकों को मौखिक रूप से रोकना कानून और सेवा शर्तों का उल्लंघन है।
हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख तय करते हुए अधिकारियों से पूछा है कि न्यायालय के आदेश का पालन अब तक क्यों नहीं किया गया, और किन कारणों से चिकित्सकों को रिलीव नहीं किया गया।
यदि आगामी सुनवाई तक विभाग ठोस जवाब नहीं दे पाया, तो अदालत द्वारा कड़ी कार्रवाई, यहां तक कि व्यक्तिगत दंडात्मक कार्यवाही भी की जा सकती है।

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