जयपुर। राजकॉम्प इन्फो सर्विसेज लिमिटेड के संयुक्त निदेशक के खिलाफ डॉक्टर टी एन शर्मा ने भ्रष्टाचार निरोधक विभाग को लिखित में शिकायत की थी कि अधिकारी प्रद्युम्न दीक्षित ने प्राइवेट कंपनियों से मिलीभगत करके अपनी पत्नी को नौकरी में दिखाकर लाखों रुपयों का भुगतान उसके बैंक खाते में करवाया। लेकिन भ्रष्टाचार निरोधक विभाग ने जांच की स्वीकृति के लिए सरकार को प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करना बताया और मामले की जांच शुरू नहीं की और प्रकरण में लंबे समय से कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी इसलिए राजस्थान उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता पूनम चंद भण्डारी ने न्यायालय को बताया कि सूचना प्रोद्योगिकी और संचार विभाग के अधिकारी प्रध्यूमन दीक्षित जो कि डेटा सेन्टर मे संयुक्त निदेशक के पद पर कार्यरत है तथा राजकॉम्प के द्वारा डेटा सेन्टर का कार्य करवाते है।
प्रध्यूमन दीक्षित के द्वारा एक प्राईवेट कम्पनी AURIONPRO के साथ सांठ-गांठ कर इस कम्पनी को मैन पावर नियुक्त करने के मामले मे एवं डेटा सेन्टर के अन्य कामों मे अनुचित लाभ दिया तथा इसके बदले मे अप्रैल 2019 से प्रध्यूमन दीक्षित ने अपनी धर्मपत्नी पूनम पांडे़ को उक्त फर्म के द्वारा राजकॉम्प मे फर्जी तरीके से नियुक्त दिखा रहे थे एवं उक्त फर्म AURIONPRO अप्रैल 2019 से एक निश्चित राशि पूनम के बैंक खाते मे लगातार ट्रान्सफर कर रही थी। यहां तक कि पूनम की हाजिरी भी प्रध्यूमन दिक्षित स्वंय सत्यापित करता था, जबकि पूनम कभी भी कार्यालय में नही आई। इस प्रकार से प्रध्यूमन ने अब तक कम से कम 50 लाख रूपये अपनी धर्मपत्नी पूनम के खाते मे बिना कार्य के ट्रान्सफर करवाया। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
अधिवक्ता भण्डारी ने कोर्ट को बताया कि यही नहीं October 2017 से प्रदयुमन दीक्षित की धर्मपत्नी के खाते में एक कंपनी Triazine Software Pvt. Ltd के द्वारा रिश्वत के पैसे जमा करवाए गए। यह कंपनी Triazine Software Pvt. Ltd को एक अन्य कंपनी E Connect के द्वारा वर्क outsource किया गया था एवं वह work EConnect को प्रदयुमन दीक्षित द्वारा ही दिया गया था। उस कार्य के एवज में प्रदयुमन दीक्षित ने रिश्वत अपनी बीवी के बैंक खाते में ली। लेकिन प्रद्युम्न दीक्षित के प्रभाव के कारण भ्रष्टाचार निरोधक विभाग कोई जांच नहीं कर रहा है और बहाना बना रहा है कि सरकार धारा 17 ए भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत जांच की अनुमति नहीं दे रही है।
अधिवक्ता भण्डारी ने बताया कि नियमानुसार ऐसे मामलों में जांच की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है धारा 17 -ए के तहत सिर्फ सरकारी कार्यों या कर्तव्यों के निर्वहन में लोक सेवक द्वारा की गई सिफारिश या लिए गए निर्णय से संबंधित अपराधों की जांच या अन्वेषण के लिए सक्षम अधिकारी से स्वीकृति लेना आवश्यक है, और यह प्रकरण इस प्रकृति का नहीं है। सिर्फ प्रद्युम्न दीक्षित के प्रभाव के कारण इस धारा का बहाना लिया जा रहा है और मामले को लटकाया जा रहा है।
भंडारी के तर्कों से सहमत होने के बाद राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आशुतोष ने कार्मिक विभाग एवं सूचना प्रोद्योगिकी और संचार विभाग के सचिव तथा भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के महानिदेशक को कारण बताओ नोटिस जारी कर तीन सप्ताह में जबाब मांगा है।
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