गिरिराज अग्रवालजयपुर। पिछली भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार के मुद्दों पर कार्रवाई नहीं करने को लेकर राजस्थान कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट ने गहलोत सरकार के खिलाफ फिर मोर्चा खोल दिया है। वे इस बार गहलोत सरकार के खिलाफ 11 अप्रैल को ही एक दिन के अनशन पर बैठने वाले हैं। यह दूसरा बड़ा मौका है जब पायलट ने गहलोत के नेतृत्व को सीधे तौर पर चुनौती दी है। इससे पहले वे मुख्यमंत्री न बनाए जाने पर कुछ विधायकों को लेकर मानेसर के एक होटल में जा बैठे थे। तब गहलोत को बड़ी मुश्किल से सरकार बचानी पड़ी थी।लेकिन, सवाल यह है कि क्या कांग्रेस हाईकमान अब पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट पर कार्रवाई कर पाएगा। क्योंकि, प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कुछ दिन पहले ही सरकार के खिलाफ अनर्गल बयानबाजी करने वालों को कार्रवाई करने का डर दिखाया था। कांग्रेस के लोग कहते हैं कि हाईकमान पायलट पर सख्त एक्शन शायद ही ले। क्योंकि पायलट तो चाहते ही यह हैं कि उन्हें कांग्रेस से निष्कासित किया जाए, ताकि वे सहानुभूति बटोर सकें। ऐसा करके वे पार्टी छोड़ने की भूमिका बना रहे हैं। जबकि कुछ लोगों का कहना है कि यह पायलट की प्रैशर पॉलिटिक्स है, ताकि विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें राजस्थान की कमान सौंप दी जाए।बहरहाल, ज्यादातर कांग्रेसियों की नजर इस बात पर है कि मंगलवार को एक दिन के अनशन में सचिन पायलट के साथ कौन-कौन मंत्री, विधायक और वरिष्ठ कांग्रेस कार्यकर्ता नजर आते हैं। पायलट और उनके समर्थक नेताओं पर कांग्रेस हाईकमान एक्शन ले पाता है अथवा नहीं। वैसे माना जा रहा है कि पायलट को समझाने-मनाने के प्रयास होंगे। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
क्या वाकई गहलोत और वसुंधरा राजे की मिलीभगत हैः
सीएम अशोेक गहलोत और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की आपसी मिलीभगत है। यह सवाल राजस्थान की राजनीति में काफी समय पहले से पूछा जा रहा है। सचिन पायलट ने इसे अब रेखांकित किया है। इसे यूं भी समझा जा सकता है कि पिछले कार्यकाल में सीएम अशोक गहलोत ने पूर्ववर्ती वसुंधराराजे सरकार के भ्रष्टाचार की जांच के लिए प्रशासनिक आयोग बनाया था। लेकिन, तब उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी। कोर्ट ने उस आयोग को ही भंग कर दिया था। इसके बाद सत्ता में लौटी वसुंधरा राजे ने जब नगरीय विकास एवं आवासन विभाग के घोटाले खोले तो मंत्री शांति धारीवाल तक को एसीबी से बचते फिरना पड़ा था। लेकिन, गहलोत और वसुंधरा राजे एक-दूसरे पर हमला करने से बचते रहे हैं। दावा तो यहां तक किया जाता है कि इस बार गहलोत सरकार बची ही वसुंधरा राजे के कारण है। संभवतः इसीलिए पायलट का मुद्दा है कि केंद्र सरकार ईडी और सीबीआई का इस्तेमाल कर जहां कांग्रेस को निशाना बना रही है। वहीं गहलोत राज्य में अपनी ही एजेंसियों का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। जबकि वर्ष 2018 के चुनाव में हमने वसुंधरा राजे सरकार के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया और उसी वजह से हम 21 से 100 सीटों तक पहुंचे। अब अगर हम वसुंधरा राजे शासन के भ्रष्टाचार की जांच नहीं कराएंगे तो जनता समझेगी कि इनकी मिलीभगत है। इस संबंध में वे गहलोत सरकार को दो पत्र भी लिख चुके हैं।
इस कदम से पायलट को आखिर मिलेगा क्या?
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक सचिन पायलट चाहते हैं कि उन्हें राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया जाए। वर्ष 2018 के चुनाव में राजस्थान के गुर्जरों ने कांग्रेस को इसीलिए एकमुश्त वोट दिया था कि पायलट मुख्यमंत्री बनेंगे। प्रदेश के अधिकांश युवा भी यही चाहते थे। लेकिन, उनका मुख्यमंत्री बनना फिलहाल संभव नजर नहीं आ रहा है। क्योंकि कांग्रेस में गहलोत उन्हें सीएम नहीं बनने देंगे और भाजपा बनाएगी नहीं। यानि वे पार्टी छोड़ें या ना छोड़ें, वे फिलहाल मुख्यमंत्री तो नहीं बन रहे। अगर दबाव बनाकर वे राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने में कामयाब हो जाते हैं तो भी उन्हें काम तो गहलोत के अनुसार ही करना होगा। क्योंकि मौजूदा अध्यक्ष गोविंद डोटासरा से सीएम अशोक गहलोत तमाम संगठनात्मक नियुक्तियां करवा चुके हैं। पायलट के पास तो जिला या ब्लॉक अध्यक्ष तक बनाने का ऑप्शन नहीं बचा है। अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़ना और सत्ता हासिल कर मुख्यमंत्री बनना बहुत दूर की कौड़ी है। इधऱ, उनके समर्थक और कार्यकर्ता चाहते हैं कि पायलट जो भी निर्णय लें, वह जल्दी लें। ताकि वे अपनी अगली भूमिका तय कर रणनीति बना सकें।
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