नेताओं के दिमाग का दिवालियापनः ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
राजस्थान की राजनीति में नित नए जुमले और शब्द सामने आ रहे हैं। नाकारा, निकम्मा, नालायक और गद्दार के बाद अब शब्द आया दिमाग का दिवालियापन। जी हां, यह शब्द भी सूबे के मुखिया जी ने अपने पुराने सहयोगी सचिन पायलट के लिए उपयोग किया है। पायलट ने पेपरलीक मामले में राज्य लोक सेवा आयोग को भंग करके प्रभावित अभ्यर्थियों को मुआवजा दिए जाने की मांग की थी। हालांकि विपक्ष भी ऐसी ही मांग कर रहा है। लेकिन, यह ऐसा मुद्दा है जिसके राजनीतिक दलों के लिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग मायने हैं। जैसे कि हरियाणा में भी नौकरियों में भ्रष्टाचार और पेपरलीक का मुद्दा है। वहां कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा राज्य लोकसेवा आयोग को भंग किए जाने की मांग कर रहे हैं। क्योंकि वहां भी आयोग के एक सदस्य करोड़ों रुपए की रिश्वत के साथ अपने ऑफिस में पकड़े गए थे। राजस्थान में भी आयोग का एक सदस्य गिरफ्तार हुआ है। हरियाणा के भाजपाई इस मुद्दे पर बिलकुल चुप हैं। राजस्थान में कांग्रेसी नेता पायलट पेपरलीक और आयोग को लेकर आवाज मुखर कर रहे हैं। अब यह समझ से बाहर है कि आखिर किसके दिमाग का दिवालियापन है। नेताओं का या उस वोटर का जिसे नेता अपने हिसाब से बेवकूफ बनाने में लगे हैं।
अफसर का वॉलंटियरी डेवलपमेंटः
मुखिया जी का दावा है कि प्रदेश में भ्रष्टाचार रोकने के लिए उन्होंने सबसे ज्यादा कार्रवाइयां की हैं। करीब 65 ऐसे अफसरों को पकड़ा है जो भ्रष्टाचार में लिप्त थे। लेकिन, सवाल यह है कि अफसरों को सिर्फ पकड़नेभर से क्या भ्रष्टाचार रुक गया। क्या इससे अफसरों में खौफ पैदा हुआ है। जवाब मिलता है, नहीं। क्योंकि अफसरों को पकड़ना ही काफी नहीं है। बल्कि उन्हें सेवा से बर्खास्त करके उनकी प्रॉपर्टी जब्त करना जरूरी है। हाल ही नगरीय विकास, आवासन एवं स्वायत्त शासन विभाग का भ्रष्टाचार सामने आया तो प्रिंसिपल सेक्रेटरी को गांवों की पंचायती सौंप दी तो उनके सहयोगी आरएएस अफसर को वालंटियरी डेवलपमेंट करने का जिम्मा सौंप दिया। जबकि हकीकत यह है कि अगर कार्मिक विभाग का डाटा मंगवाकर ही देख लें तो मुखिया जी खुद चौंक जाएंंगे कि भ्रष्टाचार रोकने के नाम पर सिर्फ कागजी खानापूर्ति हो रही है। भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति जारी करने में भी रसूखदार और अपना-पराया देखा जा रहा है। दौसा हाइवे प्रकरण में पकड़े गए तीन रिश्वतखोर अफसरों में से सिर्फ एक अफसर की अभियोजन स्वीकृति जारी हुई, दो की अभी भी पेंडिंग है। ऐसे दर्जनों मामले हैं जिनमें उन अफसरों पर मुकदमा चलाने के लिए एसीबी को अभियोजन स्वीकृति तक नहीं दी जा रही है। जबकि यह तो अदालत को तय करना है कि पकड़ा गया अफसर भ्रष्ट है या नहीं।
कर्नाटक के बाद मुखिया जी की इमेज बिल्डिंगः
कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की विजय के बाद प्रदेश में मुखिया जी की ब्रांडिंग संभाल रही कंपनी आत्ममुग्ध है। कर्नाटक की जीत का श्रेय जितना कांग्रेस के बड़े नेताओं ने नहीं लिया, उससे ज्यादा श्रेय यह कंपनी ले रही है। ले भी क्यों ना। कंपनी को कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री जी का आशीर्वाद जो मिला हुआ है। उन्हीं के दम पर तो राजस्थान में पैर जमाए हुए हैं। आत्ममुग्धता का हाल यह है कि कंपनी को कर्नाटक जीत का श्रेय देने वाले आलेख तक समाचार पत्रों में प्लांट करवाए गए। इसका संदेश यही है कि रणनीति के मामले में इनके आगे प्रशांत किशोर भी फेल है। जैसे कंपनी मुखिया जी की नहीं बल्कि खुद दी इमेज बिल्डिंग में लगी है। लेकिन, हाल ही सोशल मीडिया में इमेज ब्रांडिंग का एक नमूना देखने को मिला। सोशल मीडिया के इस विज्ञापन में सचिन पायलट के फोटो के साथ कहा गया था कि भ्रष्टाचार की चूलें हिलाने को सिर्फ एक ही बंदा काफी है। यह इतना प्रभावशाली था कि इसके आगे बचत, राहत, बढ़त, महंगाई राहत जैसे सारे शब्द फीके पड़े गए। इमेज बिल्डिंग के इस खेल में अजेय बनने के लिए अब कहा जा रहा है कि पहले जेल जा चुके विज्ञापनों की दुनिया के बादशाह रह चुके पुराने खिलाड़ी की सेवाएं लेने की तैयारी की जा रही है। लेकिन, ब्यूरोक्रेसी और नौकरशाहों की राय सरकार रिपीट होने के पक्ष में नहीं है।
आखिर कैसे बना भ्रष्टाचार का योजना भवनः
राजस्थान का डीओआईटी विभाग इन दिनों देशभर में सुर्खियों में है। बेसमेंट की आलमारी से 2.31 करोड़ रुपए और सोना मिलने से अब भाजपा को भी मुद्दा मिल गया है। संभवतः यह राजस्थान ही नहीं बल्कि देश के इतिहास में इस तरह की अनूठी घटना है कि सरकारी दफ्तर की आलमारियां ही भ्रष्टाचार की नकदी और सोना उगल रही हैं। इसीलिए तो मुखिया जी भी चिंतित हो उठे। खुद को घिरता देख उन्होंने मुख्य सचिव को आगे कर दिया। ताकि वे इसे ठीक से हैंडल कर सकें। अन्यथा नीचे वाले पुलिस और प्रशासनिक अफसर तो पूरा रायता फैला देते। मुख्य सचिव ने यह जिम्मेदारी बखूबी संभाल ली। दो दिन तक मीडिया की सुर्खियां बनने के बाद मामला आखिर दब ही गया। ना मुखिया जी तक आंच पहुंची और ना ही उनके खासमखास आलाअफसरों तक। हां. संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी को जरूर शहीद करना पड़ा। लेकिन, कुछ ही दिनों की बात है। सरकार अभियोजन स्वीकृति ही नहीं देगी। निलंबन भी 6 माह से ज्यादा नहीं रख पाएंगे, क्योंकि उसके बाद 75 प्रतिशत वेतन देना होता है। फिर सीट बदलकर वेद जी को कहीं भी प्रकाश फैलाने के लिए बिठा देंगे। लेकिन, भाजपा को चुनावी मुद्दा मिल गया है। इसीलिए सचिवालय घेरने की तैयारी हो गई है। साथ ही गड़े मुर्दे उखाड़ने की तर्ज पर टेंडर नहीं ले सकने वाली कंपनियां भी भाजपा के खेमे में आ गई है । यह कंपनियां भाजपा को बता रही हैं कि आखिर भ्रष्टाचार का योजना भवन कैसे बना ?
चंद्रराज सिंघवी का नया दांव
खुद को राजनीति का चाणक्य बताने वाले चंद्रराज सिंघवी ने अब नया दांव खेला है। शिंदे गुट वाली शिवसेना का राजस्थान प्रभारी बनकर उन्होंने नए राजनीतिक सफर की शुरुआत की है। इससे पहले सिंघवी ने पायलट, बेनीवाल समेत अन्य छोटी-छोटी पार्टियों के नेताओं को खूब सलाह दी। जब उनसे ज्यादा तवज्जों नहीं मिली तो उन्होंने महाराष्ट्र वाली पार्टी के पास जाना बेहतर समझा। अब राजस्थान में जगह-जगह सम्मान समारोह करवाकर चंद्रराज सिंघवी राजनीत में सक्रिय हो रहे हैं। राजनीति के गलियारों में भी चर्चाएं जोर पकड़ रही है कि आखिर कैसे और किस रास्ते से सिंघवी शिवसेना तक पहुंचे। साथ ही आखिर कितना फंड लेकर आए हैं, जिससे राजस्थान में भी पार्टी खड़ी हो सके। अब चुनाव में 6 महीने ही बचे हैं। इस दौरान सिंघवी साहब को पार्टी मजबूती के साथ खड़ी करनी है।
चुनाव से पहले पेपरलीक के बहाने ईडी की एंट्रीः
अपनों और परायों के राजनीतिक हमलों के बीच ईडी के डर से इन दिनों कई मंत्रियों और अफसरों की नींद उड़ी हुई है। कई दिनों से राजनीति और सत्ता के गलियारों में चर्चा-ए-आम है कि लोकल टीम के अलावा ईडी की दो टीमें बाहर से आई हैं। ईडी पिछले कई महीनों से भ्रष्टाचार के दस्तावेज जुटाने में लगी है। इनकी नजर मुखिया जी के खासमखास चहेते मंत्रियों और बोर्ड-निगमों के चेयरमैन एवं अफसरों पर है। खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास कई बार सार्वजनिक तौर पर साथी मंत्रियों को आगाह भी कर चुके हैं। हुआ भी वही, जिसका डर था। पेपर लीक मामले के बहाने उदयपुर जेल में राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्य बाबूलाल कटारा से पूछताछ करके ईडी ने राजस्थान में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी है। अब लोकसेवा आय़ोग औऱ पेपरलीक से जुड़े सभी तारों को खंगालने में जुटी है। अगर तार सही जुड़े तो प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, पानी वाले मंत्री महेश जोशी समेत कई नेताओं को करंट लगना तय माना जा रहा है।
-खास खबरी
(नोटः इस कॉलम में हर सप्ताह खबरों के अंदर की खबर, शासन-प्रशासन की खास चर्चाएं प्रकाशित की जाती हैं)
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