जबरो दोस्त की बोली शुरूः ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
चुनावी साल में जबरो दोस्त की बोली शुरू हो गई है। यह करीब 800 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। जबरो दोस्त बनने की इच्छा रखने वाले अफसर इस पर नजर बनाए हुए हैं कि आखिर यह कहां तक जाती है। खुद को डायनामिक ब्यूरोक्रेट मानने वाले कुछ अफसरों ने तो बिल्डरों के अटके हुए बड़े प्रोजेक्ट तलाशने भी शुरू कर दिए हैं। संभवतः इसीलिए जेडीए में इन दिनों जवाहर सर्किल के पास और गुर्जर की थड़ी के निकट बेशकीमती जमीनों समेत उलझे हुए कई बड़े मामलों की फाइलों से धूल हटाई जा रही है।
रंगों की होली पर सियासी रंगः
मेहमान नवाजी और मिठासभरी संस्कृति के लिए मशहूर राजस्थान में होली का रंग जमने लगा है। लेकिन, इस बार रंगों की होली में सियासी रंग भी देखने को मिलने वाले हैं। कौन नेता किसके यहां होली खेलने जाएगा, इस पर सबकी नजरें रहेंगी। खास तौर पर सचिन पायलट क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को रंग लगाएंगे या वसुंधरा राजे के यहां भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया होली खेलने जाएंगे। हालांकि होली से जो बातें सामने आई हैं…उससे नहीं लगता है कि यह होली सियासत में मोहब्बत का पैगाम दे पाएगी। वह भी तब जब ज्यादातर नेता अलग-अलग शक्ति प्रदर्शन में लगे हों। पूर्व सीएम वसुंधराराजे ने सालासर में अपना जन्मदिन मनाया। वहीं पूनिया ने जयपुर में भाजयुमो के प्रदर्शन पूरी ताकत झोंकी। एक दिग्गज नेता डॉ. किरोड़ीलाल मीणा राज्यपाल के यहां मांग लेकर गए, वहीं केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत कोर्ट में गहलोत के खिलाफ मानहानि का दावा पेश कर रहे थे। होली पर लोगों चेहरों पर रंग कितना भी चढ़े, सियासी रंग भी नेताओं पर खूब चढ़ रहा है।
कई पीआरओ ने ओएसडी के सामने खोला मोर्चाः
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भले ही बजट-2023 को देश का सबसे अच्छा बजट बताया हो। लेकिन, प्रचार महकमे सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के पीआरओ इससे खुश नहीं हैं। पिछले दिनोंं कुछ पीआरओ ने तो सीएम के एक ओएसडी के सामने ही बोल दिया कि यह सरकार तो जाएगी। रिपीट होने के कोई चांस नहीं है। यह वाकया कई दिन से सचिवालय की आम चर्चा में है। वहीं, डीपीआर के अधिकारी अपना मुख्यालय सचिवालय के बाहर जाने की खबरों से परेशान हैं। अन्य विभागों के कर्मचारी बोल रहे हैं कि जब सरकार के सूचना-जनसम्पर्क कर्मी ही ऐसा माहौल बनाने लग जाएं तो सरकार की योजनाएं जन-जन तक कैसे पहुंच पाएंगी। हालांकि पीआरओज की नाराजगी की एक वजह यह भी है कि पिछले दिनों श्रीगंगानगर के एक पीआरओ को इसलिए हटा दिया गया क्योंकि उसने जिला कलेक्टर के निर्देश पर पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के दौरे की खबर मीडिया में चला दी थी।
ओएसडी ने बढ़ाई कई विधायकों की धड़कनेंः
सरकार के एक ओएसडी ने इन दिनों कई विधायकों की धड़कनें बढ़ाई हुई हैं। उन्हें लगता है कि मुख्यमंत्री के खासमखास माने जाने वाले ये ओएसडी महोदय कहीं उनका टिकट न कटवा दें। क्योंकि ओएसडी महोदय खुद प्रदेश में दौरे कर रहे हैं। हर जगह उनका जिस तरह से स्वागत-सत्कार हो रहा है, उसे देखते हुए टिकट के संभावित दावेदार और विधायकों का चिंतित होना स्वाभाविक है। हालांकि सीएम के संकट मोचक बनने के चक्कर में ये ओएसडी महोदय खुद केंद्रीय जांच एजेंसियों के घेरे में आ चुके हैं। इन्हें कई बार दिल्ली बुलाया जा चुका है। चूंकि मीडिया और सोशल मीडिया का काम भी खुद संभाल रहे हैं, इसलिए टीम के लोगों द्वारा खबरों में प्राथमिकता देना तो बनता ही है।
अफसर भी टटोल रहे जनता की नब्जः
विधानसभा चुनाव को देखते हुए नेताओं और सरकार के साथ-साथ कुछ अफसर भी जनता की नब्ज टटोल रहे हैं। इनमें कुछ प्रशासनिक सेवाओं से रिटायर हो चुके हैं तो कुछ वीआरएस लेकर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। शहरी विकास संभालने वाले विभागीय मुखिया जी का नाम सबसे आगे है। हालांकि अभी विधानसभा क्षेत्र फाइनल नहीं किया है। लेकिन, वे पूर्वी राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले की किसी सीट पर दस्तक देने की तैयारी में है। वैसे हाल ही उन्होंने धौलपुर में बेटे को वेयरहाउस खुलवाया है। वहीं कुछ रिटायर आईएएस अधिकारियों की नजर अनुसूचित जाति बहुल सीटों पर है। इनमें एक अफसर टोंक जिले की निवाई सीट पर अपने लिए संभावनाएं तलाश रहे हैं। जबकि दूसरे अफसर जयपुर और दौसा जिले में सुरक्षित सीट की खोजबीन में जुटे हैं। -खास खबरी
(नोटः इस कॉलम में हर सप्ताह खबरों के अंदर की खबर, शासन-प्रशासन की खास चर्चाएं प्रकाशित की जाएंगी)
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