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साप्ताहिक कॉलमः दीवारों के कान

Weekly Column: Ears in the Walls - Jaipur News in Hindi

चुनाव जीतने से पहले संग लग लिए दलालः राजनीति अवसरवादिता का खेल है। इसलिए राजनीति में मौका कोई नहीं चूकना चाहता। जो मौका चूकता है, वह उम्रभर पछताता है। ऐसा ही हाल सत्ता के नजदीक रहने वाले लाइजनरों का है। ऐसे लोग पावरफुल और पावर में आने वाले नेता हों या अफसर कहीं ना कहीं से जुगाड़ लगाकर उन्हें पकड़ ही लेेते हैं। अब सांगानेर विधानसभा क्षेत्र को ही देख लीजिए। यहां से भाजपा ने भजनलाल शर्मा को अपना प्रत्याशी बनाया है। सो, भरतपुर कनेक्शन निकालकर लाइजनर प्रमोद शर्मा भजनलाल के साथ चिपक लिए। चिपक ही नहीं लिए वे खास सिपहसालार भी बन गए हैं। प्रमोद शर्मा वहीं हैं जिनकी वजह से पिछले दिनों भरतपुर के डीआईजी एसीबी के रडार पर आ गए थे। ये महाशय उनके साथ लक्ष्मण की तरह लगे हुए थे। खैर, भजनलाल के साथ लाइजनर प्रदीप शर्मा का फोटो जैसे ही मानसरोवर के एक पत्रकार ने वायरल किया तो भजनलाल जी तुरंत उनके घर पहुंच गए। खैर, मान-मनुहार के बाद उन पत्रकार से तो फोटो डिलीट करवा लिए। लेकिन, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। फोटो अन्य कई ग्रुपों में वायरल हो गया था। भाजपा वाले भी अब चटखारे ले रहे हैं कि क्या अशोक और गांधी जी वाले कागजों के दम पर यही आगे भी लाइजनिंग करेंगे। गलियों के कुत्तों की तरह घूम रही ईडीः
देशभर में इन दिनों दो ही चर्चाएं प्रमुख हैं। पहला- पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और सभी चुनावी राज्यों में ईडी के छापे। राजस्थान में भी प्रत्याशी घोषित होने के बाद ईडी ने जहां कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और महवा विधायक ओमप्रकाश हु़डला के यहां छापे डाले। मुखिया जी के बेटे को भी दिल्ली तलब कर लिया है। अब भला मुखिया जी चुप कैसे रह सकते हैं। कांग्रेस चुनाव अभियान का आगाज करने के मौके पर छत्तीसगढ़ सीएम के बयान के हवाले से ईडी की तुलना गलियों के कुत्तों से कर दी। हालांकि उन्होंने सफाई भी दी कि सोशल मीडिया पर किसी ने यह बयान उनके नाम चला दिया है, जबकि उन्होंने तो एक मुख्यमंत्री का बयान कोट किया था। वे चाहते हैं कि ई़डी, सीबीआई और इन्कम टैक्स आदि देश की प्रीमियर संस्थाएं हैं। इनकी साख बनी रहनी चाहिए तभी आर्थिक अपराध और क्राइम रुकेगा। इससे पहले मुखिया जी खुद ईडी की तुलना टिड्डी दल से कर चुके हैं। अब भाई लोग पूछ रहे हैं कि आखिर छत्तीसगढ़ सीएम और राजस्थान सीएम के बयान में क्या अंतर है। एक ने जानवरों से तुलना की तो दूसरे ने कीड़े-मकोड़ों से।
कांग्रेस नेताओं ने घटाया हाईकमान का कदः
राजस्थान कांग्रेस में यूं तो लंबे समय से अंदरूनी खींचतान चल रही है। कई बार ऐसे मौके आए जब यहां के नेताओं ने अपने हाईकमान को बौना साबित किया है। चाहे तीन साल पहले आए सियासी संकट का समय हो या मुख्यमंत्री बदले जाने की बात हो। अब जब विधानसभा चुनाव आ गए हैं तो अपना वर्चस्व साबित करने में जुटे स्थानीय नेताओंं ने सार्वजनिक रूप से हाईकमान का कद छोटा कर दिया है। दरअसल, शहर में कांग्रेस फिर से के जो चुनावी विज्ञापन वाले होर्डिंग्स लगाए गए हैं। उनमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा, सचिन पायलट समेत तमाम नेताओं के फोटो टिकट साइज यानि बहुत छोटे कर दिए गए हैं। हालांकि यह डिजाइन बॉक्स वाली कंपनी का बताया जा रहा है। लेकिन, भाई लोगों का कहना है कि यह पहली बार हुआ है जब स्थानीय नेताओं ने अपने ही हाईकमान का कद घटाया हो। बात सही भी है जब राजस्थान में सरकार रिपीट कराने की जिम्मेदारी मुखिया जी की ही है तो फिर हाईकमान को बेवजह ज्यादा तवज्जो क्यों देना।

कांग्रेस का मीडिया मैनेजमेंट फेल, भाजपा का अव्वल
राजस्थान में भाजपा ने विधानसभा चुनाव को लेकर एक राज्यस्तरीय मीडिया सेंटर खोल दिया है, जबकि सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी इस मामले में फेल साबित हो गई । खास खबर को पता चला है कि पूरा बजट एक कंपनी को देने से प्रदेश कांग्रेस कमेटी पीछे हट गई है । इसलिए कांग्रेस वॉर रूम में ही कभी-कभार प्रेस कॉन्फ्रेंस हो जाती है । जबकि भाजपा तो लगातार एक के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रही है । साथ ही भाजपा के अलग-अलग प्रवक्ताओं के कम के कम चार-पांच प्रेस नोट रोजाना मीडिया को जारी हो जाते है । जबकि प्रदेश कांग्रेस का मीडिया सेल अपने गिने-चुने पत्रकारों की सलाह से चल रहा है । जिसके चलते कांग्रेस का मीडिया मैनेजमेंट फेल हो रहा है । सिर्फ सीएम की पीसी ही लाइव कवरेज होती है, बाकी कांग्रेस प्रवक्ता न्यूज चैनलों की डिबेट में जाने का इंतजार करते है । वहीं भाजपा मीडिया सेंटर पर लंच-डिनर और नाश्ते की व्यवस्था मीडिया के लिए रोजाना की गई है, इसके चलते ज्यादातर मीडियाकर्मी कांग्रेस वॉर रूम या पीसीसी जाना कम ही पसंद करते है।
राजस्थान में नेताओं की अवसरवादी राजनीति
विधानसभा चुनाव में जयपुर में दलबदलने की होड़ मची हुई है । जिसको टिकट नहीं मिला, उसने तत्काल पार्टी बदल ली। अब भाजपा और कांग्रेस को जिताऊ और टिकाऊ उम्मीदवार चाहिए । इसलिए ज्यादा देर ज्वाइन कराने में भी नहीं लगती है । यह दांव दोनों पार्टियां खेल रही है । एक ही दिन मे पार्टी की दशकों पुरानी आस्था टूट रही है और दूसरी पार्टी में एक दम से आस्था प्रकट हो रही है । आम जनता भी जानती है कि सिर्फ वोटो की राजनीति और चुनाव जीतने की गणित तक यह खेल चलेगा । आम जनता यह खेल देख चुकी है और भुगत भी चुकी है । अब इंतजार तो यह है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में कौन-कौन के दलबदलुओं को जनता सबक सिखायेगी । अगर दलबदलू चुनाव हार जाता है, तो वह दोबारा अपनी पुरानी पार्टी ज्वाइन करने में भी देर नहीं लगाता है ।
-खास खबरी
(नोटः इस कॉलम में हर सप्ताह खबरों के अंदर की खबर, शासन-प्रशासन की खास चर्चाएं प्रकाशित की जाती हैं)

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