जयपुर । स्थानीय बहाई समुदाय द्वारा बहाई धर्म के अग्रदूत
दिव्यात्मा बाब और संस्थापक युगावतार बहाउल्लाह की युगल जयन्ती के अवसर पर
26 अक्टूबर की संध्या पर विशेष प्रार्थनाएं व सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित
कर समारोह का आयोजन किया गया। युगल जन्मोत्सव के उपलक्ष में मंगल मार्ग,
बापूनगर, स्थित बहाई भवन में 26 अक्टूबर को सायं 6 बजे से रंगारंग
सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें प्रार्थनाओं के सस्वर पाठ
के साथ ही गीतों, नृत्यों, वार्ताओं और अन्य दृश्य-श्रव्य आयोजनों की मोहक
प्रस्तुति के साथ बाब एवं बहाउल्लाह के जीवन एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला
गया। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
इस दौरान हनुमान ग्रुप ने नाटक प्रस्तुत कर सबका ध्यान
आकर्षित किया वही नियाज़ आलम ने कविता प्रस्तुत कर सबकी तालिया बटोरी तो
सानिया, श्रेया व स्नेहा के नृत्य ने सबका मन मोह लिया।
इस अवसर पर
स्थानीय बहाई आध्यात्मिक सभा जयपुर के सचिव अनुज अनन्त ने बताया कि
बहाउल्लाह की दैवीय शिक्षाओं के केंद्र में तीन बुनियादी सत्य हैं – ईश्वर
एक है, सभी ईश्वरीय संदेशवाहकों का प्रेरणा-स्रोत एक है और मानवजाति एक है।
दो शताब्दियों से भी कम समय में, बहाई धर्म के संदेश का तेजी से प्रसार
धार्मिक इतिहास की दृष्टि से अभूतपूर्व है। बहाई धर्म लगभग 300 देशों,
प्रदेशों और द्वीपों तक विस्तारित हैं और इसमें सभी पृष्ठभूमियों के लोग
हैं। बहाई साहित्य का अनुवाद 800 से भी अधिक भाषाओं में उपलब्ध है।
एक
प्रगतिशील मानव समाज के लिए बहाउल्लाह की शिक्षाओं में जीवन के सभी
क्षेत्रों के लिए विधान और अध्यादेश शामिल हैं। उनकी प्रमुख शिक्षाओं में
शामिल हैं: सभी धर्मों की मूल एकता, सत्य की स्वतंत्र खोज, विज्ञान और धर्म
में तालमेल, स्त्री-पुरुष की समानता, अनिवार्य विश्वव्यापी शिक्षा, हर तरह
के पूर्वाग्रह का अंत, विश्व शांति, अत्यधिक गरीबी और अमीरी का अंत तथा
परामर्श के माध्यम से सभी बातों का शांतिपूर्ण समाधान।
समारोह कि
मुख्य वक्ता सहर हगीगत अनवरी ने बताया कि बहाई विश्व धर्म के संस्थापक
बहाउल्लाह का जन्म 1817 में तेहरान (ईरान) के एक शाही घराने में हुआ था
किंतु राजसी जीवन का त्याग करके उन्होंने गरीबों और वंचितों की सेवा में
अपना जीवन लगा दिया। उन्होंने एक नए धर्म –बहाई धर्म– की स्थापना की जिसका
ईरान के मुल्लाओं और शासकों ने घोर विरोध किया। बहाउल्लाह को तेहरान की एक
कुख्यात जेल "सियाह-चाल" में डाल दिया गया और उन्हें घोर यातनाएं दी गईं।
अगले 40 वर्षों तक उन्हें लगातार एक देश से दूसरे देश निष्कासित किया जाता
रहा और कठोर कारावास में रखा गया जहां 29 मई 1892 को वे अक्का (वर्तमान
इज़रायल में) स्वर्ग सिधार गए।
दूसरी ओर, दिव्यात्मा बाब वह
“अग्रदूत” अवतार थे जिन्होंने बहाउल्लाह के आगमन की पूर्वघोषणा की थी। बाब
का जन्म ईरान के शीराज शहर में 1819 में हुआ था। उनका मुख्य उद्देश्य लोगों
को इस तथ्य के प्रति जागरूक करना था कि मानव इतिहास का एक नया अध्याय शुरु
हो चुका है – एक ऐसा युग आ चुका है जबकि समस्त मानवजाति की एकता स्थापित
होगी और आध्यात्मिक एवं भौतिक समृद्धि से युक्त एक नई विश्व सभ्यता जन्म
लेगी। बाब ने अपने अनुयायियों को आदेश दिया कि वे पूरे देश में इस संदेश का
प्रसार करें और लोगों को उस अवतार के आगमन के लिए तैयार करें।
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