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वाजपेयी और राजस्थान का गहरा नाता रहा है ....

Vajpayee and Rajasthan have a strong bond - Jaipur News in Hindi

-नीति ‘गोपेंद्र’ भट्ट-
जयपुर
। कुछ जननेता ऐसे होते है,जिन्हें हर कोई राजनैतिक चश्में से नहीं देखता,बल्कि उनका सम्मान दलगत राजनीति से ऊपर किया जाता है । ऐसे ही महान व्यक्तित्व के धनी शख़्सियत थे पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी जिन्हें उनके घूर राजनैतिक विरोधी भी दिल से सम्मान देते थे।
वाजपेयी और राजस्थान का गहरा नाता रहा है। उनसे जुड़ी कई यादें और कई किस्से आज भी यहां के बाशिंदोंकी जुबान पर ताज़ा है।

भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति एवं राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत भैरोसिंह शेखावत दिवंगत वाजपेयी के बहुतनिकट साथी थे। पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ उनकी तिगड़ी राजनैतिक हलकों में चर्चितजोड़ी थी। भारतीय जनसंघ की पहली पीढ़ी ये तीनों प्रमुख नेता कालान्तर में देश की राजनीति श्रितिज की ऊँचाइयों को छूने में सफल हुए।
भैरोसिंह शेखावत व वाजपेयी की दोस्ती किसी से छुपी नहीं रही। शेखावत की पुत्री के नरपत सिंह राजवी सेहुई शादी में वाजपेयी ने रस्मों रिवाजों का निर्वहन किया था। आपातकाल के दौरान दिल्ली के तिहाड़ जेल मेंइनकी हाज़िर जवाबी एवं मज़ाक़िया अन्दाज़ व हँसी मज़ाक़ तत्कालीन प्रतिपक्ष नेताओं जिसमें पूर्व प्रधानमंत्रीचंद्रशेखर भी शामिल थे,सबके बीच चर्चा का विषय बनी रहती थी।वाजपेयी शेखावत व आडवाणी की प्रगाढ़ता और चन्द्रशेखर के साथ कारण शेखावत के लिए पहले राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने व बाद में देशका उप राष्ट्रपति बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ।

वाजपेयी,अडवाणी ब शेखावत की तिगड़ी जब कभी भी एक जगह मिलती थी तो किस्सागोई, बात परअट्‌टाहास और व्यंग्य विनोद हुए बिना नहीं रहती थी। ख़ास कर खाने के शौक़ीन वाजपेयी के लिए विशेष मिष्ठान जिनमें रबड़ी, मिश्रीमावा, भगत के लड्‌डू, गुलाबसकरी आदि तो अवश्य ही मंगवाई जाती थी।

शेखावत की ही तरह पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवन्त सिंह और राजस्थान के शिव कुमार पारीक भी अटल बिहारी वाजपेयी के बहुत ही निकट रहें। उन्होंने जसवन्त सिंह को अपने प्रधानमंत्रित्व काल में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ सौंपी । इसी प्रकार वाजपेयी के निजी सचिव के रूप में शिव कुमार
पारीक तो जीवन पर्यन्त उनके साथ साये की तरह रहे। शंकर भगवान के परम भक्त पारीक का रौबदारचेहरा,छह फुट लंबा शरीर,घनी मूंछें उनके व्यक्तित्व में चार चाँद लगती थी,मगर वाजपेयी के साथ पारीक कारिश्ता राम-हनुमान जैसा था।उनका वाजपेयी के साथ जुड़ना किसी इत्तेफाक से कम नहीं था। वाजपेयी से जुड़ने से पहले शिवकुमार आरएसएस से जुड़े थे।अपनी फिटनेस के चलते वो औरों से अलग ही दिखते थे।साथ ही वे मृदुभाषी भी थे। उनकी ये दोनों विशेषताएं वाजपेयी को बहुत रास आई। दोनों की नजदीकी श्यामाप्रसाद मुखर्जी के निधन के बाद से शुरु हुई। जब वाजपेयी ने बलरामपुर, उत्तरप्रदेश से चुनाव लड़ा,तब किसी नेसुझाव दिया कि वाजपेयी को एक ऐसे सहयोगी कि जरूरत है जो उनकी सुरक्षा का भी ध्यान रखें। बहुततलाश के बाद नानाजी देखमुख ने राजस्थान की राजधानी गुलाबी शहर जयपुर में रह रहे शिवकुमार पारीकका नाम उन्हें सुझाया । बाद में पारीक सभी के साथ इस तरह घुल-मिल गए कि वाजपेयी की गैरमौजूदगी मेंलखनऊ में उनका सारा काम-काज वे ही संभालते नजर आते थे। उन्होंने वाजपेयी के एक पारिवारिक सदस्यकी तरह जीवन पर्यन्त उनका साथ निभाया।

पोकरण-2 से दुनिया में जमाई धाक

वाजपेयी ने अपने प्रधानमंत्री काल में पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर ज़िले के पोकरण रेगिस्तान इलाक़े में ऑपरेशन शक्ति के तहत परमाणु परीक्षण करवा दुनियाँ में भारत की छवि को चार चाँद लगायें थे ।उन्होंने मई1998 में यह परमाणु परीक्षण करवा दुनियाँ के सामने भारतीय वैज्ञानिकों की महान ताक़त को दिखाया औरपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के जय जवान -जय किसान नारे के साथ जय विज्ञान नारे को जोड़ा था।परमाणु परीक्षण के बाद भारत के समक्ष आर्थिक प्रतिबन्धों की चुनौतियों का भी उन्होंने बहुत ही साहसिक ढंगसे सामना किया।

वाजपेयी एवं राजस्थान के दिलचस्प क़िस्से

वाजपेयी की लोकसभाध्यक्ष ओम बिरला के गृह नगर कोटा से भी कई यादें जुड़ी हुई हैं। वे जब भी कोटा आतेथे तो रात्रि विश्राम टिपटा क्षेत्र स्थित बड़े देवताजी की हवेली में करते थे। एक बार अटलजी कोटा आए तोहवेली में रात को ठहरे। अगली सुबह उन्हें झुंझुनूं जाना था। सुबह करीब 4.30 बजे प्रदेश के पूर्व मंत्री हरिकुमार औदिच्य खुद वाजपेयी के लिए चाय लेकर गए तो वाजपेयी कपड़े पहनकर जाने की तैयारी में तैयारबैठे मिले। यह देख औदिच्य चौंक गए। उन्होंने पूछा तो वाजपेयी मुस्कुराते हुए बोले, 'भाई यहां नीचे पोळ मेंचबूतरे पर जो सोए हुए थे, उनका करुण कृंदन (खर्राटे) मुझसे सहन नहीं हुआ। मुझे नींद नहीं आई तो....सोचाक्यों न तैयार हो जाऊं? और मैं नहा धोकर व पूजा-पाठ कर तैयार बैठा हूं। इतने ऊंचे कद के नेता होने केबावजूद उन्होंने चबूतरे पर सोए बुजुर्ग चौकीदार रामकिशन को नहीं टोकां।उनकी महानता के कई ऐसे और भी क़िस्से है।

उदयपुर के दलपत सुराणा प्रायः वाजपेयी के ड्राइवर होते थे। वाजपेयी जी की यात्रा की सूचना मिलते ही वेअपनी गाड़ी लेकर पहुँच जाते थे। एक बार सुराना की गाड़ी बीच रास्ते ख़राब ही गई और वे समय पर नहींपहुँच पायें। हवाई अड्डे पर मौजूद अन्य पक्ष के कार्यकर्ताओं ने बहुत कौशिश की लेकिन वाजपेयी सुराणा काइंतज़ार करते रहे व जब वे अपनी गाड़ी मिस्त्री से दूरस्त करवा पहुँचे तभी हवाई अड्डे से उनकी गाड़ी में बेठ करशहर पहुँचें ।

अजमेर से पांच बार सांसद रहे प्रो.रासासिंह रावत को वाजपेयी प्रोफेसर नहीं डॉक्टर कहकर पुकारते थे। संसदमें जब भी किसी विषय पर बोलना होता तो वे कहते जब रासासिंह रावत हैं तो फिर चिंता नहीं है .....वे हीबोलेंगे। उन्हें भरोसा था कि किसी भी बिल पर बोलने की बात तो हो तो रावत अच्छा बोलेंगे।

अटल जी का तीर्थ नगरी पुष्कर और ख्वाजा की दरगाह में धार्मिक आस्था

अटल जी का तीर्थ नगरी पुष्कर और ख्वाजा की दरगाह में धार्मिक आस्था थी।वे कभी अजमेर की दरगाहशरीफ में तो नहीं जा सके,लेकिन उर्स के मौके पर हर साल उनकी ओर से चादर पेश की जाती थी। इसकेजरिए वे देश में अमन चैन और खुशहाली की कामना करते थे।वाजपेयी की पुष्कर तीर्थ के प्रति गहरी आस्थाथी। इसका एक किस्सा है- 12 नवंबर 1992 को वाजपेयी राजस्थान दौरे के दौरान पुष्कर सरोवर आए थे। तबवे भाजपा के शीर्ष केंद्रीय नेता थे। यात्रा के दौरान उन्होंने पुष्कर सरोवर में पूजा अर्चना की थी। उन्होंने सरोवरमें डूबकी लगाकर स्नान भी किया था। इसी बीच वाजपेयी ने पुष्कर की विजिटर बुक में अपने अनुभव लिखतेहुए पुष्कर सरोवर के घटते जल स्तर पर गहरी चिंता जताई थी। उन्होंने लिखा था कि ‘’आज पुन: पुष्कर आनेका सुअवसर मिला। सरोवर को जल से परिपूर्ण कैसे रखा जाए। इस समस्या का स्थायी समाधान अभी तकनहीं मिला है। प्रयास जारी रखना चाहिए।’’

कांग्रेस नेता भी छुपकर भाषण सुनने आते थे

अटल बिहारी वाजपेयी अपने दिनों में जनसंघ के मंत्रमुग्ध कर देने वाले ओजस्वी वक्ता थे। उनकी चुनावीसभाओं में जयपुर में भारी भीड़ जुटती थी। एक-एक सूचना एवं लाउडस्पीकर पर मुनादी पर ही हजारों की भीड़उनके भाषण सुनने जुट जाती थी। मुनादी अक्सर जयपुर के पूर्व सांसद एवं विधायक रहे दिवंगत गिरधारीलाल भार्गव ही किया करते थे। लेकिन तब भार्गव सिर्फ जनसंघ के कार्यकर्ता थे। सभाएं चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया गेट के सामने, रामलीला मैदान और छोटी चौपड़ पर हुआ करती थी।अटल जी के भाषणों का क्रेजइतना था कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी यहां तक कुछ मंत्री भी कहीं दुबके छुपके सुनने जाया करते थे।

भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी से रोचक और विनोदी शैली वाले भाषण के तौर तरीके राजस्थान के कईतत्कालीन जनसंघी नेता सतीश चंद्र अग्रवाल, ललित किशोर चतुर्वेदी, कैलाशचंद्र मेघवाल, कौशल किशोरजैन आदि सीख गए थे।
सन 1971 में वाजपेयी जी स्वतंत्र पार्टी के नेता सुप्रसिद्ध उद्योगपति के.के.बिड़ला के लाेकसभा चुनाव क्षेत्र मेंप्रचार के लिए आए। स्वतंत्र पार्टी के नेताओं में जयपुर की पूर्व महारानी गायत्री देवी एवं डूंगरपुर महारावललक्ष्मण सिंह भी वाजपेयी को बहुत पसन्द करते थे । तब उन्होंने जयपुर से झुंझुनूं के लिए विमान से उड़ान भरीथी।


राजस्थान व गुजरात की सीमा पर स्थित हिल स्टेशन माउंट आबू वाजपेयी के पसंदीदा पर्यटन स्थलों में से एकथा।
अटल जी ने कहा ..

वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने के लिए जाने माने लेखक टीवी निदेशक एवं पत्रकार बृजेंद्र रेही की पुस्तक‘अटल ने कहा की दिल्ली में काफ़ी चर्चा है। इस पुस्तक में वाजपेयी के भाषण एवं चित्रों का सुन्दर संकलन किया गया है।




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