स्पैरो सॉफ्टटेक को अब 15 दिन में पूरा करना होगा सर्वे, टैक्स वसूली के लिए भी मिले 7 दिन ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
जयपुर। राजधानी जयपुर में नगरीय विकास कर (यूडी टैक्स) कलेक्शन के लिए लगाई गई प्राइवेट कंपनी स्पैरो सॉफ्टटेक पिछले 3 साल से टेंडर की शर्तों का लगातार उल्लंघन कर रही है। इसके बावजूद नगर निगम, स्थानीय निकाय निदेशालय और राज्य सरकार के अफसर फर्म पर कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं। बल्कि नगर निगमों की राजस्व शाखा के अधिकारी-कर्मचारी इस कंपनी के साथ मिलकर निगम के राजस्व को चूना लगा रहे हैं। निगम कर्मियों का कहना है कि अगर पैसा आएगा ही नहीं तो शहर का विकास कैसे करवा पाएंगे। यह स्थिति तो राजधानी की है जहां पूरी सरकार बैठती है। बाकी अन्य जिलों में क्या हाल होगा। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है।
इधऱ, सोमवार को महापौर ने एक मीटिंग में यूडी टैक्स सर्वे 3 साल में भी पूरा नहीं करने और टारगेट के मुताबिक टैक्स कलेक्शन को लेकर कंपनी के प्रतिनिधियों को काफी लताड़ लगाई। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि कंपनी जयपुर शहर में यूडी टैक्स योग्य प्रॉपर्टी का सर्वे 15 दिन में पूरा करके वार्डवाइज रिपोर्ट नगर निगम को उपलब्ध कराए। साथ ही यूडी टैक्स कलेक्शन के टारगेट हर हाल में 7 दिन में पूरे करे।
निगम सूत्रों के मुताबिक कंपनी को करीब 90 करोड़ रुपए का टैक्स कलेक्शन करना था। लेकिन, मार्च खत्म होने में सिर्फ 3 दिन बाकी हैं। कंपनी लगभग 60 प्रतिशत टैक्स ही वसूल पाई है।
नगर निगम अधिकारियों की मानें तो यूडी (प्रॉपर्टी टैक्स) सर्वे और कलेक्शन में फेल होने के बाद वर्ष 2019-20 में यूडी टैक्स कलेक्शन का काम प्राइवेट कंपनी स्पैरो सॉफ्ट टेक को इसलिए दिया गया था कि कमीशन बेस पर वह अधिकतम टैक्स वसूलकर देगी। कंपनी इस काम में लापरवाही नहीं करे, इसके लिए सख्त शर्तें लगाई गई थीं। लेकिन, कंपनी के कर्मचारी जहां भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए। वहीं सुविधा शुल्क देकर नगर निगम और स्वायत्त शासन निदेशालय स्तर तक कंपनी ने अधिकारियों को सैट कर लिया। इसलिए शर्तों के बार-बार उल्लंघन के बावजूद ना तो कंपनी पर पेनल्टी लगाई जा रही है और ना ही उसका टेंडर निरस्त किया जा रहा है। जबकि निगमों में आईएएस स्तर के दो आय़ुक्त, स्थानीय निकाय निदेशालय में निदेशक और सचिवालय में दो सीनियर आईएएस इस विभाग की जिम्मेदारी संभाले हुए हैं।
ऐसे समझिए, कैसे हो रहा टेंडर की शर्तों का उल्लंघनः
ठेके की मुख्य शर्त थी कि कंपनी पहले साल 80 करोड़ रुपए का यूडी टैक्स कलेक्शन करके देगी। इसके बाद बोर्ड की बजट बैठक में पारित किए गए वर्षवार निर्धारित लक्ष्य का कम से कम 75 प्रतिशत टैक्स कलेक्शन करना था। लेकिन, नगर निगम के निर्धारित लक्ष्य 135+90 यानि 225 करोड़ रुपए में से करीब 70 करोड़ रुपए ही वसूल पाई है। शर्तों के मुताबिक अगर फर्म राजस्व के निर्धारित लक्ष्य पूरे नहीं कर पाती तो टेंडर निरस्त किया जा सकता है। किसी भी साल में टैक्स कलेक्शन का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है। टैक्स कलेक्शन में अगर फर्म अनुचित तरीके इस्तेमाल करती है तो ब्लैकलिस्ट हो सकती है।
फर्म के दो कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में मुकदमे दर्ज हैं। फर्म अगर जानबूझकर टैक्स की गलत गणना करके लोगों को टैक्स बिल देती है तो टेंडर रद्द हो सकता है। जयपुर शहर में ऐसी हजारों संपत्तियों को टैक्स नोटिस दे दिए गए जो छूट के दायरे में आती थीं अथवा जिनका टैक्स बहुत कम बनता था। हालांकि वर्ष 2020 से 2023 के लिए लगभग सभी नगर निगम आयुक्तों की ओर से कंपनी को कागजी तौर पर नोटिस तो जारी किए गए हैं। लेकिन, प्रभावी कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं। जबकि उनके पास टेंडर रद्द करने के अधिकार हैं।
जानिए, पेनल्टी लगाने में भी अफसर कर रहे फेवरः
नगर निगम के राजस्व अधिकारियों के अनुसार टेंडर शर्तों की शर्तों के मुताबिक टैक्स वसूली के लक्ष्य पूरे नहीं किए जाने की स्थिति में पेनल्टी टैक्स राशि के लक्ष्य और वास्तविक वसूली की अंतर राशि पर 5 प्रतिशत की दर से पेनल्टी लगाई जानी थी। जो करीब 7.5 करोड़ रुपए बनती है। हालांकि कंपनी इस पेनल्टी राशि को प्री-बिड मीटिंग में 1 प्रतिशत कराना चाहती थी। लेकिन, इस सुझाव को नामंजूर कर दिया गया था। आश्चर्यजनक बात यह है कि निगम अफसरों ने पेनल्टी राशि 7.50 करोड़ रुपए पर, कंपनी को टैक्स वसूली पर मिलने वाली फीस 9.95 प्रतिशत की दर से 74.61 लाख रुपए ही पेनल्टी राशि मान ली। यह रकम भी जमा नहीं हुई है।
तीन साल में भी पूरा नहीं हुआ प्रॉपर्टी टैक्स सर्वेः
नगर निगम अधिकारियों के मुताबिक प्राइवेट कंपनी स्पैरो सॉफ्टटेक को राजधानी जयपुर में सर्वे करके बताना था कि कितनी प्रॉपर्टी ऐसी हैं जो यूडी टैक्स के दायरे में आती हैं। इनसे अनुमानित कितना टैक्स मिल सकता है। लेकिन, कंपनी तीन साल में भी सर्वे पूरा ही नहीं कर पाई। यही कारण है कि वह टैक्स कलेक्शन के लक्ष्य भी पूरे नहीं कर पा रही है। ना ही नगर निगम अगले वित्तीय वर्षों के लिए यूडी टैक्स कलेक्शन के सही लक्ष्य निर्धारित कर पा रहे हैं। अगर टैक्स कलेक्शन कम होता है तो कंपनी को बचाने के लिए लक्ष्य ही घटा दिए जाते हैं।
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