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गहलोत-पायलट की यह सिर्फ तस्वीर अच्छी, लेकिन ग्राउंड रियलिटी में मंत्री-विधायक खुश नहीं, तो संगठन में कार्यकर्ता और पदाधिकारी, यहां पढ़ें

This is just a good picture of Gehlot-Pilot, but in the ground reality, if the Minister-MLAs are not happy, then the workers and officials in the organization, - Jaipur News in Hindi

गिरिराज अग्रवाल-
जयपुर। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा आने से पहले राजस्थान कांग्रेस में तूफान से पहले की सी शांति है। आलाकमान के आदेश पर केसी वेणुगोपाल ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के हाथ मिलवाकर भले ही ऑल इज वैल का मैसेज देने की कोशिश की है। लेकिन, हरीश चौधरी और दिव्या मदेरणा समेत कई ऐसे नेता हैं जिनके सीने में असंतोष की चिंगारी अभी भी सुलग रही है। यात्रा के गुजरते ही यह चिंगारी और भड़केगी। अगले विधानसभा चुनाव आते-आते यह ज्वाला बनकर धधक सकती है। असंतुष्ट नेताओं के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके वजीरों पर जो चौतरफा हमले दिलचस्प होंगे। इसके लिए कुछ लोग अभी से सामान जुटाने में लगे हैं।

इधऱ, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बार-बार राजस्थान में सरकार रिपीट करने की बात दोहरा रहे हैं। इसी को आधार बनाकर वे पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और सीएम की कुर्सी के बीच दीवार बनकर खड़े हो गए हैं। लेकिन, उनकी सरकार रिपीट कराने वाली बात हजम नहीं हो रही है। मुख्य विपक्षी दल भाजपा तो मानकर ही चल रही है कि वर्ष 2023 के चुनाव से वह राजस्थान की सत्ता में वापसी करेगी। चेहरा कौन होगा यह बाद की बात है। वहीं, कांग्रेस के लोगों को भी इसमें थोड़ा-बहुत नहीं बल्कि बड़ा संशय है कि राजस्थान में उनकी सरकार रिपीट हो सकती है। क्योंकि सत्ता और संगठन का तालमेल बिगड़ा हुआ है। सरकार में मंत्री-विधायक खुश नहीं है तो संगठन में कार्यकर्ता और पदाधिकारी। आम कार्यकर्ता की बात तो दूर मुख्यमंत्री के सलाहकारों के साथ भी हल्की सी चर्चा शुरू करो, तुरंत उसका दर्द फूट आता है। वे खुद ही राजस्थान में सरकार रिपीट होने के दावे पर सवाल उठाने लगते हैं। ऊपर से ब्यूरोक्रेसी में भी सरकार की कार्यशैली से भयंकर नाराजगी है। कई अच्छे अफसर दिल्ली का रुख कर चुके हैं और कई तैयारी में हैं।


ग्राउंड रियलिटीः
अगर लीडरशिप की बात करें तो दूसरी पंक्ति के नेताओं में पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के अलावा राजस्थान में दूसरा अन्य कोई नेता नजर नहीं आता जिसकी इतनी व्यापक फैन फॉलोइंग हो। अशोक गहलोत खुद तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं। विकास कार्य औऱ अच्छी से अच्छी योजनाएं चुनाव में कितनी कारगर होती हैं उनसे ज्यादा बेहतर कोई नहीं समझ सकता। क्योंकि वे खुद दो बार यह आजमा चुके हैं। एक बार 156 से 56 और दूसरी बार 121 से 21 पर सिमट गई थी कांग्रेस। वहीं मुख्य विपक्षी दल भाजपा का एजेंडा क्लियर है। उसे विरोध का वोट बांटना है, जो कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल- मुस्लमीन (एआईएमआईएम) में बंट ही जाएगा। फिर भाजपा ऐसा कोई दांव जरूर खेलेगी जिससे हिंदू वोट लामबंद हो जाए। वैसे भी आज अगर कहीं भी सामान्य चर्चा करें तो भी 10 में से 6 से 7 लोग भाजपा की विचारधारा से प्रभावित नजर आते हैं।



बूथ पर लड़ेगा कौनः
अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह होगा कि बूथ पर कांग्रेस के लिए लड़ेगा कौन। क्योंकि करीब ढाई साल पहले सभी जिला और ब्लॉक इकाइयां भंग कर दी गई थीं। उनमें से कई जिलों में अब तक संगठन खड़ा नहीं हो पाया है। यूथ कांग्रेस, महिला कांग्रेस, सेवादल जैसे अग्रिम संगठनों के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं का अता-पता नहीं है। बूथ कमेटियां तक नहीं बनी हैं। किसान, कर्मचारी, सहकार आंदोलन जैसे प्रकोष्ठ भी निष्क्रिय हैं। कई बोर्ड-कॉरपोरेशन, यूआईटी समेत अनेक निकाय आज भी खाली पड़े हैं। इनमें चेयरमैन-सदस्य बनने के इंतजार में कई नेताओं की आंखें पथरा गईं। लेकिन, भाजपा से मुकाबले के लिए बूथ लेवल तक संगठन खड़ा करना जरूरी है।
जनता में उपलब्धियां ठीक से पहुंचाने की जरूरतः
अगर प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के नजरिए से देखें तो कांग्रेस बैकफुट पर यानि डिफेंस मोड में ही नजर आती है। जबकि भाजपा लगातार हमलावर है। टीवी चैनलों पर बहस में आने वाले कांग्रेस प्रवक्ता भी अपने बचाव में असहाय ही नजर आते हैं। क्योंकि उन्हें सरकार और संगठन की ओर से डिबेट के विषय से संबंधित आंकड़े और तथ्यात्मक मैटेरियल ही उपलब्ध नहीं हो पाता है। सोशल मीडिया में बुलेटिन के तौर पर उपलब्धियां बताना अपने मुंह मियां मिट्ठू होने जैसा ही है। छोटे समाचार-पत्र जो गांव-कस्बे और ढाणियों में अपनी रीच रखते हैं वे सरकारी उपेक्षा के शिकार हैं।


असली मुद्दों पर फोकस करना जरूरीः

अगले विधानसभा चुनाव में अभी करीब 10-11 महीने बचे हैं। आजादी के 75 साल बाद भी गांव-ढाणी से लेकर महानगर तक लोग सड़क, पानी, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार जैसी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं। उपखंड स्तर से लेकर जिला, संभाग और मंत्रियों के स्तर पर होने वाली जन सुनवाई में आने वाली समस्याओं एवं मुद्दों की ही ठीक समीक्षा कर लें तो असली मुद्दे सामने् आ जाएंगे। इन पर यदि वारफुटिंग पर काम हो तो अगले चुनाव में इसका कुछ फायदा मिल सकता है।

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