जयपुर। समस्त जांगिड़ ब्राह्मण समाज की ओर से विद्याधर नगर स्थित जांगिड़ समाज सेवा भवन में आयोजित की गई 7 दिवसीय भगवान श्रीविश्वकर्मा संगीतमय कथा का सोमवार को समापन हुआ। प्रातः भगवान विष्वकर्मा के सामूहिक पूजन के बाद दोपहर में कथा के समापन अध्याय पर कथाचार्य श्रीजयन्ती भाई शास्त्री ने प्रवचन किए। उन्होंने श्रीविष्वकर्मा पुराण की आध्यात्मिक महत्ता पर प्रकाष डालते हुए मानव जीवन के कल्याण के लिए सर्वोपरि बताया। कथा की पूर्णाहुति के अवसर पर बड़ी संख्या में समाज के महिला-पुरूष मौजूद रहे। भगवान श्रीविष्वकर्मा के जयकारों से विषाल पाण्डाल गुंजायमान रहा। समापन के दिन सुबह 11 बजे से प्रारम्भ हुए विषाल भण्डारे में हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसादी ग्रहण की। अन्त में अखिल भारतीय जांगिड़ ब्राह्मण महासभा के प्रदेष अध्यक्ष लखन जांगिड़ एवं कथा आयोजन समिति के मीडिया प्रभारी गोपाल शर्मा ने समस्त समाजबंधुओं, दानदाताओं एवं सहयोगकर्ताओं का आभार व्यक्त किया। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
श्रीविश्वकर्मा पुराण के प्रसंगों की सविस्तार व्याख्या करते हुए कथाचार्य श्रीजयन्ती भाई शास्त्री ने कहा कि सम्पूर्ण विष्व को ज्ञान देने वाला हमारा समाज है क्योंकि इसी वंष ने जीवन को जीने का महत्व बताया है। इसलिए भगवान श्रीविष्वकर्मा के वंषजों को ब्राह्मण माना गया है। श्रीविष्वकर्मा पुराण के षिव-नारायण प्रसंग की व्याख्या के दौरान श्रीजयन्ती भाई शास्त्री ने कहा कि काषी नगर में षिव उपासक परिवार में श्रीविष्वकर्माजी के अवतार लेने पर स्वयं भगवान ब्रह्मा ने अपना मुकुट, वस्त्राभूषण आदि जीर्णोद्धार के लिए उन्हें सौंपे थे और विष्वकर्मा जी ने उन्हंे नये स्वरूप में सुषोभित किया था। यही कारण है कि उन्हें देवषिल्पी माना जाता है। आज की युवा पीढ़ी को उनके संस्कारों और दिव्य ज्ञान का लाभ लेना चाहिए, जिसके लिए सप्ताह में एक बार गुरूवार का व्रत-स्मरण करना अत्यन्त लाभदायक होता है। भगवान श्रीविष्वकर्मा की कथा का श्रवण भी हमें लौकिक दृष्टि से भिन्न होकर करना चाहिए।
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