|
जयपुर।
राजस्थान दिवस अब 30 मार्च के बजाय वर्ष प्रतिपदा को मनाया जाएगा। बुधवार
को मुख्यमंत्री की इस घोषणा के बाद से सभी राजस्थानियों में खुशी की लहर
है। संघ की प्रेरणा से 1992 में भारतीय नववर्ष मनाने के लिए गठित नववर्ष
समारोह समिति गत 24 वर्षों से राजस्थान सरकार से लगातार मांग कर रही थी कि
राजस्थान स्थापना दिवस 30 मार्च को नहीं मनाया जाकर वर्ष प्रतिपदा नव
संवत्सर पर मनाया जाए क्योंकि राजस्थान की स्थापना हिन्दू पंचांग के अनुसार
इसी दिन शुभ मुहूर्त देखकर हुई थी। उस दिन 30 मार्च थी। बाद में वर्ष
प्रतिपदा को भुला दिया गया और 30 मार्च को स्थापना दिवस मनाया जाने लगा।
वर्ष प्रतिपदा भारतीय पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पहली
तिथि होती है। यह दिन नववर्ष के रूप में मनाया जाता है।
ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
राजस्थान के
इतिहास की बात करें, तो इसे पहले राजपूताना के नाम से जाना जाता था। तब
यहॉं अनेक रियासतें थीं, जिन्हें मिलाकर यह राज्य बना। राजस्थान का एकीकरण 7
चरणों में पूरा हुआ। इसकी शुरुआत 18 अप्रैल 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर
और करौली रियासतों के विलय से हुई। विभिन्न चरणों में रियासतें जुड़ती गईं
तथा अन्त में 1949 में वर्ष प्रतिपदा (30 मार्च) के दिन जोधपुर, जयपुर,
जैसलमेर और बीकानेर रियासतों के विलय से "वृहत्तर राजस्थान संघ" बना। इसे
ही राजस्थान स्थापना दिवस कहा जाता है। इसमें सरदार वल्लभभाई पटेल की
सक्रिय भूमिका थी। वे सरकार की विलय योजना के अंतर्गत विभिन्न रियासतों को
भारतीय संघ में शामिल करने का काम कर रहे थे।
वृहत्तर राजस्थान के उद्घाटन के अवसर पर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपने भाषण में कहा था,
"राजपूताना
में आज नए वर्ष का प्रारंभ है। यहॉं आज के दिन वर्ष बदलता है। शक बदलता
है। यह नया वर्ष है, तो आज के दिन हमें नए महा राजस्थान के महत्व को पूर्ण
रीति से समझ लेना चाहिए।आज अपना ह्रदय साफ कर ईश्वर से हमें प्रार्थना करनी
चाहिए कि वह हमें राजस्थान के लिए योग्य राजस्थानी बनाएं। राजस्थान को
उठाने के लिए, राजपूतानी प्रजा की सेवा के लिए ईश्वर हमको शक्ति और बुद्धि
दे। आज इस शुभ दिन हमें ईश्वर का आशीर्वाद मांगना है। मैं आशा करता हूं कि
आप सब मेरे साथ राजस्थान की सेवा की इस प्रतिज्ञा में, इस प्रार्थना में
शामिल होंगे।"
समाजसेवी राधिका कहती हैं, राजस्थान दिवस वर्ष
प्रतिपदा को मनाए जाने की घोषणा अपनी जड़ों की ओर लौटने जैसी है। यह
औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति की ओर एक कदम है।
वहीं अमेरिका में रह
रहीं व्यवसायी ईना कहती हैं, भारतीय संस्कृति की जड़ें बहुत गहरी हैं।
इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि आज जब भारत पर पश्चिमी सभ्यता
की छाप पड़ चुकी है, उस स्थिति में भी कोई हिन्दू भारत में रह रहा है या
विदेश में, वह कितना ही पश्चिमी सभ्यता में क्यों न ढल गया हो, अपने शुभ
काम - जैसे, घर की नींव रखना, गृह प्रवेश करना, विवाह संस्कार, नया व्यवसाय
शुरू करना आदि पंचांग अनुसार शुभ दिन व मुहूर्त देखकर ही करता है। स्थापना
दिवस के मूल भाव की अवहेलना कर ग्रेगोरियन कैलेंडर का दिन थोप देना
अंग्रेजी मानसिकता का परिचायक था। देर से ही सही, किसी सरकार ने सुध ली, यह
अच्छी बात है।
उल्लेखनीय है, वर्तमान सरकार द्वारा हाल ही में RTDC
के होटल खादिम का नाम बदलकर अजयमेरु किया जा चुका है। ख़ादिम मोईनुद्दीन
चिश्ती की दरगाह के मौलवियों को कहा जाता है। वहीं अजयमेरु शब्द का
सर्वप्रथम उल्लेख सातवीं शताब्दी A.D. में मिलता है। राजा अजयपाल चौहान ने
अजयमेरु शहर बसाया था, जो समय के साथ अजमेर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती जब भारत आए और इस शहर में बसे, उस समय भी इस
क्षेत्र को अजयमेरु के नाम से ही जाना जाता था।
मुंबई इंडियंस की लगातार दूसरी जीत: सनराइजर्स हैदराबाद को 4 विकेट से हराया, विल जैक्स चमके
यूक्रेन में भारतीय दवा कंपनी के वेयरहाउस पर हमला: रूस ने दी सफाई, कहा- नहीं था निशाना
बिहार : महागठबंधन की बैठक में समन्वय समिति बनाने का निर्णय, तेजस्वी यादव करेंगे नेतृत्व
Daily Horoscope