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जयपुर । यह खबर वसुंधरा सरकार के लिए चिंताजनक हो सकती है कि शैक्षणिक सत्र 2017-18 में शुरू हुए धौलपुर, करौली और बारां के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में नाममात्र के छात्रों ने प्रवेश लेकर प्रदेश की इंजीनियरिंग शिक्षा का आईना सबके सामने रखा है। वसुंधरा सरकार ने बजट घोषणा 2014-15 को पूरा करने के लिए आनन-फानन में एआईसीटीई से मंजूरी लेकर शैक्षणिक सत्र 2017-18 में धौलपुर, करौली और बारां में सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज शुरू करने की घोषणा कर दी। साथ ही इन कॉलेजों के लिए भूमि आवंटन भी हो गया, लेकिन बिल्डिंग के अभाव में धौलपुर और करौली के सरकारी इंजीनयरिंग कॉलेज फिलहाल भरतपुर के सरकारी इंजीनयरिंग कॉलेज में संचालित होंगे, जबकि बारां का इंजीनियरिंग कॉलेज का संचालन राजकीय पॉलिटेक्निक महाविद्यालय में होगा।
यह तक तो सबकुछ ठीक ठाक है, लेकिन जब इंजीनियरिंग की प्रवेश प्रक्रिया पूरी हुई, तो पता चला कि नए सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में नाममात्र के छात्रों ने प्रवेश लेकर यह बता दिया है कि वर्तमान स्थिति में राजस्थान में गुणवत्ता पूर्ण इंजीनियरिंग शिक्षा का अभाव है, चाहे सरकारी कॉलेज हो या निजी इंजीनियरिंग कॉलेज। राज्य सरकार के तकनीकी शिक्षा विभाग के पास पहुंची रिपोर्ट के मुताबिक करौली के अभियांत्रिकी महाविद्यालय में सिर्फ 7 छात्रों ने प्रवेश लिया है। जबकि इस कॉलेज में 300 सीटें थी। यहां सिविल इंजीनियरिंग में 5, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में 1 और कंप्यूटर साइंस में 1 छात्र ने प्रवेश लिया है।
यही स्थिति धौलपुर के अभियांत्रिकी महाविद्यालय की है। यहां भी 300 सीटों में से सिर्फ 7 सीटों पर ही प्रवेश हुआ है। यहां की मैकेनिकल ब्रांच में 3, सिविल में 1, माइनिंग में 3 छात्रों ने प्रवेश लिया है। वहीं बारां के राजकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय की 5 ब्रांचों में सिर्फ 26 छात्रों ने प्रवेश लिया है। इन राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेजों की रिपोर्ट बीते दिनों तकनीकी शिक्षा विभाग को प्राप्त हुई है।
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