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कहानी करप्शन की-1 : यदि यह मामला कभी उजागर हुआ तो जेडीए के लिए कफन में कील साबित होगा

Story of Corruption-1: If this matter ever comes to light, it will prove to be a nail in the coffin for JDA - Jaipur News in Hindi


- गिरिराज अग्रवाल -
जयपुर। यदि यह मामला कभी उजागर हुआ तो ये जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) के अस्तित्व के लिए कफन में कील साबित होगा। आमजन को यह कहने का अवसर सुलभ होगा कि प्रभावशाली व्यक्ति जेडीए में कुछ भी करवा लेने में सक्षम हैं। जेडीए के अधिकारी इसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
मनमानी कार्य़वाही अमल में लाते समय उनको ना तो कानून का कोई भय है और ना ही पकड़े जाने पर भुगते जाने वाले गंभीर परिणामों की कोई चिंता है। यहां तक कि बेईमानी पूर्वक एवं भ्रष्ट आचरण में लिप्त होने के खुले एवं स्पष्ट संकेत देने वाली कार्यवाहियों से लोगों कानून के शासन से भरोसा उठ जाने की परवाह है।
यह मामला बाहरी कारणों से प्रेरित होकर किसी व्यक्ति विशेष को राजकोष की कीमत पर मालामाल कर देने की दुस्साहसिक प्रवृत्ति का ज्वलंत उदाहरण है। बता दें कि खासखबर डॉट कॉम जेडीए में करप्शन के कई मामले उजागर कर चुका है। आगे भी ऐसे मामले उजागर किए जाएंगे।
यह गंभीर टिप्पणी जिला एवं सैशन न्यायाधीश स्तर के अधिकारी दिनेश कुमार गुप्ता ने तथ्यों का गहन विश्लेषण करने के बाद फाइल पर की है, जो कुछ दिन पहले तक जेडीए में डायरेक्टर (लॉ) के पद पर कार्यरत थे। इस तरह की टिप्पणियों से खफा विभागीय मंत्री शांति धारीवाल और बड़े अफसरों ने कुछ ही दिन में उनका तबादला बूंदी के जिला जज के पद पर करवा दिया।
सूत्र बताते हैं कि गुप्ता ने इस तरह के कई ऐसे मामले पकड़े थे जिनमें यदि एसीबी और सीबीआई की जांच हुई अथवा राजस्थान हाईकोर्ट ने संज्ञान लेकर कड़ा रुख अपनाया तो कई अफसरों को जेल जाना पड़ सकता है। यहां तक कि सरकार भी संकट में आ सकती है। क्योंकि राज्य सरकार पहले ही भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोपों और ईडी की कार्रवाई का सामना कर रही है।
फाइल पर ऐसी टिप्पणी क्यों करनी पड़ी, जानिए पूरा मामलाः
सांगानेर तहसील के ग्राम मोहनपुरा में खसरा नंबर 401 क्षेत्रफल 3.24 भूमि पर मूल खातेदारों द्वारा (संभवतः किसी गृह निर्माण सहकारी समिति के माध्यम से) कृषि भूमि का बिना भू उपयोग परिवतर्ति कराए अनाधिकृत रूप से बालाजी विहार आवासीय/फार्महाउस योजना विकसित कर दी गई। इसमें प्रार्थिया डॉ. प्रमिला जैन ने 24 जनवरी, 2002 को जरिए रजिस्ट्री 1200 वर्गमीटर का भूखंड संख्या 37 खरीदा था। उनके साथ ही कुछ अन्य लोगों ने भी इस स्कीम में समय-समय पर भूखंड खरीदे। लेकिन, आश्यचर्यजनक रूप से प्रत्येक भूखंड खरीदार के नाम रोक के बावजूद अलग-अलग खसरा नंबर कायम कर दिए गए।
मास्टर प्लान में 200 फुट चौड़ी सेक्टर रोड में थी जमीनः
तथ्य ये है कि यह जमीन मास्टर प्लान में प्रस्तावित 200 फुट सेक्टर रोड में आती थी। इसके बावजूद खसरा नंबर 401 की भूमि पर अनाधिकृत रूप से आवासीय/फार्म हाउस स्कीम सृजित करते वक्त जेडीए की ओर से कोई आपत्ति नहीं की गई। जबकि वहां 1-2 मकान भी बन गए। वर्ष 2005 में जेडीए ने सेक्टर प्लान में आ रही भूमि को बिना समर्पित कराए अथवा अवाप्त किए वहां सेक्टर रोड का काम शुरू कर दिया।
यहां से शुरू हुआ डॉ. प्रमिला जैन को ओब्लाइज करने का खेलः
जैसे ही डॉ. प्रमिला जैन को जेडीए द्वारा सेक्टर रोड का काम शुरू किए जाने की जानकारी हुई तो उसने 12 दिसंबर, 2005 को जेडीए में एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर जेडीए नियमों के तहत उसी सड़क पर 25 प्रतिशत व्यावसायिक एवं आवासीय भूमि आवंटित किए जाने की मांग कर ली। यहां इस आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि सेक्टर रोड में आ रही जमीन खरीदने के लिए प्रमिला जैन को जेडीए अफसरों ने ही प्रेरित किया हो।
रोचक तथ्य यह है कि जेडीए अफसरों ने प्रमिला जैन के 1200 वर्गमीटर भूमि के समर्पण ऑफऱ पर 25 प्रतिशत विकसित जमीन आवंटन की प्रक्रिया शुरू कर दी। जबकि उस भूमि का अनाधिकृत रूप से कृषि भूमि का आवासीय/फार्म हाउस स्कीम के लिए उपयोग किया जा चुका था। इसलिए जेडीए अफसरों को तत्समय प्रभावी लैंड रेवेन्यू एक्ट 1956 की धारा 90बी भूमि के रिजम्पशन की कार्यवाही करते हुए प्रमिला जैन समेत अन्य लोगों के खातेदारी समाप्त करके जमीन की खातेदारी जेडीए के नाम दर्ज करानी चाहिए थी। अगर ऐसा होता तो बिना भू उपयोग परिवर्तन कराए कृषि भूमि के गैर कृषि उपयोग पर रोक लगती औऱ जेडीए को 25 प्रतिशत विकसित जमीन भी बतौर मुआवजा नहीं देनी पड़ती।
( ये कहानी अभी बाकी है, पढिए अगली किश्त में)

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